मुठभेड़ का घटनास्थल और प्रारंभिक परिस्थितियां
आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू ज़िले में मंगलवार को सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच हुई मुठभेड़ में शीर्ष माओवादी कमांडर मदवी हिड़मा सहित छह उग्रवादी मारे जाने की सूचना है। यह मुठभेड़ आंध्र–ओडिशा–छत्तीसगढ़ त्रिकोणीय सीमा पर स्थित मारेडुमल्ली वन क्षेत्र में तब हुई, जब सुरक्षा बलों ने व्यापक खोज अभियान चलाया। तीनों राज्यों की पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के संयुक्त अभियान के दौरान मिली गोपनीय सूचना ने इस कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त किया।
हिड़मा की भूमिका और माओवादी नेटवर्क पर प्रभाव
मदवी हिड़मा को भारतीय सुरक्षा एजेंसियां पिछले कई वर्षों से सबसे खतरनाक और रणनीतिक रूप से सक्षम माओवादी कमांडर के रूप में देखती रही हैं। पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) की बटालियन नंबर 1 का वह प्रमुख कमांडर था, जिसे माओवादी संगठन का सबसे घातक हमला दस्ते के रूप में जाना जाता है। बस्तर क्षेत्र से आने वाले हिड़मा पर पचास लाख रुपये का इनाम घोषित था और उसकी भूमिका कई बड़े हमलों में संदिग्ध मानी जाती रही।
सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि हिड़मा की मौत माओवादी नेटवर्क पर गहरा आघात पहुँचाएगी, विशेषकर उन इलाकों में जहां वर्षों से जंगल आधारित गुरिल्ला गतिविधियाँ संगठन की ताकत का आधार रही हैं।
संयुक्त बलों की रणनीति और मुठभेड़ की परिस्थितियां
सूत्रों के अनुसार, मारेडुमल्ली के घने जंगलों में सुरक्षा बलों की टीमें लंबे समय से माओवादी गतिविधियों की निगरानी कर रही थीं। मंगलवार की सुबह प्राप्त एक खुफिया इनपुट के आधार पर सुरक्षाबलों ने क्षेत्र को घेर लिया और संदिग्ध माओवादी समूह को आत्मसमर्पण का आदेश दिया। आरोप है कि माओवादी समूह ने सुरक्षा बलों पर स्वतः गोलीबारी शुरू कर दी, जिसके पश्चात जवाबी कार्रवाई की गई। लगभग एक घंटे तक चली इस गोलीबारी में छह माओवादी मारे गए।
सुरक्षा बलों की हालिया सफलताएं
पिछले कुछ महीनों में छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश की सीमा पर सुरक्षा बलों ने कई अभियान चलाए हैं जिनमें महत्वपूर्ण सफलता मिली है। विश्लेषकों का मानना है कि इन अभियानों के कारण माओवादी संगठनों की पुरानी पकड़ वाली कई जगहों पर उनकी सक्रियता सिमटने लगी है। मारेडुमल्ली की यह मुठभेड़ भी उन्हीं सफल अभियानों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी मानी जा रही है।
हिड़मा के नेतृत्व में हुए प्रमुख हमले
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्टों के अनुसार, हिड़मा पर कुल 26 बड़े हमलों का आरोप था, जिनमें पुलिस और अर्धसैनिक बलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। वर्ष 2010 में दंतेवाड़ा में CRPF के 76 जवानों की शहादत का मामला हिड़मा से जोड़ा जाता है, जिसे भारत में अब तक की सबसे भीषण माओवादी घटना माना गया। इसके अतिरिक्त वर्ष 2013 में झीरम घाटी हमले में भी उसकी भूमिका को लेकर गंभीर संदेह व्यक्त किए जाते रहे हैं। इस हमले में वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोग मारे गए थे। वर्ष 2021 में छत्तीसगढ़ के सुकमा क्षेत्र में केंद्रीय बलों के 22 जवानों की हत्या में भी हिड़मा को प्रमुख साजिशकर्ता माना गया।
माओवादियों के पुनर्गठन प्रयासों पर रोक
पिछले कुछ वर्षों में माओवादी संगठन आंध्र–ओडिशा सीमा क्षेत्र में अपने खोए हुए आधार को पुनः स्थापित करने के प्रयास कर रहे थे। विशेषज्ञों के अनुसार, यह मुठभेड़ और हिड़मा की संभावित मौत इस पुनर्गठन अभियान को एक भारी झटका दे सकती है। सुरक्षा एजेंसियों को आशा है कि इस घटना के बाद संगठन की जंगल आधारित इकाइयों की क्षमता काफी कमजोर पड़ेगी।
माओवादी रणनीति में संभावित बदलाव
विशेषज्ञों का मानना है कि मदवी हिड़मा की मौत के बाद माओवादी संगठन अपनी रणनीति में बड़े बदलाव ला सकता है। लंबे समय से जंगल आधारित गुरिल्ला युद्ध को संचालित करने वाली उसकी इकाई अब नेतृत्वहीन हो सकती है, जिससे संगठन छोटी-छोटी टुकड़ियों में विभाजित होकर छिपे रहने की नीति अपनाएगा। सुरक्षा एजेंसियां भी ऐसी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए अपनी तैनाती और खुफिया ढांचे को मजबूत कर रही हैं, ताकि किसी नए हमले की आशंका को समय रहते रोका जा सके।
ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षा और विश्वास बहाली
मुठभेड़ के बाद सुरक्षा बलों ने आसपास के गांवों में विश्वास बहाली अभियान शुरू कर दिया है। कई ग्रामीणों ने वर्षों से माओवादी दबाव में जीवन बिताया है और ऐसे अभियानों के बाद उनके भीतर भय और असुरक्षा की भावना उभरना स्वाभाविक है। पुलिस और प्रशासन अब स्थानीय समुदायों से संवाद कर उन्हें आश्वस्त कर रहे हैं कि क्षेत्र में विकासात्मक गतिविधियाँ तेज की जाएंगी और सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी।
विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएं और भविष्य की संभावनाएं
राष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि यह मुठभेड़ नक्सल समस्या के समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, किंतु इससे संघर्ष पूरी तरह समाप्त होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। माओवादी संगठन अक्सर अपने शीर्ष नेताओं के खोने के बाद भी कुछ समय में नए नेतृत्व को उभार लेते हैं। हालांकि हिड़मा जैसा अनुभवी और रणनीतिक नेता पुनः खड़ा करना संगठन के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहकर इस कमजोरी के दौर में माओवादी ढांचे को पूरी तरह ध्वस्त करने का प्रयास करना चाहिए।
भविष्य की सुरक्षा चुनौतियां और अभियान की दिशा
सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, मुठभेड़ के बाद कई माओवादी जंगल के भीतरी क्षेत्रों में भाग निकले होने की आशंका है। उन्हें पकड़ने के लिए व्यापक तलाशी अभियान जारी है। अधिकारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में इन क्षेत्रों में संयुक्त बलों की तैनाती और मजबूत की जाएगी ताकि पुनः संगठित होने की किसी भी कोशिश को विफल किया जा सके। यह भी उम्मीद जताई जा रही है कि संगठन के शीर्ष नेतृत्व की इस बड़ी क्षति के बाद कई माओवादी आत्मसमर्पण का विकल्प चुन सकते हैं।
यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।