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गाँव के दुधारू पशु से शहर की दूध की दुकान तक – सरकार ने बदल दिया डेयरी किसानों का सपना

Dairy Infrastructure Development 2025: छोटे किसानों के लिए बदलाव की नई शुरुआत
Dairy Infrastructure Development 2025: छोटे किसानों के लिए बदलाव की नई शुरुआत (Photo: Unsplash)
भारत के डेयरी किसानों के लिए एक बड़ा बदलाव! NPDPD और AHIDF योजनाओं के तहत किसानों को अब सौर ऊर्जा चालित कूलिंग सिस्टम, आधुनिक दूध प्रसंस्करण इकाइयां और उन्नत नस्ल सुधार तकनीकें मिल रही हैं। गांवों में कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन और उच्च गुणवत्ता के सांड - यह है असली विकास!
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डेयरी जीवन: जहां सरकार की नीति किसान के सपने से मिलती है

भारत एक कृषि प्रधान देश है, लेकिन आजकल खेती के साथ-साथ पशुपालन भी छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण आय का स्रोत बन गया है। गाँव के किसान जो सुबह पाँच बजे उठकर अपने पशुओं की देखभाल करते हैं, उनके सामने एक बड़ी समस्या होती थी – दूध को सही तरीके से संरक्षित करना और शहर तक पहुँचाना। लेकिन पशुपालन और डेयरी विभाग की नई पहल ने इस समस्या का समाधान निकाल लिया है।

गत दशकों में भारत में डेयरी सेक्टर में एक क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है। पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने दो प्रमुख योजनाओं – राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी) और पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ) के माध्यम से डेयरी किसानों को समर्थन प्रदान करना शुरू किया है। ये योजनाएं केवल संख्याओं में सीमित नहीं हैं, बल्कि गाँव के हर उस किसान को सशक्त बनाने का प्रयास करती हैं जो अपनी आजीविका के लिए पशुपालन पर निर्भर है।

बुनियादी ढांचे का विकास: किसानों के लिए नई संभावनाएं

डेयरी उद्योग में सबसे बड़ी चुनौती दूध की गुणवत्ता को बनाए रखना और उसे सुरक्षित रखना है। पहले के समय में गाँव के किसान को दूध को संरक्षित करने के लिए कोई उचित माध्यम नहीं था। लेकिन अब एनपीडीडी योजना के अंतर्गत दूध की खरीद, प्रसंस्करण और शीतलन सुविधाओं का निर्माण हो रहा है। इसके अलावा, गुणवत्तायुक्त दूध परीक्षण उपकरणों की स्थापना से दूध की शुद्धता को सुनिश्चित किया जा रहा है।

सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि सरकार ने पर्यावरण के प्रति भी जिम्मेदारी दिखाई है। सौर फोटोवोल्टिक प्रणालियों और थर्मल स्टोरेज प्रणालियों का उपयोग करके दूध को ठंडा रखने की व्यवस्था की जा रही है। अब तक 52 सौर ऊर्जा चालित दूध कूलरों को स्वीकृति दी जा चुकी है, जिससे किसानों को बिजली की भारी खर्च से राहत मिल रही है।

आधुनिक प्रौद्योगिकी से किसान सशक्तिकरण

डेयरी विभाग की योजनाएं केवल अवसंरचना तक सीमित नहीं हैं। राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आरजीएम) के माध्यम से सरकार पशुओं की नस्ल में सुधार लाने का काम कर रही है। इसका अर्थ यह है कि जो किसान पारंपरिक तरीके से पशुपालन करते हैं, उन्हें अब वैज्ञानिक तरीके से अपने पशुओं की गुणवत्ता बढ़ाने का मौका मिल रहा है।

कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम से अब तक 9.36 करोड़ पशुओं को लाभ मिल चुका है। इसका मतलब यह है कि करीब 5.62 करोड़ किसान इस योजना से लाभान्वित हुए हैं। यह आंकड़ा अपने आप में एक बड़ी कहानी कहता है – कि कैसे सरकार की योजनाएं आम किसान तक पहुँच रही हैं।

लिंग-विभेदित वीर्य से खर्च में भारी कटौती

एक और महत्वपूर्ण पहलू है लिंग-विभेदित वीर्य का उत्पादन। पहले इस तकनीक का इस्तेमाल विदेशों में किया जाता था और यह बेहद महंगा था। लेकिन स्वदेशी तकनीक के माध्यम से सरकार ने इसकी कीमत 800 रुपये से घटाकर मात्र 250 रुपये प्रति खुराक कर दी है। यह एक ऐसा बदलाव है जो सीधे छोटे और सीमांत किसानों के बटुए को राहत देता है।

इसके अलावा, सरकार किसानों को सुनिश्चित गर्भावस्था पर लिंग-विभेदित वीर्य की लागत का 50 प्रतिशत तक प्रोत्साहन दे रही है। इसका अर्थ यह है कि किसान को वास्तविक खर्च बिलकुल कम हो जाता है।

तकनीकी प्रशिक्षण: किसानों को सशक्त बनाने का माध्यम

सरकार की योजनाओं की सबसे अच्छी बात यह है कि वह केवल पैसा नहीं, बल्कि ज्ञान भी प्रदान करती है। बहुउद्देशीय कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (मैत्री) योजना के तहत 39,810 तकनीशियनों को प्रशिक्षित किया गया है। ये तकनीशियन सीधे किसानों के घर जाकर कृत्रिम गर्भाधान की सेवा प्रदान करते हैं।

इन तकनीशियनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। वे किसानों को सीधा मार्गदर्शन देते हैं, उन्हें आधुनिक तरीकों से अवगत कराते हैं और पशु स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करते हैं। यह एक ऐसा कदम है जो दूरदराज के गाँवों में भी प्रौद्योगिकी को पहुँचा रहा है।

उन्नत तकनीकें: आईवीएफ और आनुवंशिक सुधार

आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) तकनीक का इस्तेमाल अब देश भर में 24 प्रयोगशालाओं में किया जा रहा है। सरकार ने हर सुनिश्चित गर्भावस्था पर 5,000 रुपये का प्रोत्साहन राशि दी है। संतान परीक्षण और वंशावली चयन के माध्यम से 4,288 उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले सांडों का उत्पादन किया गया है।

ये पशु वीर्य केन्द्रों पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिससे अन्य किसान भी अपने पशुओं की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं। यह एक दीर्घकालीन निवेश है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए लाभकारी साबित होगा।

सहकारी समितियों को मजबूत करना

पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ) के अंतर्गत दूध प्रसंस्करण संयंत्रों, शीतलन अवसंरचना और मूल्यवर्धित डेयरी इकाइयों के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता दी जा रही है। तीन दुग्ध संघ – बरौनी (बिहार), बनासकांठा (गुजरात) और एर्नाकुलम (केरल) को सौर ऊर्जा चालित डेयरी प्रसंस्करण इकाइयों के लिए पहले से ही सहायता प्रदान की जा चुकी है।

ये योजनाएं केवल बड़े उद्योगों के लिए नहीं हैं। किसान संगठन, स्वयं सहायता समूह और छोटे निजी उद्यमियों को भी इन योजनाओं का लाभ मिल रहा है। यह समावेशी विकास का एक प्रमाण है।

भविष्य का आशावाद

डेयरी किसानों के लिए ये योजनाएं एक नई उम्मीद की शुरुआत हैं। जो किसान पहले केवल कच्चा दूध बेचते थे, अब वे प्रसंस्कृत दूध उत्पादों की ओर बढ़ सकते हैं। जो किसान परंपरागत तरीके से पशुपालन करते थे, अब वे वैज्ञानिक और आधुनिक तरीके अपना सकते हैं।

सरकार की ये पहल केवल आय बढ़ाने के लिए नहीं है। यह पशु कल्याण, पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण विकास के एक समग्र दृष्टिकोण का हिस्सा है। जब तक हम अपने डेयरी किसानों को सशक्त नहीं बनाते, तब तक भारत की आत्मनिर्भरता अधूरी रहेगी।


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Gangesh Kumar

Rashtra Bharat में Writer, Author और Editor। राजनीति, नीति और सामाजिक विषयों पर केंद्रित लेखन। BHU से स्नातक और शोधपूर्ण रिपोर्टिंग व विश्लेषण के लिए पहचाने जाते हैं।