पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में बाबरी मस्जिद के मॉडल की आधारशिला रखने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने इस मामले में अपना रुख साफ कर दिया है और आधारशिला रखने की तारीख की घोषणा कर दी है।
शुक्रवार को हुमायूं कबीर ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद मॉडल की आधारशिला शनिवार यानी 6 दिसंबर को दोपहर 12 बजे से 2 बजे के बीच रखी जाएगी। उन्होंने बताया कि इस दौरान हजारों लोगों की मौजूदगी में पवित्र कुरान का पाठ किया जाएगा। कबीर ने साफ किया कि इस कार्यक्रम में कोई सार्वजनिक भाषण या संबोधन नहीं होगा और केवल मौलवी ही दो घंटे तक कुरान की तिलावत करेंगे।
विधायक पद से इस्तीफे की घोषणा
हुमायूं कबीर ने एक और बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि वह 17 दिसंबर को विधायक पद से इस्तीफा दे देंगे। उन्होंने कहा कि फिलहाल वह मुर्शिदाबाद जिले में बाबरी मस्जिद के मॉडल की आधारशिला रखने की तैयारियों की निगरानी कर रहे हैं। इस घोषणा से राज्य की राजनीति में हलचल मच गई है।
कबीर का यह कदम उस समय आया है जब तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया है। पार्टी का मानना है कि उनका यह कदम राज्य में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा सकता है और विपक्षी दलों को फायदा पहुंचा सकता है।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने दखल देने से किया इनकार
इस मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। वरिष्ठ अधिवक्ता सब्यसाची चट्टोपाध्याय ने कोर्ट में बाबरी मस्जिद के मॉडल की आधारशिला रखने पर रोक लगाने की मांग की थी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजॉय पॉल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता ने अदालत में तर्क दिया था कि 6 दिसंबर की तारीख चुनना संवेदनशील है क्योंकि यह बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी है। उनका कहना था कि यह कदम राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचा सकता है और कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा कर सकता है।
कबीर का जवाब
कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए हुमायूं कबीर ने कहा कि उन्होंने अपने वकीलों को कलकत्ता हाईकोर्ट में अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए लगाया है। उन्होंने यह भी कहा कि वह अदालत के किसी भी फैसले का पूरा सम्मान करेंगे। कबीर का कहना है कि वह कानून का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं और सिर्फ धार्मिक कार्यक्रम कर रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने तोड़े सभी रिश्ते
पश्चिम बंगाल के शहरी विकास मंत्री और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम ने गुरुवार को घोषणा की कि पार्टी ने हुमायूं कबीर को निष्कासित कर दिया है। उन्होंने कहा कि बेलडांगा में बाबरी मस्जिद के मॉडल के निर्माण के प्रस्ताव के कारण पार्टी ने कबीर से सभी संबंध तोड़ लिए हैं।
हकीम ने कहा, “हमने देखा कि मुर्शिदाबाद के हमारे एक विधायक ने अचानक घोषणा की कि वह बाबरी मस्जिद बनाएंगे। अचानक बाबरी मस्जिद क्यों? हमने उन्हें पहले ही चेतावनी दी थी।” उन्होंने कहा कि पार्टी के फैसले के अनुसार हुमायूं कबीर को निलंबित किया जा रहा है।
पार्टी नेतृत्व की मंजूरी
फिरहाद हकीम ने बताया कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और महासचिव अभिषेक बनर्जी ने पार्टी विरोधी गतिविधि के लिए निलंबन को मंजूरी दे दी है। तृणमूल कांग्रेस का मानना है कि कबीर का यह कदम 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को फायदा पहुंचा सकता है और सांप्रदायिक तनाव बढ़ा सकता है।
हुमायूं कबीर का राजनीतिक सफर
हुमायूं कबीर का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है। वह पहले भाजपा में भी रह चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। हालांकि, लोकसभा चुनावों में हार के बाद वह फिर से तृणमूल कांग्रेस में वापस आ गए।
2021 में पार्टी ने उन्हें भरतपुर से विधानसभा चुनाव का उम्मीदवार बनाया था। कबीर ने वहां से जीत हासिल की और विधायक बने। फिलहाल वह भरतपुर से विधायक हैं, लेकिन उन्होंने 17 दिसंबर को इस पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है।
दलबदल का इतिहास
कबीर का तृणमूल और भाजपा के बीच आना-जाना राज्य की राजनीति में चर्चा का विषय रहा है। उनके इस व्यवहार से सवाल उठते हैं कि वह किस दिशा में जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कबीर का यह कदम उनकी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से जुड़ा हो सकता है।
विवाद का केंद्र क्यों है 6 दिसंबर
6 दिसंबर की तारीख भारतीय राजनीति में बेहद संवेदनशील मानी जाती है। इसी दिन 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ था। यह घटना देश के इतिहास में एक काला अध्याय मानी जाती है और इसने सांप्रदायिक तनाव को जन्म दिया था।
हुमायूं कबीर ने इसी तारीख को बाबरी मस्जिद के मॉडल की आधारशिला रखने की घोषणा की है। इस फैसले को लेकर कई लोगों ने सवाल उठाए हैं। विरोधियों का कहना है कि यह तारीख चुनना जानबूझकर किया गया है और इससे सांप्रदायिक भावनाएं भड़क सकती हैं।
धार्मिक कार्यक्रम या राजनीतिक चाल
कबीर का कहना है कि यह सिर्फ एक धार्मिक कार्यक्रम है और इसमें कोई राजनीतिक मंशा नहीं है। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में कोई भाषण नहीं होगा और केवल कुरान का पाठ किया जाएगा। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया है।
तृणमूल की चिंता
तृणमूल कांग्रेस को डर है कि कबीर का यह कदम 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक तृणमूल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन अगर पार्टी को सांप्रदायिक राजनीति करने वाली पार्टी के रूप में देखा गया तो इससे उनकी छवि खराब हो सकती है।
दूसरी तरफ, भाजपा इस मुद्दे को उठाकर तृणमूल पर हमला कर सकती है। भाजपा का आरोप हो सकता है कि तृणमूल तुष्टिकरण की राजनीति करती है। इसलिए पार्टी ने जल्दी से जल्दी कबीर को निष्कासित करने का फैसला लिया।
भाजपा को फायदा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस पूरे मामले से सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को हो सकता है। भाजपा इस मुद्दे को उठाकर हिंदू वोटरों को अपनी तरफ करने की कोशिश कर सकती है। साथ ही, वह तृणमूल पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप भी लगा सकती है।
मुर्शिदाबाद की राजनीति
मुर्शिदाबाद पश्चिम बंगाल का एक महत्वपूर्ण जिला है जहां मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है। इस जिले में तृणमूल कांग्रेस का पारंपरिक रूप से मजबूत आधार रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में भाजपा ने यहां अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश की है।
हुमायूं कबीर का यह कदम इस जिले की राजनीति को प्रभावित कर सकता है। अगर कबीर विधायक पद से इस्तीफा देते हैं तो उपचुनाव होगा। यह उपचुनाव 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले एक मिनी टेस्ट हो सकता है।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
बेलडांगा के स्थानीय लोगों में इस मुद्दे को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया है। कुछ लोग कबीर के कदम का समर्थन कर रहे हैं तो कुछ इसे विवादास्पद मान रहे हैं। कई लोगों का कहना है कि यह मुद्दा राजनीतिक है और इससे समाज में विभाजन हो सकता है।
आगे क्या होगा
फिलहाल सभी की नजरें 6 दिसंबर पर टिकी हैं। देखना होगा कि हुमायूं कबीर अपनी घोषणा के अनुसार आधारशिला रखते हैं या नहीं। अगर वह ऐसा करते हैं तो इसका राज्य की राजनीति पर क्या असर होगा, यह भी देखने वाली बात होगी।
17 दिसंबर को कबीर के इस्तीफे की घोषणा भी महत्वपूर्ण है। अगर वह सच में इस्तीफा देते हैं तो भरतपुर में उपचुनाव होगा। यह उपचुनाव राज्य की राजनीति की दिशा तय कर सकता है।
इस पूरे मामले में एक बात साफ है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। यह अध्याय आने वाले समय में राज्य की राजनीति को किस तरह प्रभावित करेगा, यह वक्त ही बताएगा।