Parliament Winter Session: संसद का शीतकालीन सत्र औपचारिक रूप से समाप्त हो गया, लेकिन इसके समापन के बाद संसद परिसर में जो दृश्य उभरा, उसने सियासी गलियारों में एक अलग ही चर्चा को जन्म दे दिया। आमतौर पर सत्र खत्म होते ही सत्ता और विपक्ष के बीच तल्खी की रेखाएं और गहरी दिखती हैं, लेकिन इस बार तस्वीर कुछ बदली हुई नजर आई। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी सहित सत्ता पक्ष और विपक्ष के कई प्रमुख नेता एक ही मंच पर साथ बैठे दिखाई दिए।
यह मुलाकात किसी औपचारिक बैठक का हिस्सा नहीं थी, बल्कि संसद की परंपरा के अनुसार आयोजित चाय चर्चा थी। हालांकि, मौजूदा राजनीतिक माहौल में इस तरह का दृश्य अपने आप में खास माना जा रहा है। चाय की प्याली के साथ संसद के कामकाज, सत्र की कार्यवाही और आगे की संभावनाओं पर अनौपचारिक बातचीत हुई। सामने आई तस्वीरों और वीडियो में सत्ता और विपक्ष के कई दिग्गज नेता सहज और सौहार्दपूर्ण माहौल में संवाद करते दिखे।
सत्र के बाद संवाद की परंपरा और उसका अर्थ
संसदीय लोकतंत्र में संवाद केवल सदन के भीतर ही नहीं, बल्कि उसके बाहर भी उतना ही महत्वपूर्ण माना जाता है। शीतकालीन सत्र के समापन के बाद प्रधानमंत्री द्वारा चाय चर्चा आयोजित करने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। इसका उद्देश्य राजनीतिक मतभेदों के बीच संवाद के रास्ते खुले रखना और व्यक्तिगत स्तर पर विश्वास बनाए रखना होता है।
इस बार की चाय चर्चा इसलिए भी अहम रही क्योंकि पिछले कुछ सत्रों में सत्ता और विपक्ष के रिश्तों में तीखी कटुता देखी गई थी। लगातार हंगामे, स्थगन और तीखी बयानबाजी के बीच यह मुलाकात एक सकारात्मक विराम की तरह सामने आई।
एक मंच पर दिखे सत्ता और विपक्ष के दिग्गज
इस अनौपचारिक बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, नागर विमानन मंत्री राम मोहन नायडू, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, ललन सिंह, किरण रिजिजू, अर्जुनराम मेघवाल जैसे सत्तापक्ष के प्रमुख चेहरे मौजूद रहे। वहीं विपक्ष की ओर से एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सुले, समाजवादी पार्टी के सांसद राजीव राय और धर्मेंद्र यादव, द्रविड़ मुनेत्र कषगम के सांसद ए राजा सहित कई दलों के फ्लोर लीडर भी शामिल हुए।
यह दृश्य इसलिए भी खास था क्योंकि इसमें वैचारिक रूप से एक-दूसरे के विरोधी नेता बिना किसी औपचारिकता के संवाद करते नजर आए।
प्रधानमंत्री और प्रियंका गांधी के बीच बातचीत
सूत्रों के अनुसार, चाय चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के बीच वायनाड को लेकर सौहार्दपूर्ण और सकारात्मक बातचीत हुई। इसे राजनीतिक शिष्टाचार और संवाद की दृष्टि से अहम माना जा रहा है। आमतौर पर संसद के भीतर जिस मुद्दे पर तीखी बहस होती है, उसी पर बाहर शांत और संतुलित बातचीत होना लोकतंत्र की परिपक्वता को दर्शाता है।
नए संसद भवन से जुड़ी मांगें
बैठक के दौरान सांसदों ने प्रधानमंत्री के समक्ष नए संसद भवन में एक समर्पित हॉल की मांग भी रखी, जहां अनौपचारिक बैठकों और संवाद के लिए स्थान उपलब्ध हो सके। इस पर एक वरिष्ठ मंत्री ने बताया कि पुराने संसद भवन में भी ऐसी व्यवस्था थी, लेकिन उसका उपयोग अपेक्षाकृत कम होता था।
यह चर्चा इस बात की ओर इशारा करती है कि नए संसद भवन के साथ केवल भौतिक ढांचा ही नहीं, बल्कि संवाद की संस्कृति को भी नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत महसूस की जा रही है।
सत्र की कार्यवाही पर आत्ममंथन
चाय चर्चा के दौरान सांसदों ने शीतकालीन सत्र को उपयोगी बताया, लेकिन साथ ही यह भी स्वीकार किया कि इसे और लंबा किया जा सकता था। कुछ सदस्यों का कहना था कि देर रात तक विधेयकों को पारित करना आदर्श संसदीय प्रक्रिया नहीं मानी जाती।
हल्के-फुल्के अंदाज़ में यह टिप्पणी भी की गई कि विपक्ष के लगातार विरोध प्रदर्शनों के कारण सत्र अपेक्षाकृत छोटा रहा। इस पर प्रधानमंत्री ने मज़ाकिया लहजे में कहा कि वह विपक्ष की आवाज़ों पर ज्यादा जोर नहीं डालना चाहते थे। यह टिप्पणी माहौल को और सहज बना गई।
बीते अनुभव और बदला माहौल
पिछले मॉनसून सत्र के समापन पर भी ऐसी ही चाय पार्टी आयोजित की गई थी, लेकिन तब उसमें केवल सत्ताधारी गठबंधन के नेता शामिल हुए थे। कांग्रेस सहित कई प्रमुख विपक्षी दलों ने उस समय चाय चर्चा का बहिष्कार किया था।
इस पृष्ठभूमि में शीतकालीन सत्र के बाद सभी दलों के नेताओं का एक साथ चाय पर चर्चा करना राजनीतिक हलकों में सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। यह इस बात का संकेत है कि भले ही मतभेद गहरे हों, संवाद के दरवाजे पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं।