बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जितने नजदीक आ रहे हैं, उतनी ही तेजी से राजनीतिक सरगर्मियां भी तेज होती जा रही हैं। सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी ने भी अब अपने चुनावी अभियान को आक्रामक मोड में डालते हुए 45 सदस्यों वाली चुनाव प्रचार समिति की घोषणा कर दी है। इस समिति का गठन यह संकेत देता है कि भाजपा इस बार केवल पारंपरिक जातीय समीकरणों पर नहीं, बल्कि बूथ स्तर तक पहुंच बनाने वाली गहरी रणनीति यानी “डिजिटल प्रचार + जमीनी संपर्क” का मिश्रण अपनाने जा रही है।
इस समिति में केंद्रीय मंत्रियों, राज्य मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, पूर्व सांसदों और संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों को शामिल किया गया है। खास बात यह है कि पूरी सूची में सामाजिक तथा क्षेत्रीय संतुलन को बारीकी से ध्यान में रखा गया है। यानी सवर्ण, पिछड़ा वर्ग (OBC), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), दलित और महिला प्रतिनिधियों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण दिखाई देता है।
समिति में शामिल प्रमुख चेहरे
समिति में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, नित्यानंद राय, सतीश चंद्र दुबे, राजभूषण निषाद और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे जैसे अनुभवी नाम शामिल हैं। इसके अतिरिक्त पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राधा मोहन सिंह, संजय जायसवाल और गोपाल नारायण सिंह को भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, अश्विनी चौबे और राजीव प्रताप रूडी भी इस समिति का हिस्सा बनाए गए हैं।
सांसदों में विवेक ठाकुर, प्रदीप कुमार सिंह, जनार्दन सिंह सिग्रीवाल, गोपालजी ठाकुर और अशोक यादव जैसे सक्रिय जनप्रतिनिधियों को भी स्थान मिला है। राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन, राष्ट्रीय मंत्री ऋतुराज सिन्हा तथा पूर्व उपमुख्यमंत्री रेनू देवी को भी इस टीम में शामिल कर भाजपा ने स्पष्ट संदेश दिया है कि अनुभव और ऊर्जा – दोनों साथ चलेंगे।
कई वरिष्ठों को जगह न मिलना बना चर्चा का विषय
हालांकि इस पूरी कवायद में जो बात सबसे अधिक सुर्खियों में है, वह है कई पुराने और वरिष्ठ चेहरों का सूची से बाहर रह जाना। राजनीतिक गलियारों में यह सवाल जोर पकड़ रहा है कि क्या भाजपा इस बार “नए चेहरों और नई ऊर्जा” पर दांव लगाना चाहती है? क्या यह बदलाव “Generation Shift” का संकेत है?
नए नेताओं को मिली बड़ी जिम्मेदारी – कार्यकर्ताओं में उत्साह
सूची में कृष्ण कुमार ऋषि, अनिल शर्मा (बख्तियारपुर), बेबी कुमारी, शीला प्रजापति, राजेंद्र चौपाल, हरि मांझी और तल्लू वासकी जैसे कई अपेक्षाकृत नए नाम भी शामिल किए गए हैं। इससे साफ संकेत मिलता है कि भाजपा अब सिर्फ “चेहरा आधारित राजनीति” नहीं, बल्कि “जमीनी कार्यकर्ताओं के प्रत्यक्ष संपर्क” को प्राथमिकता दे रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मिले सकारात्मक जनादेश के बाद भाजपा अब बूथ स्तर पर अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहती है। पार्टी चाहती है कि हर सामाजिक समूह को सीधा प्रतिनिधित्व मिले और हर मतदान केंद्र पर “Micro संपर्क अभियान” चलाया जाए।
बूथ स्तर की रणनीति बनेगी चुनाव की असली कुंजी
समिति के गठन का उद्देश्य केवल नाम घोषित करना नहीं है, बल्कि एक मजबूत प्रचार रणनीति बनाना और उसे बूथ स्तर तक लागू करना है। इसके लिए जल्द ही Digital प्रचार, WhatsApp समूहों के माध्यम से संपर्क, और “नमो ऐप” पर आधारित स्वयंसेवी अभियान शुरू किए जाने की भी तैयारी है।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह स्वयं इस समिति की रिपोर्ट की समीक्षा करेंगे और आने वाले हफ्तों में पूरे चुनावी रोडमैप पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
घोषणापत्र समिति भी बनाई गई – जनता के सुझावों पर आधारित दृष्टि पत्र
साथ ही भाजपा ने सुरेश रूंगटा की अध्यक्षता में 13 सदस्यों वाली घोषणापत्र (Vision Document) समिति का गठन भी कर दिया है। इसमें राज्यसभा सदस्य, विधान परिषद सदस्य और सहकारिता मंत्री प्रेम कुमार जैसे अनुभवी नेताओं को शामिल किया गया है। यह समिति प्रदेश के विभिन्न समाजों की आकांक्षाओं पर आधारित दृष्टि पत्र तैयार करेगी।
इससे यह स्पष्ट होता है कि भाजपा इस चुनाव को केवल राजनीतिक टकराव के रूप में नहीं, बल्कि “विकास के वादे बनाम किये गए कार्यों” की लड़ाई बनाने की तैयारी में है।
निष्कर्ष — मुकाबला रोचक होने वाला है
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब पूरी तरह से प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक लड़ाई में बदल चुका है। भाजपा ने अपनी “पहली गेंद” डाल दी है। अब देखना है कि राजद, जदयू और इंडिया गठबंधन इस चुनौती का कैसे जवाब देते हैं।
फिलहाल इतना तो तय है — इस बार चुनाव केवल जातीय समीकरणों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आधुनिक प्रचार तंत्र, डिजिटल संपर्क और संगठन की मजबूती असली निर्णायक भूमिका निभाएंगे।