दुनियाभर की नजरें फिलहाल रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष पर टिकी हुई हैं। इस बीच एक बड़ा मोड़ तब आया जब यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की ने साफ शब्दों में कहा कि उनका देश रूस को एक इंच भी जमीन नहीं सौंपेगा। यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका की तरफ से यूक्रेन पर समझौते के लिए लगातार दबाव बनाया जा रहा है। जेलेंस्की ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए लगभग 30 देशों के साथ एक आपात बैठक भी बुलाई है।
जेलेंस्की का साफ रुख
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने गुरुवार को स्पष्ट कर दिया कि उनका देश किसी भी कीमत पर अपनी जमीन रूस को नहीं सौंपेगा। उन्होंने कहा कि यूक्रेन यह युद्ध इसीलिए लड़ रहा है ताकि अपनी भूमि की रक्षा कर सके। जेलेंस्की ने कहा कि रूस निश्चित रूप से यूक्रेन के क्षेत्रों को हथियाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यूक्रेन ऐसा होने नहीं देगा।
यूरोपीय देशों से समर्थन जुटाने में जुटे जेलेंस्की ने अपने बयान में कहा कि यह लड़ाई सिर्फ जमीन की नहीं बल्कि अपने देश की आजादी और अस्तित्व की है। उन्होंने संकेत दिया कि यूक्रेन अपने सिद्धांतों पर अडिग रहेगा चाहे उसे कितना भी दबाव झेलना पड़े।
30 देशों की आपात बैठक
इस गंभीर स्थिति को देखते हुए जेलेंस्की ने गुरुवार को करीब 30 देशों के नेताओं और अधिकारियों के साथ एक आपात बैठक बुलाई है। इस बैठक में जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे यूक्रेन के प्रमुख सहयोगी देशों के शामिल होने की उम्मीद है। कई देशों ने वीडियो लिंक के माध्यम से इस बैठक में हिस्सा लेने की सहमति जताई है।
इस बैठक को ‘कोएलिशन ऑफ द विलिंग’ यानी इच्छुक देशों का गठबंधन नाम दिया गया है। जानकारों का मानना है कि यह बैठक जल्दबाजी में इसलिए बुलाई गई है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से यूक्रेन पर समझौते का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
ट्रंप का बढ़ता दबाव
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को कहा कि उन्होंने यूरोपीय नेताओं के साथ फोन पर काफी सख्त शब्दों में इस मुद्दे पर बातचीत की है। ट्रंप ने जेलेंस्की को साफ संदेश दिया है कि उन्हें शांति योजना के बारे में यथार्थवादी होना होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति का कहना है कि यूक्रेन को अपना कुछ हिस्सा रूस को सौंपना ही होगा।
ट्रंप की इस बात से यूक्रेन में काफी हलचल मच गई है। यूक्रेनी अधिकारी अब अमेरिकी दबाव से निपटने के लिए अलग-अलग रणनीतियां बना रहे हैं। वे इस स्थिति से निकलने का कोई ठोस रास्ता खोजने में लगे हुए हैं।
अमेरिका का नया प्रस्ताव
हाल ही में अमेरिका ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को खत्म करने के लिए एक नया प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव के मुताबिक यूक्रेन को डोनबास क्षेत्र समेत कई इलाकों को छोड़ना होगा। इतना ही नहीं, इस प्रस्ताव में क्रीमिया सहित इन क्षेत्रों को रूस के हिस्से के रूप में अधिकारिक मान्यता देने की बात भी कही गई है।
यह प्रस्ताव यूक्रेन के लिए बेहद मुश्किल है क्योंकि इसका मतलब है अपनी ही जमीन को दूसरे देश को सौंप देना। जाहिर तौर पर यूक्रेन को ये शर्तें स्वीकार नहीं हैं। लेकिन ट्रंप इस समझौते को मंजूर करवाने के लिए यूक्रेन पर लगातार दबाव बना रहे हैं।
यूरोपीय सहयोगियों से मदद की उम्मीद
इस कठिन घड़ी में जेलेंस्की अपने यूरोपीय साथियों से मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं। वे लगातार यूरोपीय देशों से संपर्क में हैं और उनके साथ बातचीत जारी है। जेलेंस्की चाहते हैं कि यूरोपीय देश इस मामले में उनका साथ दें और अमेरिकी दबाव का मुकाबला करने में उनकी मदद करें।
यूरोपीय देशों की भूमिका इस पूरे मामले में काफी अहम मानी जा रही है। अगर यूरोपीय देश यूक्रेन का मजबूती से साथ देते हैं तो अमेरिकी दबाव कम हो सकता है। इसीलिए जेलेंस्की यूरोपीय नेताओं से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं।
युद्ध का असर
रूस और यूक्रेन के बीच यह संघर्ष काफी लंबे समय से चल रहा है। इस युद्ध में हजारों लोगों की जान जा चुकी है और लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है। दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर भी इसका गहरा असर पड़ा है।
यूक्रेन के कई शहर इस युद्ध में तबाह हो चुके हैं। बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा है। लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। ऐसे में शांति की जरूरत तो है लेकिन यूक्रेन अपनी जमीन छोड़कर शांति नहीं चाहता।
आगे क्या होगा
फिलहाल हालात काफी नाजुक हैं। एक तरफ अमेरिका यूक्रेन पर समझौते का दबाव बना रहा है तो दूसरी तरफ यूक्रेन अपनी जमीन देने को तैयार नहीं है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 30 देशों की आपात बैठक में क्या फैसला होता है।
जेलेंस्की की रणनीति साफ है। वे यूरोपीय देशों का समर्थन हासिल करके अमेरिकी दबाव का मुकाबला करना चाहते हैं। अगर यूरोपीय देश मजबूती से उनके साथ खड़े होते हैं तो यूक्रेन की स्थिति मजबूत हो सकती है।
इस पूरे मामले में यह भी देखने वाली बात होगी कि रूस किस तरह की प्रतिक्रिया देता है। अभी तक रूस ने अपनी मांग पर अड़े रहने का संकेत दिया है। ऐसे में शांति की राह काफी मुश्किल नजर आ रही है।
यूक्रेन के लोगों की उम्मीदें अपने राष्ट्रपति से जुड़ी हुई हैं। वे चाहते हैं कि उनकी जमीन सुरक्षित रहे और देश की आजादी बरकरार रहे। जेलेंस्की पर अब यह जिम्मेदारी है कि वे अपने देश के हितों की रक्षा करते हुए इस संकट से बाहर निकलने का रास्ता खोजें।