Bihar Politics: कांग्रेस की स्थिति पर सबकी निगाहें
पटना। बिहार की राजनीति में इस समय सबसे अधिक चर्चा कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी स्थिति को लेकर है। विधानसभा चुनाव के परिणाम आने से पहले ही पार्टी के भीतर असंतोष की लहर तेज हो गई है। एग्जिट पोल के अनुमान ने जैसे ही कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन की तस्वीर पेश की, वैसे ही पार्टी के भीतर नाराज धड़े ने सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। अब यह केवल सीटों की बात नहीं रह गई है, बल्कि प्रदेश संगठन के नेतृत्व का भविष्य भी दांव पर लग गया है।
राजेश राम और कृष्णा अल्लावारु की जोड़ी पर प्रश्नचिह्न
कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावारु और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम की जोड़ी इस समय पार्टी के भीतर विवाद का केंद्र बनी हुई है। टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार की रणनीति तक, दोनों पर कई नेताओं ने गंभीर आरोप लगाए हैं। वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि प्रदेश नेतृत्व ने जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हुए बाहरी चेहरों को तरजीह दी, जिसके कारण संगठन की पकड़ कमजोर हुई।
पार्टी के पूर्व वरिष्ठ नेता डॉ. शकील अहमद का इस्तीफा भी इसी असंतोष की कड़ी माना जा रहा है। कई पुराने कार्यकर्ता खुले तौर पर कह रहे हैं कि कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व ने “दिल्ली के आदेश” के आगे संगठन की नब्ज को अनसुना कर दिया।
टिकट बंटवारे में असंतोष और स्थानीय नेताओं की अनदेखी
Bihar Politics: चुनाव के दौरान टिकट वितरण में कई जिलों से विरोध के स्वर उठे। प्रदेश के किसान कामगार प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष मनोज कुमार ने आरोप लगाया कि “आयातित नेताओं” को बढ़ावा देकर स्थानीय नेतृत्व को पूरी तरह किनारे कर दिया गया। उन्होंने कहा कि “जमीनी हकीकत को दरकिनार कर बनाए गए झूठे सर्वे रिपोर्ट” के आधार पर कई कमजोर प्रत्याशियों को टिकट दिया गया।
मधुबनी से लेकर गया तक कई जगहों पर पार्टी कार्यकर्ताओं ने विरोध जताया। मधुबनी में तो एक प्रत्याशी मतदान से तीन दिन पहले ही क्षेत्र छोड़कर चले गए, जिससे पार्टी की साख को गहरा धक्का लगा। पोलिंग एजेंट तक को नाश्ते-पानी के लिए खर्च का इंतजाम खुद करना पड़ा।
एग्जिट पोल ने बढ़ाई बेचैनी
अधिकांश एग्जिट पोल में कांग्रेस के प्रदर्शन को निराशाजनक बताया गया है। जहां एनडीए गठबंधन के मजबूती से वापसी की संभावना जताई जा रही है, वहीं कांग्रेस के खाते में अपेक्षित सीटें आती नहीं दिख रहीं। ऐसे में यदि 14 नवंबर को आने वाले नतीजे भी यही संकेत दोहराते हैं, तो यह तय माना जा रहा है कि बिहार कांग्रेस में बड़े स्तर पर फेरबदल होंगे।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि दिल्ली हाईकमान भी बिहार संगठन की निष्क्रियता और कमजोर रणनीति से असंतुष्ट है। कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि नतीजों के बाद प्रदेश कमेटी का पुनर्गठन और नेतृत्व में परिवर्तन लगभग निश्चित है।
अंदरूनी मतभेद और संगठन की दिशा
कांग्रेस की पुरानी समस्या रही है—संगठन और रणनीति में तालमेल का अभाव। स्थानीय नेताओं का कहना है कि चुनाव के दौरान पार्टी की ज़मीन पर पकड़ कमजोर थी क्योंकि ब्लॉक स्तर पर संगठन निष्क्रिय हो गया था। कई जिलों में प्रचार सामग्रियाँ समय पर नहीं पहुँचीं, और स्थानीय स्तर पर समन्वय की कमी दिखी।
अब जबकि परिणाम से पहले ही असंतोष खुलकर सामने आने लगा है, यह स्पष्ट है कि पार्टी के भीतर आत्ममंथन की आवश्यकता है। नेतृत्व यदि समय रहते संगठन के भीतर संवाद स्थापित नहीं करता, तो 14 नवंबर के बाद असंतोष का यह स्वर खुला विद्रोह बन सकता है।
भविष्य की राह: सुधार या बदलाव | Bihar Politics
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस के लिए यह चुनाव केवल परिणाम का नहीं, बल्कि “विश्वसनीयता की परीक्षा” भी है। यदि पार्टी इस बार कमजोर प्रदर्शन करती है, तो दिल्ली हाईकमान को बिहार में “नई टीम” के गठन की दिशा में कदम बढ़ाना ही होगा।
राज्य की जनता और कार्यकर्ता अब नेतृत्व से उत्तरदायित्व की अपेक्षा कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या “राम-कृष्ण” की जोड़ी इस परीक्षा में खरी उतर पाएगी या फिर कांग्रेस के लिए बिहार में एक नया अध्याय शुरू होने वाला है—यह तय करेगा 14 नवंबर का जनादेश।