MGNREGA: लोकसभा में मंगलवार को एक ऐसा विधेयक पेश किया गया, जिसने न केवल राजनीतिक दलों को आमने-सामने ला खड़ा किया, बल्कि एक बार फिर विकास, विचारधारा और विरासत को लेकर देशव्यापी बहस को हवा दे दी। सरकार की ओर से ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ यानी मनरेगा का नाम बदलकर ‘विकसित भारत–जी राम जी योजना’ रखने का प्रस्ताव रखा गया। जैसे ही यह प्रस्ताव सदन में आया, विपक्ष ने इसे केवल नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और वैचारिक विरासत को कमजोर करने की कोशिश बताया।
इस विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने सरकार पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि मनरेगा सिर्फ एक योजना नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण भारत के आत्मसम्मान, रोजगार और अधिकार का प्रतीक है। ऐसे में इसके नाम से महात्मा गांधी को हटाना उस सोच को दर्शाता है, जो इतिहास को अपने हिसाब से दोबारा गढ़ना चाहती है।
मनरेगा के नाम पर सियासी टकराव
प्रियंका गांधी के बाद जब तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर बोलने के लिए खड़े हुए, तो सदन का माहौल और गंभीर हो गया। लंबे समय बाद शशि थरूर का कांग्रेस की आधिकारिक लाइन में खुलकर बोलना राजनीतिक रूप से भी खास माना गया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह ‘जी राम जी’ विधेयक का विरोध करते हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह योजना से महात्मा गांधी का नाम हटाना है।
महात्मा गांधी के नाम पर शशि थरूर का तर्क
शशि थरूर ने अपने भाषण में कहा कि महात्मा गांधी का ‘राम राज्य’ का विचार कभी राजनीतिक नहीं रहा। यह सामाजिक न्याय, समानता और गांवों के सशक्तिकरण का सपना था। गांधी जी चाहते थे कि हर गांव आत्मनिर्भर बने और हर व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन मिले। ऐसे में उनके नाम को किसी योजना से हटाना केवल प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि नैतिक सवाल भी खड़ा करता है।
उन्होंने अपने बचपन का एक गीत उद्धृत करते हुए कहा कि “राम का नाम बदनाम न किया जाए”, और इस टिप्पणी के जरिए उन्होंने सरकार को यह संदेश देने की कोशिश की कि धार्मिक प्रतीकों का राजनीतिक इस्तेमाल देश की मूल भावना के खिलाफ है।
राज्यों पर बढ़ेगा आर्थिक बोझ
नाम परिवर्तन के अलावा शशि थरूर ने विधेयक के एक अन्य प्रावधान पर भी गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि योजना के तहत 40 प्रतिशत वित्तीय जिम्मेदारी सीधे राज्य सरकारों पर डालना कई राज्यों के लिए संकट खड़ा कर सकता है। खासकर वे राज्य, जिनकी आर्थिक स्थिति पहले से कमजोर है, उनके लिए इस योजना को लागू करना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
उनका कहना था कि केंद्र सरकार अगर वास्तव में ग्रामीण रोजगार और विकास को लेकर गंभीर है, तो उसे राज्यों पर अतिरिक्त बोझ डालने के बजाय सहयोगात्मक संघवाद की भावना से काम करना चाहिए।
कांग्रेस के भीतर संदेश भी अहम
शशि थरूर का यह रुख केवल सरकार के लिए ही नहीं, बल्कि कांग्रेस पार्टी के भीतर भी एक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है। पिछले कुछ समय से वह पार्टी की बैठकों से दूरी बनाए हुए थे और कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की सराहना भी कर चुके थे। ऐसे में संसद में खुलकर कांग्रेस के पक्ष में बोलना यह संकेत देता है कि वैचारिक मुद्दों पर वह अब भी पार्टी की मूल सोच के साथ खड़े हैं।
सरकार की मंशा पर उठे सवाल
विपक्ष का आरोप है कि सरकार योजनाओं के नाम बदलकर अपनी वैचारिक छाप छोड़ना चाहती है। मनरेगा जैसी योजना, जिसने करोड़ों ग्रामीण परिवारों को रोजगार और सुरक्षा दी, उसके नाम से गांधी जी को हटाना केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश देने की कोशिश है।
सरकार की ओर से हालांकि यह तर्क दिया गया है कि ‘विकसित भारत’ की सोच के तहत योजनाओं का पुनर्गठन किया जा रहा है, लेकिन विपक्ष इसे इतिहास और विरासत से छेड़छाड़ मान रहा है।