नागपुर में किसानों ने जताया रोष
महाराष्ट्र सरकार द्वारा फसल बर्बादी के मुआवज़े में 70% की कटौती किए जाने के निर्णय के खिलाफ नागपुर के किसान और किसान नेता एकजुट हो गए हैं। यह विरोध प्रदर्शन बड़ी पुलिस स्टेशन क्षेत्र में आयोजित किया गया, जहाँ किसानों ने होलिका दहन कर अपने आक्रोश और नाराज़गी को व्यक्त किया। किसानों का कहना है कि प्राकृतिक आपदाओं जैसे अत्यधिक वर्षा, सूखा या तूफान से उनकी फसलें बर्बाद हो जाती हैं, और सरकार द्वारा पहले जो मुआवज़ा दिया जाता था, उसमें अब भारी कटौती कर दी गई है।
किसान नेताओं के अनुसार, यदि किसी किसान को केवल ₹8000 का मुआवज़ा दिया जाता है, तो वह अपने परिवार का मूलभूत खर्च भी नहीं चला सकता। किसानों का यह भी तर्क है कि एक सामान्य परिवार का बच्चा यदि अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ता है, तो उसके लिए सालाना डेढ़ लाख रुपये तक की फीस देना आवश्यक है। ऐसे में न्यूनतम मुआवज़ा उनके जीवन को और अधिक कठिन बना देता है।
किसानों की चिंता और सामाजिक प्रभाव
किसानों का मानना है कि फसल बर्बादी के कारण उनकी आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर है। मुआवज़े में इतनी बड़ी कटौती से उनकी जीवनशैली पर गंभीर असर पड़ रहा है। इससे न केवल किसान परिवारों की आर्थिक सुरक्षा खतरे में पड़ती है, बल्कि उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पर भी असर पड़ता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या की घटनाओं की संख्या सबसे अधिक है। ये घटनाएं सीधे तौर पर आर्थिक तंगी और सरकारी मदद की कमी से जुड़ी हैं। किसानों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती, तो वे और भी कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर होंगे।
सरकार और किसानों के बीच तनाव
सरकार का कहना है कि मुआवज़ा कटौती का निर्णय बजटीय सीमाओं और संसाधनों की कमी के कारण लिया गया है। हालांकि, किसान इसे उनकी मेहनत और जीवन के प्रति अन्याय मान रहे हैं। नागपुर में आयोजित इस प्रदर्शन में किसान नेताओं ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगें जल्द पूरी नहीं की गईं, तो राज्यव्यापी आंदोलन का आयोजन किया जाएगा।
किसानों ने अपने रोष को जताने के लिए होलिका दहन का आयोजन किया और कहा कि उनका संघर्ष केवल आर्थिक सुरक्षा के लिए है। उन्होंने यह भी कहा कि फसल बर्बादी के उचित मुआवज़ा के बिना उनकी कृषि गतिविधियों को बनाए रखना संभव नहीं है।
आंदोलन की भविष्य की रूपरेखा
किसानों ने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ प्राप्त करना नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र में कृषि क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करना भी है। उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि फसल बर्बादी के मुआवज़े को वर्तमान दरों के अनुसार पुनः निर्धारित किया जाए।
यदि सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो किसान आंदोलन को और व्यापक और कड़ा बनाने की योजना बना रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि यह केवल नागपुर का ही मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरे राज्य के किसानों के लिए एक चेतावनी है।
निष्कर्ष
किसानों की यह लड़ाई सिर्फ आर्थिक लाभ की नहीं है, बल्कि उनके जीवन और सामाजिक सम्मान की रक्षा की है। नागपुर में किसानों द्वारा जताया गया रोष इस बात का प्रतीक है कि यदि सरकार ने समय पर कदम नहीं उठाए, तो महाराष्ट्र में कृषि क्षेत्र में और बड़ी अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
किसानों का यह संदेश स्पष्ट है कि उनका संघर्ष जारी रहेगा और उनकी आवाज़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सरकार और किसानों के बीच संतुलन बनाना अब अत्यंत आवश्यक हो गया है।