दिवाली से पहले भारत में चांदी की भारी कमी, वैश्विक बाजारों में भी उथल-पुथल
भारत में इस साल दिवाली से पहले चांदी की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी देखी जा रही है। बाज़ार में चांदी की भारी कमी है, जिससे कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में 10 प्रतिशत तक अधिक हो गई हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस कमी ने चांदी के निवेश फंड्स (ETF) को भी नई खरीदारी रोकने पर मजबूर कर दिया है। ज्वैलर्स और बर्तन कारोबारी दिवाली की मांग पूरी करने में संघर्ष कर रहे हैं।
भारत – दुनिया का सबसे बड़ा चांदी खरीदार, फिर भी घट गया इंपोर्ट
भारत दुनिया में चांदी का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। यहां चांदी का इस्तेमाल पारंपरिक बर्तनों, आभूषणों, सिक्कों और औद्योगिक क्षेत्रों में व्यापक रूप से होता है। बावजूद इसके, 2025 के पहले आठ महीनों में भारत का चांदी आयात 42% घटकर केवल 3,302 टन रह गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि 2024 में आयात किया गया अतिरिक्त स्टॉक अब पूरी तरह खत्म हो चुका है और नई मांग पूरी करने के लिए आपूर्ति अपर्याप्त साबित हो रही है।
क्यों घटा चांदी का उत्पादन और सप्लाई?
पिछले चार साल से वैश्विक स्तर पर चांदी की मांग उसकी आपूर्ति से अधिक है। पहले के वर्षों में जो अतिरिक्त स्टॉक बचा था, वह अब समाप्त हो चुका है।
चांदी का लगभग 70% उत्पादन अन्य धातुओं (जैसे जिंक, कॉपर और लेड) की खदानों से उप-उत्पाद के रूप में होता है। इसलिए कीमतें बढ़ने के बावजूद उत्पादन तुरंत नहीं बढ़ाया जा सकता।
सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स, और हाई-टेक उद्योगों में सिल्वर की खपत तेजी से बढ़ी है, जिससे औद्योगिक मांग में भारी उछाल आया है।
अमेरिका को शिपमेंट ने बढ़ाई भारत की मुश्किलें
सितंबर 2025 में अमेरिका ने चांदी को अपनी “महत्वपूर्ण खनिजों की सूची (Critical Minerals List)” में शामिल किया था। इसके बाद अमेरिका ने बड़े पैमाने पर चांदी के शिपमेंट मंगवाने शुरू किए।
इससे भारत जैसे आयातक देशों के लिए सप्लाई कम हो गई, क्योंकि उत्पादक देश पहले अमेरिका की मांग पूरी करने में लग गए।
ETF फंड्स ने क्यों रोकी नई खरीदारी?
सितंबर में भारतीय चांदी आधारित ETF में ₹53.42 अरब रुपये का रिकॉर्ड निवेश हुआ।
नियमों के अनुसार, इन फंड्स को निवेशकों से मिले पैसों के अनुपात में असली चांदी खरीदकर स्टोर करनी होती है। लेकिन जब उन्होंने खरीदारी की कोशिश की, तो कीमतें बहुत ऊंची थीं और बाजार में उपलब्धता बेहद सीमित।
इस वजह से निवेशकों के हितों की रक्षा करते हुए फंड्स ने नई खरीदारी अस्थायी रूप से रोक दी है।
लॉजिस्टिक और वित्तीय दबाव भी बना संकट का कारण
लंदन जैसे वैश्विक बुलियन केंद्रों में चांदी उधार लेने की लागत 30% से अधिक हो चुकी है। इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार महंगा हो गया है।
ऊंची कीमतों पर बैंक भी आयात करने से झिझक रहे हैं, जबकि घरेलू बाजार में त्योहार की मांग चरम पर है। इस असंतुलन ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
ज्वैलरी और बर्तन उद्योग पर असर
चांदी की कमी का सबसे बड़ा असर ज्वैलरी और बर्तन उद्योग पर पड़ा है।
त्योहारों के मौसम में जहां आमतौर पर सिक्के, चांदी के बर्तन और बार की बिक्री चरम पर होती है, वहीं अब इनकी उपलब्धता कम और कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं।
लोग उम्मीद कर रहे हैं कि कीमतें और बढ़ेंगी, इसलिए पुरानी चांदी बेचने से बच रहे हैं, जिससे स्क्रैप सप्लाई भी घट गई है।
भविष्य की स्थिति कैसी रहेगी?
विशेषज्ञों के अनुसार, आने वाले महीनों में चांदी की कीमतों में और वृद्धि हो सकती है।
अगर अमेरिका और चीन के बीच भू-राजनीतिक तनाव बना रहा, और औद्योगिक मांग इसी रफ्तार से बढ़ती रही, तो 2026 तक चांदी की कीमतें ₹1.80 लाख प्रति किलो तक पहुंच सकती हैं।
हालांकि सरकार इस पर नज़र बनाए हुए है और घरेलू ज्वैलर्स से कहा गया है कि वे ग्राहकों को स्थिर कीमतों पर खरीदारी के लिए प्रेरित करें।
दिवाली के मौके पर जहां सोने की चमक रिकॉर्ड बना रही है, वहीं चांदी की कमी ने बाजार की रफ्तार धीमी कर दी है।
वैश्विक आपूर्ति संकट, बढ़ती औद्योगिक मांग और अमेरिका को बढ़ते निर्यात ने भारत की स्थिति को और कठिन बना दिया है।
यह स्थिति यह भी दर्शाती है कि आने वाले समय में कीमती धातुओं का बाजार सिर्फ त्योहारों पर नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी और ऊर्जा उद्योगों की दिशा पर भी निर्भर करेगा।
डिस्क्लेमर:
इस लेख में दी गई चांदी की कीमतें और बाजार की स्थिति केवल जानकारी के उद्देश्य से हैं। निवेश या व्यापारिक निर्णय लेने से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की सलाह अवश्य लें।