राजनीति के माहिर शिल्पकार लालू यादव
भारतीय राजनीति में लालू प्रसाद यादव वह नाम हैं जिन्होंने जोड़-तोड़, रणनीति और करिश्मे की मिसाल कायम की। बिहार की राजनीति में जब भी समीकरण जटिल हुए, लालू यादव ने अपने राजनीतिक कौशल से बाज़ी पलट दी।
आज, जब महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर तनाव बढ़ा है, वही पुराना करिश्माई नेता फिर सक्रिय हो गया है। लालू प्रसाद यादव ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि उम्र भले ही बढ़ी हो, पर राजनीतिक बुद्धिमत्ता और सामंजस्य की क्षमता आज भी अटूट है।
1990: जब सत्ता तक पहुँचना था एक चुनौती
मार्च 1990 के बिहार विधानसभा चुनावों में जनता दल को 122 सीटें मिलीं थीं। यह परिणाम सत्ता की दहलीज तक तो पहुँचा, पर कुर्सी अभी भी दूर थी। सरकार बनाने के लिए 163 विधायकों का समर्थन आवश्यक था।
राजनीति के उस दौर में लालू यादव अपेक्षाकृत युवा और उभरते नेता थे, परंतु उनके भीतर एक चतुर रणनीतिकार छिपा था। उन्होंने परिस्थिति का आंकलन किया और विपक्षी दलों में सेंध लगाने की योजना बनाई।
जोड़-तोड़ का चमत्कार
राजनीतिक जोड़-तोड़ में लालू यादव का कोई सानी नहीं रहा। उन्होंने कम्युनिस्ट दलों – भाकपा और माकपा – के 29 विधायकों को अपने साथ किया, फिर झामुमो के 19 और आईपीएफ के 7 विधायकों का समर्थन भी हासिल किया।
कुल मिलाकर, उन्होंने इतनी संख्याबल जुटा ली कि सत्ता की कुर्सी पर उनका दावा पुख्ता हो गया। लेकिन असली परीक्षा तब शुरू हुई जब अयोध्या आंदोलन की आँधी बिहार पहुँची।
आडवाणी रथयात्रा और लालू का बड़ा दांव
1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा जब बिहार की सीमा में प्रवेश करने वाली थी, लालू प्रसाद यादव ने उसे रोकने का साहस दिखाया। यह निर्णय उनके राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा जोखिम था।
भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया, और ऐसा लगा कि लालू सरकार गिर जाएगी। पर हुआ उलटा – लालू यादव ने भाजपा के ही 13 विधायकों को तोड़कर इंदर सिंह नामधारी के नेतृत्व में “संपूर्ण क्रांति दल” बनवा दिया। इस कदम से उनकी सरकार न केवल बची बल्कि और मज़बूत हुई।
राजनीतिक दूरदृष्टि और सत्ता प्रबंधन
लालू यादव के राजनीतिक सफर का यह अध्याय बताता है कि वे सिर्फ जननेता नहीं बल्कि एक कुशल समीकरण निर्माता भी हैं। उन्होंने उस दौर में जो किया, वह केवल जोड़-तोड़ नहीं था, बल्कि सत्ता की स्थिरता के लिए रणनीतिक नीति थी।
उनकी यही क्षमता आज भी उन्हें बाकी नेताओं से अलग करती है। वे जानते हैं कि कब समझौता करना है, कब टकराव और कब पीछे हटना है।
आज की स्थिति: फिर सक्रिय लालू
35 वर्ष बाद, बिहार की राजनीति एक बार फिर उस मोड़ पर खड़ी है जहाँ महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर खींचतान जारी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कांग्रेस नेतृत्व के बीच समन्वय कठिन हो रहा है।
ऐसे में लालू यादव ने फिर मोर्चा संभाला है। राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा है कि वे स्वयं बैठकर सीट वितरण का अंतिम फार्मूला तैयार कर रहे हैं। राजद के वरिष्ठ नेता भी मानते हैं कि “लालू यादव के बिना सीट बंटवारा संभव नहीं।”
क्या 1990 की पुनरावृत्ति होगी?
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि 1990 की तरह इस बार भी लालू यादव अपने पुराने हुनर से समीकरण पलट सकते हैं। जहां एक ओर वे गठबंधन के सहयोगियों को मनाने की कोशिश में हैं, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों की चालों पर भी नजर रखे हुए हैं।
बिहार की जनता भी उत्सुक है कि क्या “राजनीति के इस पुराने जादूगर” के पास अब भी वह जादू बाकी है, जो कभी पूरी विधानसभा को अपने इशारों पर नचा देता था।
निष्कर्ष: अनुभव और रणनीति का संगम
लालू प्रसाद यादव आज केवल एक नेता नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के अनुभव और रणनीति के प्रतीक हैं। 1990 से लेकर आज तक उन्होंने दिखाया है कि राजनीति केवल विचारधारा नहीं, बल्कि धैर्य, समझ और समीकरणों की कला भी है।
बिहार के आगामी चुनावों में क्या लालू यादव का यही अनुभव महागठबंधन को फिर सत्ता तक पहुँचाएगा — यही देखने योग्य होगा।