रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा कई मायनों में बेहद खास मानी जा रही है। यह दौरा चार साल बाद हो रहा है और इस बार की बातचीत में कच्चे तेल का व्यापार सबसे बड़ा मुद्दा रहने वाला है। रूस भारत को तेल खरीदने पर जो भारी छूट देता आया है, उसे जारी रखने की पेशकश करने की तैयारी में है। यूक्रेन युद्ध के कारण रूसी अर्थव्यवस्था पर पड़े दबाव के बीच भारत जैसे बड़े खरीदार को खोना रूस बिल्कुल भी नहीं चाहता।
दिसंबर के पहले हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच सालाना शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। इस मुलाकात में ऊर्जा, रक्षा और व्यापारिक रिश्तों पर गहन चर्चा होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस हर हाल में भारत को अपने साथ जोड़े रखना चाहता है।
रूसी तेल व्यापार क्यों है इतना जरूरी
यूक्रेन के साथ जारी युद्ध और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने रूसी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह झकझोर दिया है। ऐसे में भारत रूस के लिए एक जीवन रेखा की तरह साबित हुआ है। पिछले तीन सालों में भारत ने रूस से भारी मात्रा में तेल खरीदा है, जिससे रूसी तेल उद्योग को राहत मिली है।
लेकिन हाल के महीनों में भारत ने रूसी तेल का आयात कम करना शुरू कर दिया है। यह कमी रूस के लिए चिंता का बड़ा कारण बन गई है। कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार, रूसी पक्ष ने भारत को संकेत दिया है कि पहले जैसी छूट फिर से दी जा सकती है। इसका मकसद साफ है – भारत को फिर से रूसी तेल की खरीद बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना।
भारत के लिए रूसी तेल कितना जरूरी रहा
साल 2021 में रूसी तेल भारत के कुल आयात का महज तीन फीसद था। लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद यह आंकड़ा तेजी से बढ़ा और 2024 तक 37 फीसद तक पहुंच गया। इस दौरान रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश बन गया।
2024-25 वित्तीय वर्ष में रूस ने भारत के कुल कच्चे तेल आयात का 35 फीसद हिस्सा पूरा किया। अक्टूबर 2025 में रूस के कुल तेल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 38 फीसद रही, जो चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। इस बढ़ोतरी की मुख्य वजह रही रूस की तरफ से दी जाने वाली भारी छूट, जिसने भारतीय रिफाइनरियों को आकर्षित किया।
रिलायंस इंडस्ट्रीज की जामनगर रिफाइनरी समेत कई बड़ी रिफाइनरियों ने इस सस्ते तेल का फायदा उठाया। साल 2024 में रूस ने भारत को कुल 67.15 अरब डॉलर का निर्यात किया, जिसमें कच्चे तेल का योगदान सबसे ज्यादा रहा।
अब क्यों बदल रही है स्थिति
हालांकि अब हालात बदलते दिख रहे हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने साफ कर दिया है कि वह रूसी तेल का आयात बंद करने जा रही है। दिसंबर 2025 में भारत का कुल रूसी तेल आयात तीन साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच सकता है।
यह कमी रूस के लिए बड़ा झटका है क्योंकि भारत उसका दूसरा सबसे बड़ा तेल खरीदार देश है। भारत की हिस्सेदारी कम होने से रूसी तेल उद्योग पर भारी दबाव आ सकता है। रूस की अर्थव्यवस्था में तेल उद्योग से आने वाला कर कुल राजस्व का 40 फीसद होता है।
रूसी अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल
यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों की मार से रूसी अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई है। साल 2025 में रूस की जीडीपी विकास दर एक फीसद से भी कम रहने का अनुमान है। वहीं महंगाई की दर आठ फीसद से ऊपर चल रही है।
इन परिस्थितियों में रूस के लिए भारत जैसे विशाल खरीदार को खोना बहुत महंगा साबित हो सकता है। पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस के लिए नए बाजार तलाशना मुश्किल है। चीन के अलावा किसी और देश में इतनी बड़ी मात्रा में तेल खरीदने की क्षमता भी नहीं है।
रूस की दीर्घकालीन योजना
रूसी तेल कंपनियों ने संकेत दिया है कि वे किसी भी कीमत पर भारत जैसे बड़े बाजार को खोना नहीं चाहतीं। रूस की योजना अगले दो दशक तक अपने सभी प्रमुख तेल उत्पादन क्षेत्रों से उत्पादन बढ़ाने की है।
इस बढ़े हुए उत्पादन की खपत तभी हो सकती है जब भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था इसे खरीदे। यही कारण है कि रूस भारत को हर संभव छूट और सुविधा देने को तैयार है।
पुतिन की यात्रा का महत्व
व्लादिमीर पुतिन चार साल बाद भारत आ रहे हैं। इससे पहले वह दिसंबर 2021 में भारत आए थे, जो यूक्रेन युद्ध शुरू होने से ठीक पहले का समय था। विशेषज्ञों का मानना है कि उसी दौरे में भारत-रूस तेल व्यापार की जमीन तैयार हुई थी।
अब जबकि यूक्रेन युद्ध की समाप्ति के लिए अमेरिका और यूरोपीय देश ठोस पहल कर रहे हैं, ऐसे समय में पुतिन की नई दिल्ली यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
रक्षा और ऊर्जा सहयोग की संभावना
सरकारी अधिकारियों के अनुसार, आगामी भारत-रूस सालाना शिखर सम्मेलन में रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग सबसे बड़े मुद्दे होंगे। रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय ने भी कहा है कि इस यात्रा का मुख्य फोकस आर्थिक साझेदारी पर रहेगा।
रक्षा क्षेत्र में भारत और रूस के बीच लंबे समय से मजबूत रिश्ते रहे हैं। भारतीय सेना का बड़ा हिस्सा रूसी हथियारों पर निर्भर है। इस यात्रा में रक्षा उपकरणों की खरीद, संयुक्त उत्पादन और तकनीकी सहयोग पर चर्चा होने की उम्मीद है।
भारत के लिए क्या फायदे हो सकते हैं
अगर रूस फिर से भारी छूट पर तेल देने की पेशकश करता है तो भारत के लिए यह फायदेमंद हो सकता है। सस्ते तेल से भारतीय अर्थव्यवस्था पर महंगाई का दबाव कम होगा। साथ ही रिफाइनरी कंपनियों को भी मुनाफा होगा।
हालांकि भारत को पश्चिमी देशों के दबाव का भी ध्यान रखना होगा। अमेरिका और यूरोपीय देश नहीं चाहते कि भारत रूस से ज्यादा व्यापार करे। ऐसे में भारत को संतुलन बनाकर चलना होगा।
भारत की विदेश नीति हमेशा से स्वतंत्र और संतुलित रही है। भारत अपने हितों को ध्यान में रखते हुए फैसले लेता है। पुतिन की यात्रा में होने वाली बातचीत से यह साफ हो जाएगा कि आगे भारत-रूस रिश्ते किस दिशा में जाएंगे।