महाराष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था में एक बार फिर गंभीर खामी सामने आई है। नागपुर शहर के हिंगणा एमआईडीसी क्षेत्र में स्थित एक प्रिंटिंग प्रेस में बालभारती की नकली किताबें छापने का एक बड़ा मामला उजागर हुआ है। प्रतिभा प्रिंटर्स नामक इस छपाई इकाई में अवैध रूप से राज्य सरकार की आधिकारिक पाठ्यपुस्तकों की डुप्लिकेट प्रतियां तैयार की जा रही थीं। यह मामला न केवल शैक्षणिक प्रणाली की गंभीर खामियों को उजागर करता है, बल्कि हजारों छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ की ओर भी इशारा करता है।
अवैध छपाई का खुलासा
हिंगणा एमआईडीसी इलाके में संचालित प्रतिभा प्रिंटर्स में लंबे समय से बालभारती की पुस्तकों की अनधिकृत छपाई चल रही थी। सूत्रों के अनुसार, यहां विशेष रूप से कक्षा दसवीं की गणित विषय की किताबों की बड़ी संख्या में नकली प्रतियां छापी जा रही थीं। इसके अलावा अन्य कक्षाओं और विषयों की पाठ्यपुस्तकें भी डुप्लिकेट रूप में तैयार की जा रही थीं। इन किताबों की छपाई और कागज की गुणवत्ता मूल पुस्तकों से काफी घटिया थी, जिससे छात्रों की पढ़ाई पर सीधा असर पड़ने की आशंका थी।
जानकारी मिलने पर महाराष्ट्र राज्य पाठ्यपुस्तक निर्मिति व अभ्यासक्रम संशोधन मंडल, जिसे बालभारती के नाम से जाना जाता है, के अधिकारी तुरंत कार्रवाई में उतर गए। अधिकारियों की टीम ने प्रिंटिंग प्रेस का निरीक्षण किया और वहां मौजूद सामग्री की जांच की। प्रारंभिक जांच में ही यह साफ हो गया कि यह पूरी तरह से अवैध गतिविधि थी और बिना किसी अधिकृत अनुमति के यह काम किया जा रहा था।
बालभारती अधिकारियों की कार्रवाई
बालभारती के अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर प्रिंटिंग प्रेस में चल रही सभी गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन किया। उन्होंने छपी हुई किताबों के नमूने एकत्र किए और मूल पुस्तकों से उनकी तुलना की। जांच में पाया गया कि नकली किताबों में न केवल छपाई की गुणवत्ता खराब थी, बल्कि कागज भी निम्न स्तर का इस्तेमाल किया गया था। कुछ किताबों में सामग्री में भी त्रुटियां मिलीं, जो छात्रों को गलत जानकारी देने का काम कर सकती थीं।
अधिकारियों ने इस गंभीर मामले को देखते हुए तुरंत हिंगणा एमआईडीसी पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर प्रिंटिंग प्रेस के मालिकों और संचालकों से पूछताछ शुरू की। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, यह धंधा काफी समय से चल रहा था और इससे जुड़े लोगों का एक पूरा नेटवर्क हो सकता है।
शिक्षा व्यवस्था पर असर
नकली पाठ्यपुस्तकों की छपाई और बिक्री से राज्य की शिक्षा व्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचता है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि इन घटिया किताबों के कारण छात्रों को सही और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती। खासकर कक्षा दसवीं जैसी महत्वपूर्ण कक्षा में गलत या निम्न स्तर की किताबें छात्रों के परीक्षा परिणामों पर बुरा प्रभाव डाल सकती हैं।
इसके अलावा, अभिभावक जो मेहनत की कमाई से अपने बच्चों के लिए किताबें खरीदते हैं, उनके साथ धोखा होता है। नकली किताबें अक्सर कम कीमत पर बेची जाती हैं, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर परिवार इन्हें खरीद लेते हैं। लेकिन सस्ते के चक्कर में उनके बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है।
पुलिस जांच और आगे की कार्रवाई
हिंगणा एमआईडीसी पुलिस ने इस मामले में गंभीरता से कार्रवाई शुरू कर दी है। पुलिस अधिकारियों ने प्रिंटिंग प्रेस में मौजूद सभी नकली किताबों को जब्त कर लिया है। साथ ही छपाई में इस्तेमाल हो रही मशीनरी और अन्य सामग्री की भी जांच की जा रही है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, इस मामले में प्रिंटिंग प्रेस के मालिक और संचालकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। साथ ही यह जांच भी की जा रही है कि ये नकली किताबें किन दुकानों या वितरकों तक पहुंचाई जा रही थीं। अधिकारी इस पूरे नेटवर्क को उजागर करने और सभी दोषियों को पकड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन
यह मामला केवल शिक्षा के साथ धोखाधड़ी तक सीमित नहीं है। बालभारती की पुस्तकों की अनधिकृत छपाई बौद्धिक संपदा अधिकारों का भी गंभीर उल्लंघन है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित बालभारती संस्था के पास इन पुस्तकों के प्रकाशन और वितरण के विशेष अधिकार हैं। बिना अनुमति इन्हें छापना कानूनी अपराध है।
कॉपीराइट अधिनियम के तहत इस तरह की गतिविधियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान है। दोषी पाए जाने पर प्रिंटिंग प्रेस के मालिकों को जेल की सजा के साथ-साथ भारी जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। यह सजा न केवल दोषियों के लिए चेतावनी होगी, बल्कि अन्य लोगों को भी इस तरह की गैरकानूनी गतिविधियों से दूर रहने का संदेश देगी।
सरकार और प्रशासन की भूमिका
इस तरह के मामले सामने आने से यह सवाल भी उठता है कि सरकारी निगरानी तंत्र में कहां खामी है। प्रिंटिंग उद्योग पर नियमित निगरानी और जांच की व्यवस्था होनी चाहिए, खासकर जहां शैक्षणिक सामग्री की छपाई होती है। प्रशासन को चाहिए कि वह समय-समय पर ऐसी इकाइयों का निरीक्षण करे और किसी भी तरह की अवैध गतिविधि पर तुरंत रोक लगाए।
बालभारती को भी अपनी पुस्तकों में विशेष सुरक्षा चिह्न और होलोग्राम जैसी तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ाना चाहिए, जिससे नकली किताबों की पहचान आसान हो सके। अभिभावकों और स्कूलों को भी जागरूक करना जरूरी है कि वे केवल अधिकृत विक्रेताओं से ही किताबें खरीदें।
समाज की जिम्मेदारी
यह मामला समाज को भी सोचने पर मजबूर करता है। शिक्षा हर बच्चे का मौलिक अधिकार है और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सामग्री उपलब्ध कराना सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है। नकली किताबों की खरीद-बिक्री में शामिल लोग न केवल कानून तोड़ रहे हैं, बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी कर रहे हैं।
अभिभावकों को सतर्क रहना चाहिए और किताबें खरीदते समय उनकी गुणवत्ता की जांच करनी चाहिए। यदि कोई किताब संदिग्ध लगे तो तुरंत संबंधित अधिकारियों को सूचित करना चाहिए। स्कूल प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्रों के पास केवल मूल पुस्तकें ही हों।
नागपुर में हुआ यह भंडाफोड़ एक चेतावनी है कि शिक्षा के क्षेत्र में भी धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं। जरूरत इस बात की है कि प्रशासन, समाज और अभिभावक मिलकर ऐसी गतिविधियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाएं और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।