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सुधा मूर्ति ने जाति सर्वे में हिस्सा लेने से किया इंकार; मंत्री संतोष लाड ने कही यह टिप्पणी

Sudha Murty Refuses Karnataka Caste Survey; स्वैच्छिक भागीदारी पर मंत्री की टिप्पणी
Sudha Murty Refuses Karnataka Caste Survey; स्वैच्छिक भागीदारी पर मंत्री की टिप्पणी (Image Source: FB)
अक्टूबर 16, 2025

बैंगलुरु। कर्नाटक में जारी जाति और शैक्षिक सर्वेक्षण के दौरान सुधा मूर्ति ने अपने परिवार की जाति बताने से इंकार कर दिया। यह सर्वेक्षण राज्य द्वारा गैर-आवश्यक (non-mandatory) रूप में किया जा रहा है। कर्नाटक सरकार ने मूर्ति के इस निर्णय को स्वीकार कर लिया है, लेकिन साथ ही यह भी सवाल उठाया कि क्या वे इसी तरह केंद्रीय स्तर पर किए जाने वाले जाति सर्वे में भी अपनी जानकारी साझा करेंगी।

कर्नाटक के श्रम मंत्री संतोष लाड ने कहा कि सुधा मूर्ति का यह निर्णय पूरी तरह से उनकी व्यक्तिगत पसंद है। उन्होंने कहा, “सरकार किसी को भी इसमें भाग लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकती।” लाड ने यह भी टिप्पणी की कि वे मूर्ति की स्थिति का सम्मान करते हैं, लेकिन आशा जताई कि जब केंद्र सरकार इसका सर्वेक्षण करेगी, तब भी वे यही रवैया अपनाएँगी।

सुधा मूर्ति और उनके पति, इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति, दोनों ने सर्वेक्षण में भाग लेने से इंकार किया। उन्होंने यह कहा कि वे किसी पिछड़ी या आरक्षित श्रेणी से संबंधित नहीं हैं। मूर्ति ने एक बयान पर हस्ताक्षर किए, जिसमें उल्लेख था कि उनके परिवार की जाति की जानकारी सरकार के लिए किसी मददगार साबित नहीं होगी। उन्होंने निजी कारण भी बताये, जिसके चलते उन्होंने यह जानकारी साझा नहीं की।

कर्नाटक सरकार इस सर्वेक्षण को कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (KSCBC) के माध्यम से करवा रही है। इस सर्वेक्षण में कुल 60 प्रश्न हैं और इसकी कुल लागत अनुमानित ₹420 करोड़ है। सर्वेक्षण 22 सितंबर 2025 को शुरू हुआ और इसे 19 अक्टूबर 2025 तक पूरा करने की योजना है। सर्वेक्षण की रिपोर्ट को साल के अंत तक राज्य सरकार को सौंपा जाएगा

उप-मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भी इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हम किसी को सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। यह स्वेच्छा पर आधारित होना चाहिए।”

सर्वेक्षण के लिए उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सभी उत्तरदाता स्वैच्छिक आधार पर ही भाग लेंगे। इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य राज्य में सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर पिछड़े वर्गों की स्थिति को आंकड़ों के रूप में एकत्र करना है।

इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल भी उठाया कि क्या समाज में प्रभावशाली लोगों की राय और निर्णय आम जनता के दृष्टिकोण पर असर डालते हैं। मंत्री संतोष लाड ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “कौन प्रभावशाली है और कौन नहीं, यह एक व्यक्तिगत और विवादास्पद मुद्दा है। मुझे नहीं लगता कि इससे समाज पर कोई बड़ा प्रभाव पड़ेगा।”

सुधा मूर्ति का निर्णय निजी अधिकार और निजता के महत्व को दर्शाता है। यह भी स्पष्ट करता है कि गैर-आवश्यक सर्वेक्षणों में भागीदारी स्वैच्छिक होती है और किसी को भी भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, इस घटना ने यह संदेश भी दिया कि प्रभावशाली व्यक्तियों के निर्णय और निजी पसंद को सम्मान देना लोकतांत्रिक दृष्टिकोण का हिस्सा है।

राज्य सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि सर्वेक्षण का उद्देश्य सामाजिक और शैक्षिक आंकड़ों का एकत्रीकरण है और यह किसी व्यक्तिगत या राजनीतिक एजेंडा से प्रेरित नहीं है। सर्वेक्षण के निष्कर्ष आगामी वर्षों में राज्य नीति निर्धारण और विकास योजनाओं के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।

इस प्रकार, सुधा मूर्ति और नारायण मूर्ति का निर्णय स्वैच्छिक सर्वेक्षण में हिस्सा न लेने का है, जिसे सरकार ने सम्मानपूर्वक स्वीकार किया है। इस पर संतोष लाड का भी मानना है कि भविष्य में केंद्र द्वारा किया जाने वाला सर्वेक्षण भी इसी तरह का स्वतंत्र और स्वैच्छिक होना चाहिए।


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Aryan Ambastha

Writer & Thinker | Finance & Emerging Tech Enthusiast | Politics & News Analyst | Content Creator. Nalanda University Graduate with a passion for exploring the intersections of technology, finance, Politics and society. | Email: aryan.ambastha@rashtrabharat.com

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