भारतेंदु हरिश्चंद्र की पंक्ति ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल’ आज भी प्रासंगिक है। हिंदी सिनेमा केवल दृश्यों और अभिनय तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें संवाद, शब्द और भावनाओं की बारीक समझ दर्शकों को प्रभावित करती है। सही संवाद और सटीक उच्चारण कलाकार के अभिनय को और प्रभावशाली बनाता है।
आज की पीढ़ी के कई कलाकार अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हैं और घर पर अंग्रेजी बोलते हैं, जिससे उनकी हिंदी पर पकड़ कमजोर होती है। इसके बावजूद हिंदी सिनेमा में आने वाले कलाकारों के लिए यह भाषा सीखना आवश्यक है, जिससे वे अपनी भूमिका और भावनाओं को सही ढंग से पेश कर सकें।
कलाकारों के विचार – हिंदी पर पकड़ क्यों जरूरी है
मनोज बाजपेयी का दृष्टिकोण
अभिनेता मनोज बाजपेयी का मानना है कि “जिस भाषा के सिनेमा में काम कर रहे हैं, उसे जानना अनिवार्य है।” उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को हिंदी पर पकड़ बनाने में समय लग सकता है, लेकिन जब वे हिंदी सिनेमा में कदम रखते हैं, तो भाषा सीखना उनकी जिम्मेदारी है। मनोज बाजपेयी ने थिएटर और कविता प्रतियोगिताओं को अपनी भाषा पर पकड़ का श्रेय दिया और बताया कि बेटी को सही उच्चारण के साथ पढ़ते देखना उन्हें गर्व महसूस कराता है।
अपारशक्ति खुराना की सीख
अपारशक्ति खुराना कहते हैं, “हिंदी सिनेमा में अच्छी हिंदी पढ़ने और समझने से पात्र और भावनाओं की बारीकियाँ पकड़ना आसान होता है।” उन्होंने बताया कि वे और भाई आयुष्मान हिंदी अखबार, किताबें और नाटक के माध्यम से भाषा में प्रवीणता हासिल कर सकते हैं। अपनी पहली फिल्म ‘सात उचक्के’ में मनोज बाजपेयी, अनुपम खेर, अन्नू कपूर जैसे कलाकारों के साथ काम कर उन्होंने हिंदी पर उनकी पकड़ को सराहा।
श्रेयस तलपड़े की भाषा-संवेदनशीलता
अभिनेता श्रेयस तलपड़े का अनुभव है कि भाषा की लय और प्रवाह बनाए रखना अभिनय के लिए आवश्यक है। उन्होंने बताया कि मराठी परिवेश से होने के बावजूद उन्होंने हिंदी संवादों में मराठी शैली का प्रभाव न दिखाने का प्रयास किया। डायलॉग में बदलाव करने पर निर्देशक ने चेतावनी दी कि लेखक ने संवादों में विशेष लय बनाई है, जिसे तोड़ना उचित नहीं।
मनोज जोशी का मातृभाषा समर्पण
मनोज जोशी मानते हैं कि “सही संवाद के लिए भाषा पर पकड़ अनिवार्य है। भाषा की समझ के बिना भावनाओं का संप्रेषण असंभव है।” उन्होंने कहा कि हिंदी पर पकड़ उन्हें पिता और चाचा से मिली। उन्हें यह देखकर दुख होता है कि कुछ कलाकार देवनागरी लिपि भी पढ़ नहीं पाते। वे अपनी मां, मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति समर्पित रहते हुए हिंदी को सीखने और सम्मान देने पर जोर देते हैं।
नए कलाकारों के लिए भाषा सीखने के सूत्र
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रोजाना हिंदी अखबार और किताबें पढ़ें।
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संवादों का अभ्यास सही उच्चारण के साथ करें।
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थिएटर और नाटकों में भाग लेकर भाषा में प्रवाह बनाएं।
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मातृभाषा और हिंदी में भावनाओं की बारीकियाँ समझें।
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डायलॉग में लय और प्रवाह बनाए रखें।
हिंदी दिवस 2025 पर यह संदेश स्पष्ट है कि हिंदी सिनेमा में सफल होने के लिए भाषा पर पकड़ आवश्यक है। नए कलाकारों के लिए यह न केवल पेशेवर बल्कि सांस्कृतिक जिम्मेदारी भी है।