JDU में गुटबाजी और इस्तीफे का नया अध्याय
पटना डेस्क। बिहार की राजनीति में जदयू के भीतर गुटबाजी का एक नया विवाद सामने आया है। करगर विधानसभा का एक सीनियर गरीबी कार्यकर्ता, जो पार्टी की नींव से जुड़ा रहा है, ने अचानक पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उनका आरोप है कि जदयू के कुछ वरिष्ठ नेता, विशेषकर नीतीश कुमार के करीबी मंत्री ललन सिंह और उनके सहयोगी संजय झा, पार्टी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं।
कार्यकर्ता ने स्पष्ट किया कि उन्होंने यह कदम अपनी पूरी हताशा और नाराजगी के कारण उठाया है। उनका मानना है कि वर्तमान नेतृत्व का निर्णय और पार्टी की अंदरूनी राजनीति राज्य की राजनीति को प्रभावित करेगी। उन्होंने आरोप लगाया कि ललन सिंह ने करगर विधानसभा को 3 करोड़ रुपये में बेचने का प्रयास किया, जो पार्टी की छवि और जनविश्वास के लिए गंभीर चुनौती है।
कार्यकर्ता का आरोप: पार्टी को खतरा
इस कार्यकर्ता ने मीडिया से बातचीत में कहा कि ललन सिंह और संजय झा दोनों ही जदयू के अस्तित्व के लिए खतरा बन चुके हैं। उनका मानना है कि ये दोनों नेता पार्टी के हित के बजाय अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा में लिप्त हैं। कार्यकर्ता ने जोर देकर कहा कि यदि इस तरह के निर्णय और षड्यंत्र जारी रहे, तो बिहार विधानसभा में जदयू को भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार बिहार के लिए आवश्यक हैं। उनके नेतृत्व में ही जदयू ने राजनीतिक स्थिरता और विकास के लिए काम किया है। लेकिन आज के हालात में कुछ नेता पार्टी को बर्बाद करने की योजना बना रहे हैं।”
करगर विधानसभा की लड़ाई और इस्तीफा
इस कार्यकर्ता ने करगर विधानसभा की लड़ाई के समय से ही पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उनकी सक्रियता और मेहनत ने पार्टी को कई महत्वपूर्ण जीत दिलाई। लेकिन हाल के अंदरूनी घटनाक्रम ने उन्हें निराश कर दिया। उनका कहना है कि ललन सिंह और संजय झा का रवैया पार्टी के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका इस्तीफा केवल व्यक्तिगत नाराजगी नहीं, बल्कि पार्टी और राज्य की राजनीति के प्रति जिम्मेदारी से लिया गया निर्णय है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर ऐसे लोग सत्ता में बने रहे, तो जदयू और नीतीश कुमार दोनों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
राजनीतिक हलचल और भविष्य की संभावनाएँ
नीतीश कुमार के करीबी मंत्रियों पर लग रहे आरोपों के बाद पार्टी में हलचल बढ़ गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह घटना जदयू की आगामी विधानसभा चुनाव रणनीति को प्रभावित कर सकती है। यदि कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं का विश्वास कमजोर होता है, तो पार्टी की स्थिति कठिन हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जदयू के लिए समय है कि वह अंदरूनी गुटबाजी को नियंत्रित करे और कार्यकर्ताओं के विश्वास को बहाल करे। अन्यथा पार्टी को विधानसभा चुनाव में भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष: पार्टी और नेतृत्व के लिए चुनौती
करगर विधानसभा के इस कार्यकर्ता का इस्तीफा और उनके आरोप जदयू के लिए गंभीर चुनौती हैं। यह न केवल पार्टी के अंदरूनी संघर्ष को उजागर करता है, बल्कि भविष्य की राजनीति पर भी गहरा असर डाल सकता है। अब जदयू के लिए जरूरी है कि वह अपनी अंदरूनी राजनीति को साफ करे और कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर करे।
राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि यदि पार्टी समय रहते निर्णय नहीं लेती है, तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू को विधानसभा चुनाव में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।