भारत में आयोजित होगा संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों का सम्मेलन
नई दिल्ली – भारत 14 से 16 अक्टूबर, 2025 तक नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र टुकड़ी योगदानकर्ता देशों (UN Troop Contributing Countries – TCC) के प्रमुखों का सम्मेलन आयोजित करेगा। इस सम्मेलन में 30 से अधिक देशों के सेना प्रमुख और वरिष्ठ सैन्य अधिकारी शामिल होंगे।
पाकिस्तान और चीन को आमंत्रित नहीं
सूत्रों के अनुसार, भारत ने इस सम्मेलन में पाकिस्तान और चीन को आमंत्रित नहीं किया है। जबकि इसके पड़ोसी देश, जैसे बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका को आमंत्रित किया गया है। यह कदम हालिया पहलगाम हमले और सुरक्षा स्थिति के मद्देनजर उठाया गया है।
सम्मेलन का उद्देश्य और महत्व
इस सम्मेलन का उद्देश्य UN शांति मिशनों में योगदान देने वाले देशों के सेना प्रमुखों को अनुभव, ज्ञान और वैश्विक शांति के प्रति प्रतिबद्धता साझा करने का अवसर प्रदान करना है। यह भारत के वैश्विक शांति प्रयासों में योगदान और नेतृत्व को उजागर करेगा।
भारत की नीति स्पष्ट
विदेश मंत्रालय के अधिकारी विश्वेश नेगी ने स्पष्ट किया कि भारतीय शांति सैनिक केवल UN के तहत ही तैनात होंगे। भारत की नीति है कि UN के बाहर, जैसे कि यूक्रेन या गाजा में, भारतीय सैनिक तैनात नहीं होंगे।
पहलगाम हमले और कूटनीतिक पृष्ठभूमि
पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक और सैन्य कदम उठाए। भारत ने सिंधु जल संधि को समाप्त किया, हवाई और समुद्री मार्ग बंद किए, और आतंकवादी ढांचों पर सटीक कार्रवाई की। इसके अलावा, दिल्ली स्थित देशों के राजदूतों को पाकिस्तान की भूमिका के प्रमाण से अवगत कराया गया।
भारत की UN शांति मिशनों में भूमिका
वर्तमान में लगभग 120 से 125 देश UN शांति सैनिकों, पुलिस और स्टाफ के रूप में योगदान देते हैं। भारत तीसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। 1950 से अब तक भारत ने 49 मिशनों में दो लाख से अधिक सैनिक तैनात किए हैं और 179 सैनिकों ने सेवा में बलिदान दिया। वर्तमान में भारतीय सैनिक नौ सक्रिय मिशनों में कार्यरत हैं, जिनमें शामिल हैं:
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लेबनान (UNIFIL): 900 सैनिक
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कांगो (MONUSCO): 1,100 सैनिक
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सूडान और साउथ सूडान (UNMIS/UNMISS): 600 और 2,400 सैनिक
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गोलन हाइट्स (UNDOF): 200 सैनिक
इसके अलावा, भारतीय अधिकारी पश्चिमी सहारा, मध्य पूर्व, साइप्रस और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में स्टाफ या पर्यवेक्षक के रूप में तैनात हैं।
इस सम्मेलन में पाकिस्तान और चीन के बहिष्कार से भारत एक स्पष्ट कूटनीतिक संदेश भेज रहा है। यह कदम भारत की वैश्विक शांति प्रयासों में नेतृत्व और जिम्मेदारी को मजबूत करता है। साथ ही, यह भारत की स्थिति को दुनिया के प्रमुख शांति सैनिकों के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा।