दीक्षाभूमि पर बाबा साहेब आंबेडकर के जयघोष से गूंजा नागपुर
नागपुर: करुणा, समता और प्रज्ञा का प्रतीक दीक्षाभूमि मंगलवार को एक बार फिर धम्ममय वातावरण में परिवर्तित हो गई। इस पवित्र स्थल पर आयोजित बुद्ध वंदना कार्यक्रम में बड़ी संख्या में अनुयायियों ने भाग लेकर बुद्ध, धम्म और संघ के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट की। इस अवसर पर भिक्षुसंघ और भिक्षुणी संघ की उपस्थिति ने समारोह को और भी आध्यात्मिक और प्रभावशाली बनाया।

भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई की अध्यक्षता में संपन्न इस कार्यक्रम में भगवा वस्त्रधारी भिक्षु और भिक्षुणियों ने बुद्ध और बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह ने त्रिशरण और पंचशील ग्रहण कर बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को अपनाने का संकल्प लिया।
दीक्षाभूमि का ऐतिहासिक महत्व
14 अक्टूबर 1956 का दिन भारतीय इतिहास में सामाजिक समानता और परिवर्तन के प्रतीक के रूप में दर्ज है। इसी भूमि पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने महास्थवीर चंद्रमणी के सान्निध्य में बौद्ध धर्म स्वीकार कर सामाजिक भेदभाव और असमानता के खिलाफ अपने आंदोलन को नई दिशा दी। इस घटना ने पूरे देश में समानता और बंधुत्व की भावना को मजबूत किया।
समाज के विभिन्न वर्गों के लोग, विशेषकर दलित और पिछड़े वर्ग, आज भी इस दिन को यादगार रूप में मनाते हैं और इसे सामाजिक जागरूकता के रूप में देखते हैं। दीक्षाभूमि केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और समानता का प्रतीक बन चुकी है।
भिक्षुसंघ और भिक्षुणी संघ की उपस्थिति
भदंत आर्य नागार्जुन ससाई और अन्य प्रमुख भिक्षु-भिक्षुणियों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को अत्यधिक आध्यात्मिक वातावरण प्रदान किया। उन्होंने उपस्थित लोगों को धम्म का पालन और जीवन में करुणा, समानता तथा प्रज्ञा के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
इस अवसर पर उपस्थित अनुयायियों ने बुद्ध वंदना के दौरान शांति, करुणा और आत्म-नियंत्रण के सिद्धांतों का पालन करने का संकल्प लिया। भगवा वस्त्रधारी संघ के सदस्य भिक्षु-भिक्षुणियों ने अपने प्रवचनों में सामाजिक बंधुत्व और समता का संदेश दिया।
कार्यक्रम की रूपरेखा और आयोजन
दीक्षाभूमि परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम में संविधान चौक और विमानतल परिसर सहित विभिन्न स्थानों पर श्रद्धालुओं द्वारा बाबा साहेब आंबेडकर की मूर्तियों पर पुष्प अर्पित किए गए। आयोजन समिति ने लोगों के लिए त्रिशरण और पंचशील ग्रहण करने की व्यवस्था की, जिससे प्रत्येक व्यक्ति बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को समझ सके और उन्हें जीवन में अपनाने का संकल्प ले सके।
इस प्रकार दीक्षाभूमि ने न केवल धार्मिक कार्यक्रमों का मंच प्रदान किया, बल्कि सामाजिक जागरूकता और समानता के संदेश को भी आगे बढ़ाया।
निष्कर्ष
इस वर्ष का दीक्षाभूमि समारोह इस बात का प्रमाण है कि बाबा साहेब आंबेडकर का आदर्श और बुद्ध का मार्ग आज भी लोगों को प्रेरित कर रहा है। भिक्षुसंघ, भिक्षुणी संघ और अनुयायियों की उपस्थिति ने इस परंपरा को जीवित रखते हुए समाज में समानता और करुणा के संदेश को मजबूती प्रदान की।