परिवर्तन की बयार में नीतीश की स्थिर उपस्थिति
बिहार की राजनीति में बीते वर्षों में कई उतार–चढ़ाव देखने को मिले, परंतु कुछ तत्व ऐसे रहे जो निरंतर स्थिरता और भरोसे की पहचान बनकर उभरे। उन्हीं तत्वों में सबसे प्रमुख नाम नीतीश कुमार का है। राज्य के ताज़ा चुनाव परिणामों में एनडीए ने व्यापक बहुमत हासिल कर यह स्पष्ट कर दिया कि जनता ने विकास, सुशासन और राजनीतिक संतुलन पर आधारित नेतृत्व को एक बार फिर मंजूरी दी है।
चुनाव बाद जिस तरह “बिहार का एक ही सितारा, नीतीश कुमार” का स्वर गूंजा, वह सिर्फ एक राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि उस विश्वास का प्रतीक था जिसे जनता ने वर्षों के अनुभव के बाद विकसित किया है।
विकास आधारित राजनीति और ‘सुशासन बाबू’ की प्रतिष्ठा
नीतीश कुमार को लंबे समय से ‘सुशासन बाबू’ के रूप में जाना जाता है और इसकी वजह सिर्फ राजनीतिक छवि नहीं, बल्कि जमीनी बदलाव हैं। बिजली आपूर्ति में सुधार, ग्रामीण सड़कों का विस्तार, शहरों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, कानून-व्यवस्था में शक्ति तथा शिक्षा–स्वास्थ्य ढांचे में कई सुधारों ने उन्हें जन–विश्वास दिलाया।
सबसे उल्लेखनीय यह रहा कि सत्ता विरोधी लहर, स्वास्थ्य संबंधी अफ़वाहों और राजनीतिक हमलों के बावजूद नीतीश की स्वच्छ छवि कभी धूमिल नहीं हुई। उन पर व्यक्तिगत स्तर पर भ्रष्टाचार का आरोप न लगना, उनकी राजनीतिक शैली को विशिष्ट बनाता है।
सामाजिक संतुलन और जातीय विभाजन के बीच उनकी राजनीतिक कला
बिहार का जातीय समीकरण दशकों से राजनीति की धुरी रहा है। ऐसे परिदृश्य में कोई भी नेता तब तक स्थायी नहीं रहता जब तक वह सामाजिक संतुलन की कला में महारथ हासिल न कर ले।
नीतीश इस कला में हमेशा से सफल रहे हैं। ईबीसी, गैर-यादव ओबीसी, महिलाओं तथा अल्पसंख्यक समूहों का व्यापक समर्थन प्राप्त करना उनकी राजनीतिक रणनीति की मजबूती को दर्शाता है।
कुर्मी समुदाय से होने के बावजूद उन्होंने किसी एक जाति पर निर्भर राजनीति करने के बजाय व्यापक सामाजिक संरचना को केंद्र में रखा। यह उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि है।
वोट ट्रांसफर की अद्वितीय क्षमता
चुनावी गणित का एक बड़ा पहलू यह है कि कोई नेता अपने साथ जुड़े मतदाताओं को किस तरह गठबंधन सहयोगियों तक ट्रांसफर कर सकता है।
नीतीश कुमार इस कला में अद्वितीय माने जाते हैं। इसी वजह से 2020 में जेडीयू की सीटें 85 तक पहुंचीं और इस बार भी एनडीए को मिले समर्थन में उनकी भूमिका निर्णायक रही।
चाहे वे किसी भी गठबंधन में रहे हों, उनका समर्थन–आधार उनके साथ ही चलता रहा। यह राजनीतिक वफादारी और विश्वास उनकी सबसे मजबूत पूंजी है।
शांत और संयमित प्रचार शैली
देश की राजनीति में जहां आक्रामक भाषण, जातीय कटाक्ष और व्यक्तिगत हमले आम होते जा रहे हैं, वहीं नीतीश अपनी सादगी और संयमित शैली के लिए जाने जाते हैं।
उन्होंने अपने चुनाव अभियान में विरोधियों पर कटाक्ष तक सीमित रहकर सकारात्मक प्रचार को तरजीह दी। उनकी रैलियों में न तो उत्तेजना दिखी और न ही विभाजनकारी बयानबाजी।
9 नवंबर तक 184 जनसभाओं का संबोधन यह दिखाता है कि उम्र के इस पड़ाव पर भी उनका समर्पण कम नहीं हुआ है।
भविष्य की राह और जनता का विश्वास
एनडीए की इस भारी जीत के साथ नीतीश कुमार अपने दसवें कार्यकाल की ओर बढ़ रहे हैं। जनता ने स्पष्ट संदेश दिया है कि अनुभव, संतुलन और सुशासन ही राज्य की आवश्यकताएँ हैं।
अब सबकी निगाहें इस बात पर होंगी कि आगामी वर्षों में वे विकास की गति को किस दिशा में आगे बढ़ाते हैं और राज्य को प्रगतिशील मॉडल की ओर किस प्रकार ले जाते हैं।