सुरक्षा की कमजोरी: महाराष्ट्र के सुधारगृहों में उजागर हुई गंभीर खामियाँ
जब हम किसी राज्य की सभ्यता और संस्कृति को परखते हैं, तो सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह होता है कि वह अपनी सबसे कमजोर और असहाय आबादी की रक्षा कैसे करता है। महाराष्ट्र के संदर्भ में, विधान परिषद में उठाया गया एक सवाल इसी गंभीर वास्तविकता की ओर इशारा करता है। विधायक चित्रा वाघ ने राज्य के महिला और बाल सुधारगृहों में बढ़ रही असुरक्षा की समस्या को लेकर सवाल उठाया है, जो न केवल प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि उन लाखों बच्चियों के भविष्य के बारे में चिंता का विषय है जो इन संस्थाओं में रहती हैं।
अक्टूबर 2025 के आसपास, एक ऐसी घटना सामने आई जिसने राज्य के संवेदनशील प्रशासन में तनाव पैदा कर दिया। ठाणे जिले के उल्हासनगर में स्थित शांती सदन महिला वसतिगृह से छह महिलाएँ एक ही रात में गायब हो गईं, जबकि रायगढ़ जिले के पनवेल में एक बालगृह से पाँच नाबालिग बच्चियाँ भाग गईं। ये केवल संख्याएँ नहीं हैं—ये ग्यारह जीवन हैं, ग्यारह कहानियाँ हैं, जो अब अधूरी रह गई हैं।
राज्य में सुरक्षा व्यवस्था की विफलता का संकेत
यह घटना कोई पहली बार नहीं है। विधायक वाघ ने संसद में स्पष्ट किया है कि राज्य में ऐसे पलायन की घटनाएँ लगातार हो रही हैं। जबकि पुलिस बल ने कई महिलाओं और बच्चियों को खोज निकाला है, फिर भी कई लापता हैं। यह सवाल उठाता है कि क्या हमारी सुरक्षा व्यवस्था वास्तव में इन संस्थाओं में काफी सशक्त है? क्या हमारे पास आवश्यक संख्या में कर्मचारी हैं? क्या प्रशिक्षण और जागरूकता पर्याप्त है?
सुधारगृह केवल सामान्य आवासीय संस्थाएँ नहीं हैं। ये राज्य की जिम्मेदारी हैं, जहाँ समाज के सबसे असहाय और संवेदनशील सदस्य रहते हैं। जब इन संस्थाओं में सुरक्षा की खामियाँ सामने आती हैं, तो यह केवल प्रशासनिक विफलता नहीं है—यह एक मानवाधिकार का संकट है।
विधायक का सवाल और सरकार की प्रतिक्रिया
विधायक चित्रा वाघ का सवाल अत्यंत तार्किक था। उन्होंने पूछा कि इन घटनाओं की जाँच में सरकार ने क्या कदम उठाए हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी जानना चाहा कि सुरक्षा व्यवस्था में लापरवाही करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई है या की जाएगी। ये प्रश्न सिर्फ विधायक का नहीं, बल्कि हर माता-पिता, हर नागरिक का है जो अपनी बेटियों की सुरक्षा के बारे में चिंतित है।
महिला एवं बाल विकास मंत्री आदिती तटकरे ने इसका उत्तर देते हुए कुछ सकारात्मक कदमों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि राज्य के सभी महिला वसतिगृहों में बाहरी एजेंसी के माध्यम से 100% सुरक्षा रक्षक नियुक्त किए गए हैं। साथ ही, रिक्त पदों को एक महीने के भीतर भर दिया जाएगा।
क्या ये कदम पर्याप्त हैं?
हालाँकि सरकार की ओर से दिए गए जवाब में कुछ सकारात्मक संकेत दिखाई देते हैं, फिर भी सवाल यह है कि क्या ये उपाय पर्याप्त हैं? सुरक्षा कर्मियों की नियुक्ति तो एक कदम है, लेकिन यह केवल शुरुआत है। वास्तविक चुनौती यह सुनिश्चित करने में है कि ये सुरक्षा कर्मी अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लें और कोई भी बच्ची किसी भी परिस्थिति में पलायन न कर सके।
प्रशासन को चाहिए कि वह पदों को भरने के अलावा, नियमित प्रशिक्षण, निरीक्षण और जवाबदेही की व्यवस्था भी करे। केवल कागजों पर 100% सुरक्षा रक्षक दिखाना काफी नहीं है—हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जमीन पर वास्तविकता भी वही है।
भविष्य की दिशा और समाधान
इन सुधारगृहों में सुरक्षा केवल भौतिक उपस्थिति का मामला नहीं है। हमें एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें शामिल हो—आधुनिक निगरानी प्रणाली, नियमित ऑडिट, कर्मचारियों का प्रशिक्षण, बच्चियों के साथ काउंसलिंग, और सबसे महत्वपूर्ण, उन पलायन के कारणों को समझना जो इन घटनाओं को जन्म देते हैं।
महाराष्ट्र की सरकार ने अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की है, जो एक सकारात्मक संकेत है। लेकिन समय आ गया है कि सिर्फ घोषणाएँ न रहें, बल्कि वास्तविक परिवर्तन हो। हर बच्ची, हर महिला जो इन संस्थाओं में है, उसे न केवल छत और खाना चाहिए, बल्कि सुरक्षा, गरिमा और एक सुरक्षित भविष्य का आश्वासन भी चाहिए।