गया की राजनीति में मांझी परिवार का उभार और बदलती नेतृत्व–धुरी
गया जिले की राजनीतिक सरंचना पिछले दो दशकों में जिस रूप में परिवर्तित हुई है, वह किसी संयोग का परिणाम नहीं, बल्कि संघर्ष, शिक्षा, जागरूकता और जनसेवा पर आधारित एक मजबूत सामाजिक–राजनीतिक प्रक्रिया का फल है। मांझी परिवार की यह त्रिकोणी विरासत—ज्योति देवी, उनकी पुत्री दीपा मांझी और दामाद डॉ. संतोष सुमन—आज गया की सत्ता–समीकरणों को एक नई दिशा प्रदान कर रही है। यह यात्रा केवल चुनावी जीत की कहानी नहीं, बल्कि गांव की मिट्टी से उठकर नेतृत्व के सर्वोच्च पायदान तक पहुंचने का प्रेरक उदाहरण है।
दीपा मांझी: संघर्ष, शिक्षा और नेतृत्व की निर्मिति
दीपा कुमारी, जो आज दीपा मांझी के नाम से अपनी राजनीतिक पहचान स्थापित कर चुकी हैं, उनका बचपन संघर्ष और सामाजिक सीमाओं को चुनौती देने की मिसाल रहा है। बापू ग्राम लोधवे से फ़तेहपुर स्थित प्रोजेक्ट कन्या उच्च विद्यालय तक रोज़ाना लगभग 10 किलोमीटर का सफर राजदूत मोटरसाइकिल से तय करना उस समय किसी भी ग्रामीण लड़की के लिए आसान नहीं था।
उस दौर में गांवों में लड़कियों का साइकिल चलाना भी सामाजिक परंपराओं के विपरीत माना जाता था, ऐसे में दीपा का दैनिक सफर केवल भौगोलिक दूरी नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक दूरी को भी पार करता था। जंगलों और पहाड़ी रास्तों में भय, संकोच और टोकाटाकी—सभी बाधाएं थीं, लेकिन शिक्षा के प्रति उनका संकल्प कभी डगमगाया नहीं। यही दृढ़ता बाद में नेतृत्व की नींव बनी।
उच्च शिक्षा पूर्ण करने के बाद 20 नवंबर 2002 को उनका विवाह पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के सुपुत्र और वर्तमान मंत्री डॉ. संतोष कुमार सुमन से हुआ। विवाह के बाद उनके सामाजिक और राजनीतिक सरोकार और व्यापक हुए।
आज वह इमामगंज विधानसभा क्षेत्र से लगातार दो बार जनता का विश्वास जीत चुकी हैं। उनकी राजनीतिक सक्रियता और जनता से सीधा संवाद उन्हें क्षेत्र की एक सशक्त युवा नेता के रूप में स्थापित कर चुका है।
ज्योति देवी: मिट्टी से उठी जननेता की यात्रा
मां–बेटी की इस सफल परंपरा का वास्तविक आधार ज्योति देवी का संघर्षपूर्ण जीवन है। मोहनपुर प्रखंड के साधारण गांव गोपालकेड़ा से उभरकर नेतृत्व तक उनके सफर में सेवा, शिक्षण और सामाजिक उत्थान का गहरा प्रभाव दिखाई देता है।
भंसाली ट्रस्ट द्वारा संचालित बगहा आश्रम से प्रारंभ हुई शिक्षा ने उनके जीवन को नई दिशा दी। बाद में वे और उनके पति बालेश्वर प्रसाद को लोधवे टोला स्थित बापू ग्राम आश्रम में अनुसूचित जाति के बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी मिली।
उनका कार्य केवल शिक्षण तक सीमित नहीं रहा। गांव की महिलाओं को जागरूक करना, बच्चों के भविष्य को बेहतर दिशा देना और सामाजिक परिवर्तनों के लिए माहौल तैयार करना उनकी प्राथमिकता बन गया।
उन्होंने इंटर तक की शिक्षा प्राप्त की और अपनी बेटी दीपा को एमए करने तक हर कठिन परिस्थिति के बावजूद प्रेरित करती रहीं।
ज्योति देवी ने कृषि क्षेत्र में भी नवाचार की पहल की। श्रीविधि धान की खेती को गया जिले में सफलतापूर्वक शुरू करवाने का श्रेय उन्हें जाता है, जो आज एक मॉडल खेती के रूप में सामने है।
गरीबी और सामाजिक वर्जनाओं को करीब से देखने के अनुभव ने उन्हें गरीबों और दलित समुदाय की समस्याओं के प्रति और संवेदनशील बनाया। यह संवेदनशीलता ही उनकी राजनीतिक शक्ति का आधार बनी।
आज वह बाराचट्टी विधानसभा से लगातार तीसरी बार भारी बहुमत से जीतकर क्षेत्र की मजबूत नेता बन चुकी हैं।
डॉ. संतोष सुमन: युवा शक्ति, अनुभव और संतुलन का संयोजन
परिवार की इस राजनीतिक धुरी में अनुभव, प्रशासनिक समझ और नीति–निर्माण का योगदान डॉ. संतोष कुमार सुमन का है।
विधान परिषद सदस्य के रूप में उनके कार्यकाल ने उन्हें सरकार की कार्यप्रणाली, प्रशासनिक ढांचे और नीति–निर्धारण के वास्तविक सरोकारों से परिचित कराया।
वर्तमान में मंत्री के रूप में उनकी भूमिका मांझी परिवार के राजनीतिक प्रभाव को संतुलन और व्यापकता प्रदान करती है।
विकास, सामाजिक न्याय और शिक्षा पर केंद्रित उनकी सोच परिवार के सामाजिक–राजनीतिक दिशा–निर्देशों को और मजबूत बनाती है।
उनकी सक्रियता ही वह आधार है, जो मां और बेटी के जमीनी अनुभव को नीतिगत लक्ष्यों से जोड़ती है।
जनता का विश्वास: एक परिवार, तीन जनादेश
गया जिले में मांझी परिवार की लगातार बढ़ती राजनीतिक पकड़ जनता के भरोसे का प्रमाण है।
ज्योति देवी तीसरी बार बाराचट्टी से जीत चुकी हैं।
दीपा मांझी ने इमामगंज से दोबारा जनादेश हासिल किया है।
और डॉ. संतोष सुमन मंत्री पद पर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
तीनों की संयुक्त नेतृत्व क्षमता ने इस परिवार को गया की राजनीति का निर्णायक शक्ति केंद्र बना दिया है।
सामाजिक बदलाव की कहानी: राजनीति से ऊपर उठती विरासत
मांझी परिवार का यह उभार केवल सत्ता का समीकरण नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की गहरी प्रक्रिया का संकेत है।
जहां कभी लड़कियों की शिक्षा संघर्ष का विषय थी, जहां सामाजिक वर्जनाएँ विकास के रास्तों को रोकती थीं, वहां आज महिलाएँ पंचायत से लेकर विधानसभा तक नेतृत्व की प्रतीक बन चुकी हैं।
मां–बेटी अपने अतीत के संघर्ष और वर्तमान की जिम्मेदारियों के बीच पुल बनाते हुए विकास की राह पर आगे बढ़ रही हैं। जनता ने उन पर भरोसा जताया है और उम्मीद की है कि यह संघर्ष अब नीतियों और योजनाओं के रूप में विस्तारित होगा।
गया की राजनीति में मांझी परिवार की यह त्रिकोणी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है।