शहर-और-प्रकरण का परिचय
कोलकाता में Enforcement Directorate (ईडी) द्वारा मंगलवार सुबह एक बड़ी कार्रवाई की गई, जिसमें पश्चिम बंगाल के नगर निकायों (म्युनिसिपलिटी) में भर्ती घोटाले की जांच के सिलसिले में कई ठिकानों पर छापेमारी की गई। सूत्रों के अनुसार, ईडी ने कोलकाता तथा उसके आसपास के इलाकों में ऐसे ठिकानों को निशाना बनाया, जिनसे भर्ती प्रक्रिया में कथित गलत हथकंडों से संबंधित विकास मिल रहे थे।
इस भर्ती घोटाले की जड़ें खास-कर समूह C एवं D पदों की ओर बताई जा रही हैं, जिनमें मजदूर, क्लर्क, स्वीपर, पंप ऑपरेटर, हेल्पर जैसे असिस्टेंट पद शामिल हैं।
छापेमारी का विस्तार और संपत्ति जब्ती
ईडी की टीम ने लगभग 13 स्थानों पर छापेमारी की; इनमे शामिल थे मंत्री कार्यालय, ठेकेदारों-कम्पनियों के कार्यालय, तथा भर्ती कार्य से जुड़े एजेंटों-मध्यस्थों के ठिकाने। खासतौर पर Sujit Bose नामक पश्चिम बंगाल सरकार के मंत्री के कार्यालय और उनसे जुड़ी कंपनियों-प्रॉपर्टी पर भी कार्रवाई हुई।
इस छापे के दौरान करीब ₹45 लाख की नकदी, डिजिटल उपकरण, संपत्ति दस्तावेज तथा अन्य साक्ष्य जब्त किए गए। ईडी के द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि यह कार्रवाई तब की गई जब उन्हें ठोस इनपुट मिले कि भर्ती प्रक्रिया में एक एकल कंपनी के माध्यम से प्रश्न-पत्र छपाई, OMR शीट मूल्यांकन व मेरिट लिस्ट तैयार करने का काम हुआ है और इसके द्वारा सत्ता-समर्थित नेटवर्क के साथ मिलकर गैर-मास्टर योग्य उम्मीदवारों को पद दिलवाए गए हैं।
भर्ती प्रक्रिया में कथित गड़बड़ियाँ
जांच में यह सामने आया है कि एक ही कम्पनी – ABS Infozon Pvt Ltd. – को कई नगरपालिकाओं में भर्ती सम्बंधित कार्य दिए गए थे, जिसमें प्रश्न-पत्र छपाई, OMR शीट का मूल्यांकन, मेरिट सूची तैयार करना आदि शामिल थे।
जांच एजेंसी के अनुसार, इस नेटवर्क में एजेंट, कंपनियों, राजनैतिक हस्तियों एवं सरकारी कर्मचारियों ने मिलकर एक षड्यंत्र रचा था। जिसके तहत उम्मीदवारों को निर्धारित फीस/भुगतान के बाद नौकरी दिलवाई गई। इस प्रकार भर्ती प्रक्रिया का मूल उद्देश्य — पारदर्शिता व योग्यता के आधार पर चयन — दरकिनार हो गया।
राजनीतिक परिदृश्य और राज्य-सरकार की प्रतिक्रिया
घोटाले के सामने आने के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। मंत्री सुजीत बोस ने यह कार्रवाई चुनाव-पूर्व “राजनीतिक प्रतिशोध” बताते हुए कहा है कि उनसे पहले भी कई छापेमारी हुईं लेकिन कोई सबूत सामने नहीं आया।
वहीं, विपक्षी दल एवं नागरिक समाज इस मामले को राज्य में सरकारी भर्ती व्यवस्था की कमज़ोरी और राजनीतिक हस्तक्षेप का प्रमाण मान रहे हैं। उनका कहना है कि यदि भर्ती प्रक्रिया — विशेष रूप से श्रेणी C एवं D पदों में — निष्पक्ष नहीं होगी, तो इसका असर सीधे आम जनता के रोज़गार अवसरों व प्रशासन के प्रति विश्वास पर पड़ेगा।
आम अभ्यर्थियों-पर क्या असर हुआ?
वर्तमान मामले में हजारों अभ्यर्थी शामिल हैं, जो इन भर्ती प्रक्रियाओं में रुचि रखते थे। यदि अधिकारी जांच में यह पाते हैं कि उनका चयन अनुचित तरीके से हुआ है, तो उन्हें नौकरी से वंचित किया जा सकता है, और चयन प्रक्रिया फिर से हो सकती है। इससे उन परिवारों में चिंता है, जिन्होंने भारी आवेदन शुल्क या एजेंटों को भुगतान भी किया हो सकता है।
इसके अलावा, इस तरह के घोटाले से भर्ती में पारदर्शिता का संकट पैदा होता है,—जो कि विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों के लिए ज्यादा चिंताजनक है।
आगे की कार्रवाई व जांच-प्रक्रिया
ईडी ने बताया है कि जांच अभी प्रारंभिक चरण में है और आगे कई अन्य तथ्य सामने आ सकते हैं, जिनमें राजनैतिक दलों के नाम, सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों का दखल तथा अतिरिक्त कंपनियों-एफ़ स्कीम शामिल हो सकती हैं।
राज्य सरकार को भी अब इस मामले में जवाब देना होगा कि भर्ती प्रक्रिया की पिछले वर्षों की समीक्षा कब की जाएगी, और भविष्य में ऐसी गड़बड़ियों को रोकने के लिए क्या ठोस उपाय किए जाएंगे। साथ ही, अभ्यर्थियों के हितों की रक्षा कैसे होगी—यह भी सवाल है।
इस प्रकार, पश्चिम बंगाल के नगर निकायों में भर्ती प्रक्रिया के संदर्भ में उठे इस घोटाले ने न केवल प्रशासनिक निष्पक्षता पर प्रश्न खड़ा किया है, बल्कि राजनीति-प्रशासन-निगरानी तंत्र के बीच तल्ख रिश्तों को भी उजागर किया है। जांच आगे बढ़ रही है और आने वाले समय में इसके परिणाम से सरकार, पार्टी, अभ्यर्थियों और जनता तीनों को बड़े असर का सामना करना पड़ सकता है।
यह समाचार पीटीआई(PTI) के इनपुट के साथ प्रकाशित किया गया है।