Bihar Election 2025: प्रचार थमने के बाद अब जनता करेगी बिहार की सत्ता का फैसला

Bihar Election 2025
Bihar Election 2025: प्रचार थमने के बाद अब जनता करेगी बिहार की सत्ता का फैसला (File Photo)
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के प्रचार के बाद अब जनता के हाथ में सत्ता की चाबी है। मंगलवार को 20 जिलों की 122 सीटों पर मतदान होगा। विकास बनाम बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा जैसे मुद्दों पर चुनावी संग्राम चरम पर है। अब तय करेगा जनता का जनादेश — विकास या बदलाव।
नवम्बर 10, 2025

Bihar Election 2025: जनता के हाथ सत्ता की चाबी, अब तय होगा राज्य का भविष्य

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का प्रचार अभियान अपने अंतिम चरण पर पहुंच चुका है। सोमवार शाम तक सभी दलों ने अपने-अपने उम्मीदवारों के समर्थन में आखिरी दांव चला लिया। अब बारी है जनता की, जो मंगलवार को 20 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करेगी।

विकास बनाम बेरोजगारी की जंग

इस चुनावी समर में बिहार की राजनीति ने कई नए समीकरण देखे। जहां एनडीए ने विकास, सुशासन और स्थिरता का एजेंडा जनता के सामने रखा, वहीं महागठबंधन ने बेरोजगारी, शिक्षा, और महंगाई के मुद्दों पर सरकार को घेरा। जनता के बीच सबसे ज्यादा गूंजने वाले सवाल रहे—“रोजगार कहां है?”, “महंगाई कब रुकेगी?”, और “युवा कब आत्मनिर्भर बनेंगे?”

एनडीए ने अपने प्रचार में ‘डबल इंजन सरकार’ की उपलब्धियों को सामने रखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मिलकर राज्य के विकास की योजनाओं का बखान किया। दूसरी ओर, महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी और प्रवास की पीड़ा को मुख्य मुद्दा बनाकर जनता के बीच जनसंपर्क बढ़ाया।

सियासी दिग्गजों की जोरदार एंट्री

इस बार बिहार की सियासत में दिग्गज नेताओं की मौजूदगी ने माहौल को और अधिक रोमांचक बना दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव—सभी ने अपनी सभाओं से जनता को रिझाने का प्रयास किया।
आरोप-प्रत्यारोप, वादे, घोषणाएं और राजनीतिक व्यंग्य—इन सबने चुनावी मैदान को पूरी तरह गर्मा दिया।

स्थानीय मुद्दों का भी रहा असर

Bihar Election 2025: बिहार के कई क्षेत्रों में स्थानीय मुद्दों ने भी चुनाव को प्रभावित किया है। किसानों की फसल खरीद, शिक्षा संस्थानों की स्थिति, और स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा जैसे विषय मतदाताओं के मन में गहराई से बैठे हुए हैं।
कई विधानसभा क्षेत्रों में जातीय समीकरण और नए चेहरों की मौजूदगी ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। कुछ जगहों पर निर्दलीय उम्मीदवारों की लोकप्रियता ने भी सियासी दलों की चिंता बढ़ा दी है।

मतदाता की भूमिका सबसे अहम

अब जबकि प्रचार थम चुका है, असली फैसला जनता के हाथ में है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मतदाता जब मंगलवार को वोट डालने पहुंचेंगे, तो वे केवल किसी उम्मीदवार के पक्ष या विपक्ष में नहीं, बल्कि राज्य के भविष्य के लिए मतदान करेंगे।
हर वोट के साथ यह तय होगा कि जनता विकास की निरंतरता चाहती है या बदलाव की नई दिशा।

मतदान के बाद बढ़ेगी सियासी हलचल

चुनाव के बाद 14 नवंबर को जब मतगणना शुरू होगी, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि जनता ने किसके पक्ष में भरोसा जताया।
फिलहाल पूरे बिहार में एक ही सवाल गूंज रहा है—“कौन खरा उतरेगा मतदाता की कसौटी पर?”
सियासी दफ्तरों, चाय की दुकानों और गांव की चौपालों तक, हर जगह चुनावी चर्चा जोरों पर है।
एक ओर सत्तारूढ़ दल के समर्थक आत्मविश्वास से लबरेज हैं, वहीं विपक्षी खेमे में बदलाव की उम्मीद की लहर है।

बिहार चुनाव 2025 का यह चरण न केवल सियासी दलों की परीक्षा है, बल्कि जनता के विवेक का भी परीक्षण है।
अब देखना यह है कि जब मतपेटियां खुलेंगी, तो बिहार का जनादेश विकास की निरंतरता को चुनेगा या फिर बदलाव की नई शुरुआत करेगा।

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