नई दिल्ली।
विश्व राजनीति के बदलते समीकरणों के बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर ब्रिक्स (BRICS) संगठन पर भड़क गए हैं। उन्होंने दो टूक चेतावनी दी है कि जो भी देश ब्रिक्स में शामिल होगा, उस पर अमेरिका की ओर से अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। ट्रंप का आरोप है कि यह संगठन अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने की साज़िश कर रहा है।
भारत, जो वर्ष 2026 में भव्य ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी की तैयारी कर रहा है, ने ट्रंप के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि ब्रिक्स का उद्देश्य किसी नई करेंसी को थोपना नहीं, बल्कि सदस्य देशों के बीच स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को प्रोत्साहित करना है।
ट्रंप का आरोप — “डॉलर को कमजोर करने की कोशिश”
अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिली के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा,
“अगर कोई देश ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है, तो हो जाए — लेकिन उसे अमेरिका की ओर से अतिरिक्त टैरिफ झेलना पड़ेगा।”
ट्रंप ने आरोप लगाया कि ब्रिक्स के सदस्य देश अमेरिकी डॉलर की पकड़ को ढीला करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस संगठन की आड़ में एक वैकल्पिक करेंसी बनाने की योजना चल रही है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन सकती है।
गौरतलब है कि ट्रंप ने जुलाई 2025 में ब्राजील में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के दिन ही सदस्य देशों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की थी। उनका तर्क था कि रूस, चीन और ईरान जैसे देश डॉलर की स्थिरता के खिलाफ काम कर रहे हैं।
भारत की प्रतिक्रिया — “किसी करेंसी का एजेंडा नहीं”
भारत ने हमेशा ब्रिक्स को समान साझेदारी वाले मंच के रूप में देखा है, न कि किसी सामरिक गुट के रूप में। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में कहा था कि ब्रिक्स की “अलग मुद्रा” बनाने की कोई मंशा नहीं है। बल्कि यह संगठन स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है ताकि डॉलर पर निर्भरता कम हो सके, लेकिन उसे कमजोर करना इसका उद्देश्य नहीं है।
भारत इस संगठन के माध्यम से विकासशील देशों को वैश्विक निर्णय प्रक्रिया में आवाज़ दिलाना चाहता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चीन यात्रा के दौरान राष्ट्रपति शी चिनफिंग को आगामी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2026 में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है।
कौन हैं नए सदस्य और क्यों भड़के ट्रंप
वर्ष 2024 में ब्रिक्स ने मिस्त्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब, अर्जेंटीना और यूएई को नए सदस्य के रूप में आमंत्रित किया था। हालांकि, अर्जेंटीना की नई सरकार ने सदस्यता लेने से इनकार कर दिया और सऊदी अरब अभी ‘आमंत्रित सदस्य’ के तौर पर ही शामिल है।
ट्रंप ने दावा किया कि “ब्रिक्स के सदस्य देश संगठन छोड़कर भाग रहे हैं,” लेकिन वास्तविकता यह है कि संगठन लगातार विस्तार कर रहा है। दक्षिण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के तीन दर्जन से अधिक देशों ने इसमें शामिल होने की इच्छा जताई है।
भारत की कूटनीतिक तैयारी
भारत 2026 में होने वाले शिखर सम्मेलन की तैयारियों में जुटा है। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, इस आयोजन को उसी भव्यता से किया जाएगा जैसे 2023 के जी-20 शिखर सम्मेलन को किया गया था। नई दिल्ली चाहती है कि इसमें सिर्फ दस पूर्णकालिक सदस्य ही नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदार देशों को भी आमंत्रित किया जाए ताकि वैश्विक दक्षिण (Global South) की एक मजबूत आवाज़ उभर सके।
सितंबर 2025 में अपने अमेरिका दौरे के दौरान एस. जयशंकर ने ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की विशेष बैठक भी बुलाई थी, जिसमें आर्थिक सहयोग, तकनीकी निवेश और ऊर्जा सुरक्षा जैसे विषयों पर चर्चा की गई।
विश्लेषण: ट्रंप की नीति या वैश्विक शक्ति संतुलन?
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की यह नई चेतावनी अमेरिका की “प्रोटेक्शनिस्ट” (संरक्षणवादी) नीति का हिस्सा है। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि अमेरिका अभी भी वैश्विक व्यापार और वित्त का केंद्र है। लेकिन दूसरी ओर, ब्रिक्स का बढ़ता प्रभाव दर्शाता है कि दुनिया एक बहुध्रुवीय युग (Multipolar World) की ओर बढ़ रही है, जहाँ हर देश अपनी मुद्रा, संसाधन और रणनीतिक नीति पर स्वतंत्र निर्णय लेना चाहता है।
भारत जैसे देशों के लिए यह स्थिति एक अवसर भी है और चुनौती भी — अवसर इसलिए कि नई साझेदारियाँ बन रही हैं; चुनौती इसलिए कि अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश इससे असहज हैं।
ट्रंप की चेतावनी से ब्रिक्स के बढ़ते कद पर कोई असर नहीं पड़ता दिख रहा। भारत सहित कई देश मानते हैं कि ब्रिक्स आने वाले दशक में वैश्विक आर्थिक संतुलन को परिभाषित करेगा — चाहे डॉलर कमजोर हो या नहीं।