बिहार की नई सरकार के सामने आर्थिक चुनौती: वादों की पूर्ति और शराबबंदी की दुविधा

Bihar Election Results 2025
Bihar Election Results 2025: बिहार सरकार के आर्थिक दबाव और शराबबंदी पर पुनर्विचार की चुनौती (File Photo)
बिहार चुनाव 2025 के बाद नई सरकार आर्थिक दबाव में है। किसानों, महिलाओं और छात्रों से किए गए वादों के लिए भारी संसाधनों की जरूरत है। शराबबंदी की समीक्षा की चर्चा तेज है, क्योंकि इससे बड़ा राजस्व मिल सकता है। लेकिन राजनीतिक जोखिम और वित्तीय संकट सरकार के सामने बड़ी चुनौती बनकर खड़े हैं।
नवम्बर 15, 2025

बिहार चुनाव परिणामों के बाद वित्तीय संकट की नई कहानी

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने नई सरकार के सामने एक बार फिर वही पुरानी चुनौती खड़ी कर दी है—घोषणापत्र के वादों को पूरा करने के लिए आखिर धन आएगा कहां से। किसानों, छात्रों और कमजोर वर्गों के लिए की गई आर्थिक घोषणाओं के साथ-साथ बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा विकास के वादे भी किए गए हैं। ऐसे में राज्य का वित्तीय ढांचा एक कठिन कसौटी पर है।

राज्य की राजकोषीय स्थिति की वास्तविक तस्वीर

पिछले वर्ष राज्य का राजकोषीय घाटा सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 9.2 प्रतिशत था, जबकि इस वर्ष इसे 5.3 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब राजस्व स्रोत बढ़ें या व्यय में कटौती हो। लेकिन बिहार में स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत दिख रही है क्योंकि एनडीए सरकार ने चुनावी घोषणाओं में भारी वित्तीय बोझ का वादा कर दिया है।

किसानों और छात्रों के लिए भारी खर्च की तैयारी

राज्य के लगभग 74 लाख किसानों को प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता देने का वादा किया गया है। अनसूचित जाति के छात्रों को विशेष आर्थिक सहायता की बात भी घोषणापत्र में कही गई है। इन दोनों वर्गों पर ही हजारों करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा। इसके अलावा, मछुआरों और अन्य कमजोर वर्गों के लिए भी सहायता राशि का प्रावधान किया जाएगा।

दो नए शहरों के निर्माण का बड़ा संकल्प

सरकार ने दो ग्रीनफील्ड शहरों—नया पटना और सीतापुरम—के निर्माण की घोषणा की है। यह परियोजना राज्य की दीर्घकालिक विकास योजना का हिस्सा है, लेकिन इसे बनाने में भारी पूंजीगत व्यय लगेगा। कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की योजना भी पूंजीगत निवेश की मांग करती है।

शराबबंदी की समीक्षा पर उठते सवाल

राज्य में लागू शराबबंदी 2016 से लगातार चर्चा का विषय रही है। अब एक बार फिर यह मुद्दा सामने है, क्योंकि कई विशेषज्ञ मानते हैं कि शराबबंदी हटने पर राज्य को बड़ा राजस्व लाभ मिल सकता है। 2015-16 में शराब बिक्री से राज्य सरकार को 3,000 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व मिलता था। मौजूदा कीमतों और मांग को देखते हुए यह राशि और अधिक हो सकती है।

शराबबंदी हटाने का राजनीतिक जोखिम

हालांकि शराबबंदी हटाना या उसमें ढील देना आसान नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण महिला मतदाताओं का समर्थन है, जो शराबबंदी के पक्ष में मजबूती से खड़ी हैं। एनडीए सरकार के लिए यह निर्णय न सिर्फ आर्थिक बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी जोखिम भरा होगा।

महिला रोजगार योजना पर बड़ा व्यय

मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 1.5 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये देने की घोषणा की गई थी। इस योजना को लागू करने पर लगभग 15,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे कि वृद्धावस्था, विधवा और दिव्यांग पेंशन को बढ़ाकर 1,100 रुपये करना भी अतिरिक्त 8,500 करोड़ का बोझ डालेगा।

बिजली सब्सिडी से नया वित्तीय दबाव

125 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने की घोषणा से लगभग 4,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च सामने आएगा। पहले से चल रही योजनाओं के साथ यह राशि लगभग 28,000 करोड़ रुपये से अधिक पहुंच जाती है।

वित्तीय वर्ष पूरा करना कैसे होगा संभव

राज्य के व्यय का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान में ही चला जाता है। ऐसे में अन्य क्षेत्रों में कटौती की गुंजाइश बहुत कम है। इसलिए सरकार के सामने अब दो विकल्प हैं—या तो नए राजस्व स्रोत खोजे जाएं, या फिर कुछ योजनाओं में बड़े बदलाव करें।

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