ब्रिटिशकालीन पहाड़ियों की गोद में बसे लोणावला में आज विभूतिपूर्ण आयोजन हुआ। कैवल्यधाम योग संस्थान ने अपनी १०१वीं वर्षगाँठ पर वह संवाद आयोजित किया, जिसमें योग के माध्यम से प्रकृति-मानव संबंध, सतत विकास और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की अनिवार्यता पर बल दिया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु एवं कैवल्यधाम के सीईओ सुबोध तिवारी सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
योग = केवल व्यायाम नहीं, संयोग का सूत्र
डॉ. मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में कहा कि मानव ने भौतिक प्रगति के नाम पर प्रकृति को भारी क्षति पहुंचाई है, जिससे धरती विकृत होती चली गई है। इस पृष्ठभूमि में योग सिर्फ शरीर को सुदृढ़ करने का अभ्यास नहीं है — योग संबंध जोड़ने, संतुलन स्थापित करने और पोषण की दिशा में क्रिया है।
वे बोले:
“योग केवल व्यायाम नहीं है, यह जोड़ने का माध्यम है। योग से शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का संतुलन संभव होता है।”
कैवल्यधाम की स्थापना इसी संतुलन की दिशा में की गई थी, और यह संस्था पृथ्वी पर शांति और सुख की स्थापना में सक्रिय है।
भागवत ने यह भी कहा कि यदि हम सृष्टि को पोषण नहीं देंगे, तो हमारी प्रगति एकतरफा और असमय समाप्त हो सकती है। मानव को न केवल अपनी भलाई, बल्कि प्रकृति के उत्थान की दिशा में भी कार्य करना होगा — यही योग का सर्वोच्च आदर्श है।
संस्थान एवं परंपरा का गौरव
स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरी ने बताया कि संस्थापक स्वामी कुवलयानंद जी ने योग को वैज्ञानिक कसौटी पर खरा साबित किया और उसकी रक्षा की। उनके योगदान से योग केवल आध्यात्मिक साधना नहीं, बल्कि प्रमाणित विज्ञान के रूप में विश्व के समक्ष स्थापित हुआ।
इन्होंने कहा कि आज कैवल्यधाम वही प्राचीन ज्ञान संरक्षण, अनुसंधान और प्रचार के माध्यम से आगे बढ़ा रहा है।

सुरेश प्रभु ने अपने विचार साझा करते हुए बताया कि योग शुद्ध परंपरा का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि कैवल्यधाम ने योग की उस परंपरा को संरक्षित किया है जो न केवल भारत की विरासत है, बल्कि वैश्विक स्तर पर समाज को संतुलन और स्वास्थ्य देने का माध्यम बन सकती है। उन्होंने संघ की भूमिका का भी उल्लेख किया कि यह संस्था समाज को संगठित कर समर्थ भारत बनाने का कार्य कर रही है।
शोध, शिक्षा और स्वास्थ्य में योग
कैवल्यधाम के सीईओ सुबोध तिवारी ने कार्यक्रम में विस्तार से बताया कि संस्था योग को उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने की दिशा में काम कर रही है। केवल स्वास्थ्य लाभ तक सीमित न होकर, योग को शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं चिकित्सा संदर्भों में स्थापित करना मकसद है।
उन्होंने कहा कि यहाँ कैंसर उपचार हेतु योग पर अनुसंधान भी चल रहा है, ताकि योग को सहायक चिकित्सा रूप में क्रियान्वित किया जा सके। इस प्रकार कैवल्यधाम ने योग को समग्र दृष्टि से आत्मसात किया है — न कि केवल व्यायाम या मानसिक शांति तक सीमित।
स्वास्थ्य, शिक्षा और समाज — ये तीनों क्षेत्र योग के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ते हैं। तिवारी ने यह उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में योग न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर स्वास्थ्य, शांति और प्राकृतिक संतुलन के स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित होगा।
योग और सतत विकास — एक दूसरे की पूरक
इस आयोजन का सर्वाधिक महत्व उस विचार में निहित था जिसमें योग और सतत विकास की यात्रा को जोड़ने का प्रयास किया गया।
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मानवता को विकास की दिशा में अग्रसर करते समय प्रकृति को नकारना समझदारी नहीं।
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विकास तभी सार्थक होगा, जब प्रकृति का उत्थान हमारे लक्ष्य में शामिल हो।
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योग की दृष्टि से, मनुष्य केवल शासक नहीं, बल्कि सृष्टि का संवाहक भी है।
कार्यक्रम ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि आज हमें केवल मानव विकास नहीं, बल्कि प्रकृति-मानव संतुलन की ओर प्रयत्न करना चाहिए। योग इस दिशा में साधन भी है, दर्शन भी है।
निष्कर्ष
लोणावला में आयोजित इस १०१वीं वर्षगाँठ कार्यक्रम ने यह सिद्ध कर दिया कि योग केवल शारीरिक साधना नहीं, बल्कि मानव-प्रकृति संवाद का संस्कार भी है। यहाँ संदेश स्पष्ट था — हमें अपनी प्रगति का माप मनुष्य के सिमित लाभ से नहीं करना, बल्कि उस प्रगति को प्रकृति की भलाई से जोड़ना होगा। कैवल्यधाम ने यह पहल सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि विश्व के सामने योग को एक समन्वयक शक्ति के रूप में प्रस्तुत करने की ठानी है।