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दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के शिल्पकार राम वंजी सुतार का निधन

शिल्पकार राम वंजी सुतार का निधन
शिल्पकार राम वंजी सुतार का निधन (File Photo)
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के रचनाकार और महान मूर्तिकार राम वंजी सुतार का 100 वर्ष की उम्र में नोएडा में निधन हो गया। उनके जाने से भारतीय कला और शिल्प जगत को गहरा आघात पहुंचा है। उनकी रचनाएं आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।
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Ram Vanji Sutar: देश की आत्मा को पत्थरों में ढाल देने वाले महान मूर्तिकार राम वंजी सुतार अब हमारे बीच नहीं रहे। 100 वर्षों की लंबी और सृजनशील जीवन यात्रा पूरी कर उन्होंने नोएडा के सेक्टर-19 स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली। लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे राम सुतार के निधन की खबर जैसे ही सामने आई, कला, संस्कृति और शिल्प जगत में शोक की लहर दौड़ गई। आज सेक्टर-94 में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा, जहां उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी।

लंबी बीमारी के बाद शांत विदाई

राम वंजी सुतार बीते कई दिनों से अस्वस्थ थे। उम्र के इस पड़ाव पर शरीर ने भले ही साथ छोड़ दिया हो, लेकिन उनकी चेतना, उनकी कला और उनका योगदान कभी कमजोर नहीं पड़ा। पद्म भूषण से सम्मानित इस महान कलाकार ने अपने घर पर ही जीवन की अंतिम सांस ली। उनके परिवार के अनुसार, अंतिम समय में भी वे बेहद शांत थे, मानो जीवन की एक संपूर्ण रचना को पूर्ण कर चुके हों।

एक कलाकार, जिसने राष्ट्र को आकार दिया

राम सुतार केवल मूर्तिकार नहीं थे, वे एक विचार थे। उन्होंने पत्थर, धातु और कांसे में केवल आकृतियां नहीं गढ़ीं, बल्कि भारत के आत्मसम्मान, इतिहास और मूल्यों को मूर्त रूप दिया। गुजरात में स्थापित 182 मीटर ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ आज पूरी दुनिया में भारत की पहचान बन चुकी है। यह प्रतिमा सिर्फ सरदार वल्लभभाई पटेल की नहीं, बल्कि राम सुतार की साधना, तपस्या और जीवन भर की कला यात्रा का चरम बिंदु है।

छेनी-हथौड़ी से गढ़ा सपना

1925 में महाराष्ट्र के एक साधारण परिवार में जन्मे राम वंजी सुतार का जीवन संघर्ष और संकल्प की मिसाल है। सीमित संसाधनों में पले-बढ़े सुतार ने बचपन में ही शिल्प के प्रति गहरी रुचि दिखा दी थी। उन्होंने कभी इसे पेशा नहीं, बल्कि साधना माना। छेनी और हथौड़ी उनके लिए औजार नहीं, बल्कि संवाद के माध्यम थे, जिनसे वे इतिहास से बात करते थे।

महात्मा गांधी से सरदार पटेल तक

राम सुतार की कृतियों में देश की आत्मा झलकती है। महात्मा गांधी की ध्यानमग्न प्रतिमाएं हों या विभिन्न राज्यों में स्थापित राष्ट्रीय नेताओं की मूर्तियां, हर रचना में संवेदनशीलता और संतुलन साफ नजर आता है। उनकी मूर्तियां देखने वाला व्यक्ति केवल आकृति नहीं देखता, बल्कि उस विचार को महसूस करता है, जिसके लिए वह व्यक्तित्व जाना जाता है।

विरासत को आगे बढ़ाता परिवार

राम सुतार की कला परंपरा उनके साथ समाप्त नहीं होती। उनके बेटे अनिल सुतार स्वयं एक प्रतिष्ठित शिल्पकार हैं और पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। यह केवल पारिवारिक परंपरा नहीं, बल्कि भारतीय शिल्प परंपरा की निरंतरता है, जो पीढ़ियों के माध्यम से आगे बढ़ती रहती है।

कला जगत में अपूरणीय क्षति

राम वंजी सुतार के निधन से देश ने केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक स्मृति का एक मजबूत स्तंभ खो दिया है। उनकी अनुपस्थिति आने वाले वर्षों में और अधिक महसूस होगी, जब नई पीढ़ी उनकी रचनाओं को देखकर यह समझने की कोशिश करेगी कि कैसे एक इंसान अपने जीवन को राष्ट्र के नाम समर्पित कर सकता है।

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Dipali Kumari

दीपाली कुमारी पिछले तीन वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता में कार्यरत हैं। उन्होंने रांची के गोस्सनर कॉलेज से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। सामाजिक सरोकारों, जन-जागरूकता और जमीनी मुद्दों पर लिखने में उनकी विशेष रुचि है। आम लोगों की आवाज़ को मुख्यधारा तक पहुँचाना और समाज से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नों को धारदार लेखन के माध्यम से सामने लाना उनका प्रमुख लक्ष्य है।