नागपुर नगररचना विभाग में भ्रष्टाचार का खुलासा
नागपुर महानगरपालिका के नगररचना विभाग में एक गंभीर घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। आवासीय उपयोग के लिए दी गई लीज भूमि पर एक बिल्डर को अवैध रूप से वाणिज्यिक और अस्पताल भवन बनाने की अनुमति दी गई। दस्तावेजों में फेरबदल कर भूखंड का क्षेत्रफल बढ़ाया गया और एफएसआई के साथ हेराफेरी की गई।

प्रशासक पर आरोप, अभियंताओं को मिली ढाल
शहर कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम नागपुर के विधायक विकास ठाकरे ने इस मामले को गंभीर भ्रष्टाचार बताया। उनका कहना है कि यह प्रशासनिक स्तर पर मिलीभगत का मामला है। ठाकरे के अनुसार, नजुल भूमि केवल आवासीय प्रयोजन के लिए दी गई थी। ऐसे में वाणिज्यिक और अस्पताल भवन की अनुमति देना न केवल लीज शर्तों का उल्लंघन है, बल्कि लोकहित के साथ धोखा भी है।
उन्होंने आरोप लगाया कि इंजीनियरों ने जानबूझकर भूखंड का आकार बढ़ाया और एफएसआई बढ़ाकर बिल्डर को अनुचित लाभ पहुंचाया। इन अनियमितताओं के स्पष्ट प्रमाण और विधिक राय होने के बावजूद प्रशासक डॉ. अभिजीत चौधरी ने किसी भी अभियंता पर कार्रवाई नहीं की।
शिकायतों के बावजूद नहीं हुई कार्रवाई
सेना अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल अनंत भागवत ने इस घोटाले की कई बार शिकायत की थी। उन्होंने नगररचना विभाग से अवैध निर्माण रोकने की मांग की। लेकिन एनएमसी ने उनकी शिकायतों को अनदेखा किया। वर्ष 2023 में नगररचना विभाग ने आठ मंजिला इमारत को आंशिक ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया।
भागवत ने कहा कि यह प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार का उदाहरण है। इसने जनता का भरोसा तोड़ा है।
विधायक ठाकरे की मांग, दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो
विकास ठाकरे ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और पालकमंत्री चंद्रशेखर बावनकुले से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप की मांग की। उन्होंने कहा कि दोषी अभियंताओं को निलंबित किया जाए और अवैध मंजूरियों को तुरंत रद्द किया जाए।
उनका कहना है कि यदि ऐसी अनियमितताएं जारी रहीं तो नागरिकों का प्रशासन पर विश्वास पूरी तरह खत्म हो जाएगा। ठाकरे ने यह भी कहा कि “प्रशासन को जनता के हित में काम करना चाहिए, न कि बिल्डरों के हित में।”
नगररचना विभाग की भूमिका पर सवाल
इस मामले ने नागपुर नगररचना विभाग की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। शहर में पहले भी कई बार अवैध निर्माण को लेकर शिकायतें सामने आ चुकी हैं। लेकिन यह मामला इसलिए अलग है क्योंकि इसमें सरकारी अधिकारियों की सीधी भूमिका सामने आई है।
सूत्रों के अनुसार, इस पूरे प्रकरण में कई इंजीनियरों, ठेकेदारों और बिल्डरों के बीच मिलीभगत की संभावना है। एनएमसी के भीतर जांच की मांग बढ़ रही है।
जनता में नाराजगी और पारदर्शिता की मांग
शहर के नागरिकों ने इस घटना को प्रशासनिक भ्रष्टाचार का प्रमाण बताया है। सोशल मीडिया पर लोग नगररचना विभाग की आलोचना कर रहे हैं। नागरिक संगठनों ने भी पारदर्शी जांच की मांग की है ताकि दोषियों को सजा मिले।
सरकार के लिए चुनौती
यह प्रकरण महाराष्ट्र सरकार के लिए एक चुनौती बन सकता है। विपक्ष इस मुद्दे को विधानसभा में उठा सकता है। यदि दोषियों पर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मुद्दा राजनीतिक विवाद का रूप ले सकता है।