Vaishno Devi VHP: माता वैष्णो देवी संस्थानों में धार्मिक संतुलन की मांग, विश्व हिन्दू परिषद् ने उठाई आस्था संरक्षण की आवाज

Vaishno Devi VHP: विश्व हिन्दू परिषद् ने माता वैष्णो देवी से जुड़े संस्थानों में हिन्दू भावना के संरक्षण की मांग की | Vishva Hindu Parishad
Vaishno Devi VHP: विश्व हिन्दू परिषद् ने माता वैष्णो देवी से जुड़े संस्थानों में हिन्दू भावना के संरक्षण की मांग की | Vishva Hindu Parishad | (File Photo)
विश्व हिन्दू परिषद् ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को पत्र लिखकर माता वैष्णो देवी से जुड़े संस्थानों में धार्मिक संतुलन की कमी पर चिंता जताई है। परिषद् ने प्रवेश और नियुक्ति नीति में हिन्दू भावना का सम्मान सुनिश्चित करने की मांग की है, ताकि मातारानी की आस्था से जुड़े संस्थानों की मर्यादा बनी रहे।
नवम्बर 9, 2025

माता वैष्णो देवी संस्थानों में धार्मिक संतुलन को लेकर विश्व हिन्दू परिषद् की चिंता

Vaishno Devi VHP: श्री माता वैष्णो देवी से जुड़े शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक संतुलन को लेकर विश्व हिन्दू परिषद् (विहिप) ने गहरी चिंता जताई है। परिषद् ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल एवं श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष श्री मनोज सिन्हा को संबोधित एक विस्तृत पत्र में इस विषय पर अपनी आपत्तियाँ दर्ज कराई हैं।

Vaishno Devi VHP: परिषद् ने उठाया हिन्दू भावना के संरक्षण का मुद्दा

विहिप ने अपने पत्र में कहा है कि माता वैष्णो देवी से संबंधित सभी संस्थान उन भक्तों की श्रद्धा से प्राप्त निधि से संचालित होते हैं, जिन्होंने मातारानी के प्रति अटूट आस्था रखी है। ऐसे में इन संस्थानों में हिन्दू संस्कृति और धार्मिक मूल्यों का प्रतिबिंब होना स्वाभाविक और आवश्यक है। परिषद् ने इसे “धर्म और संस्कृति से जुड़ी भावनाओं के सम्मान” का प्रश्न बताया है।

Vaishno Devi VHP: विश्व हिन्दू परिषद् ने माता वैष्णो देवी से जुड़े संस्थानों में हिन्दू भावना के संरक्षण की मांग की | Vishva Hindu Parishad
Vaishno Devi VHP: विश्व हिन्दू परिषद् ने माता वैष्णो देवी से जुड़े संस्थानों में हिन्दू भावना के संरक्षण की मांग की | Vishva Hindu Parishad

Vishva Hindu Parishad News: छात्र-शिक्षक अनुपात में असंतुलन पर आपत्ति

पत्र में बताया गया है कि माता वैष्णो देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस के पहले बैच में केवल छह हिन्दू छात्र हैं, जबकि 44 मुस्लिम छात्र नामांकित हैं। इसके अलावा, शिक्षकों और कर्मचारियों में भी हिन्दू समुदाय का अनुपात बेहद कम है। परिषद् ने इस स्थिति को हिन्दू समाज की भावना के विपरीत बताया और कहा कि “माता वैष्णो देवी के नाम से चलने वाले संस्थान में ऐसा असंतुलन न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि आस्था पर आघात भी है।”

प्रवेश और नियुक्ति में धार्मिक संतुलन की मांग

Vaishno Devi VHP: विहिप ने सुझाव दिया है कि भविष्य में प्रवेश नीति और शिक्षकों-कर्मचारियों की नियुक्ति प्रक्रिया में धार्मिक संवेदनशीलता का ध्यान रखा जाए। परिषद् ने स्पष्ट किया कि किसी भी वर्ग के साथ भेदभाव की बात नहीं है, बल्कि उद्देश्य यह है कि माता वैष्णो देवी की निधि और संस्थान हिन्दू धार्मिक परंपराओं के अनुरूप संचालित हों।

अदालत के निर्णय का हवाला

परिषद् ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक निर्णय का उल्लेख किया है, जिसमें कहा गया था कि मंदिर निधियों का उपयोग केवल हिन्दू धार्मिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए होना चाहिए। विहिप ने इस निर्णय का उदाहरण देते हुए कहा कि माता वैष्णो देवी संस्थान भी इसी सिद्धांत का पालन करें, ताकि भक्तों की भावना और मातारानी के मंदिर की गरिमा बनी रहे।

Vaishno Devi VHP: मातारानी के भक्तों की भावना सर्वोपरि

पत्र के अंत में परिषद् ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से आग्रह किया है कि वे इस विषय की समीक्षा करें और ऐसे कदम उठाएँ जिससे हिन्दू समाज की आस्था और भावना का सम्मान हो सके। परिषद् का मानना है कि यदि माता वैष्णो देवी से जुड़ी संस्थाएँ हिन्दू मूल्यों और परंपराओं के अनुरूप संचालित होती हैं, तो इससे न केवल धार्मिक संतुलन बना रहेगा बल्कि समाज में सामंजस्य का भी संदेश जाएगा।


Vishva Hindu Parishad News: विश्व हिन्दू परिषद् का यह पत्र केवल एक प्रशासनिक आग्रह नहीं, बल्कि हिन्दू समाज की व्यापक भावना का प्रतिनिधित्व करता है। माता वैष्णो देवी जैसे आस्था-स्थलों से जुड़े संस्थानों में धार्मिक संतुलन की माँग इस बात का प्रतीक है कि धर्म, संस्कृति और आस्था को आधुनिक शिक्षा और प्रबंधन के साथ सामंजस्यपूर्वक जोड़ा जा सकता है। अब देखना यह है कि उपराज्यपाल एवं श्राइन बोर्ड इस संवेदनशील विषय पर क्या निर्णय लेते हैं।


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Aryan Ambastha

Writer & Thinker | Finance & Emerging Tech Enthusiast | Politics & News Analyst | Content Creator. Nalanda University Graduate with a passion for exploring the intersections of technology, finance, Politics and society. | Email: aryan.ambastha@rashtrabharat.com



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Mohan Bhagwat RSS“हिंदू होना भारत के प्रति उत्तरदायित्व का प्रतीक है” – डॉ. मोहन भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को बेंगलुरु में दो दिवसीय व्याख्यानमाला का शुभारंभ किया। इस व्याख्यान श्रृंखला का विषय था — “राष्ट्रीय जीवन में संघ की दृष्टि और भूमिका”। भागवत जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि “हिंदू होना केवल एक पहचान नहीं है, बल्कि यह भारत के प्रति जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व का प्रतीक है।” संघ को समझने के लिए तथ्य जरूरी, अफवाह नहीं अपने संबोधन की शुरुआत में डॉ. भागवत ने कहा कि पिछले एक दशक से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आती रही हैं, परंतु इनमें से अधिकांश धारणाएँ अधूरी या अफवाहों पर आधारित हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा, “संघ को दूसरों की बातों से नहीं जाना जा सकता। जो लोग संघ को समझना चाहते हैं, उन्हें स्वयं अनुभव करना होगा। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भ्रम फैलते रहेंगे।” भागवत जी ने यह भी याद दिलाया कि 2018 में दिल्ली में इसी उद्देश्य से व्याख्यानमाला आयोजित की गई थी ताकि संघ के बारे में प्रामाणिक और तथ्यात्मक जानकारी समाज तक पहुँचे। समर्थन या विरोध का आधार तथ्य होना चाहिए आरएसएस प्रमुख ने अपने वक्तव्य में कहा कि किसी भी संगठन के प्रति समर्थन या विरोध भावनाओं पर नहीं, बल्कि तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा, “संघ को समझे बिना उसकी आलोचना या समर्थन करना उचित नहीं। जो लोग संघ को जानते हैं, वे जानते हैं कि इसका उद्देश्य केवल राष्ट्र सेवा है।” भागवत जी के अनुसार, संघ किसी राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, समाज और राष्ट्र की एकजुटता के लिए कार्यरत संस्था है। “हिंदू” शब्द का गहरा अर्थ डॉ. मोहन भागवत ने कहा, “जब हम स्वयं को हिंदू कहते हैं, तो यह केवल धर्म की परिभाषा नहीं, बल्कि हमारी जीवनशैली, हमारी संस्कृति और हमारे राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव है।” उन्होंने समझाया कि हिंदुत्व का अर्थ किसी विशेष पूजा-पद्धति से नहीं, बल्कि उस जीवनदृष्टि से है जो सबके कल्याण और समरसता की भावना रखती है। भागवत जी ने कहा, “हिंदू होना मतलब यह मानना कि हम सब एक ही मातृभूमि के संतान हैं। भारत की सेवा, समाज की रक्षा और संस्कृति का संरक्षण ही सच्चा राष्ट्रधर्म है।” समाज के प्रति उत्तरदायित्व का भाव अपने वक्तव्य में उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह समाज में समरसता और सहयोग की भावना बनाए रखे। उन्होंने कहा, “संघ किसी व्यक्ति या संगठन के विरोध में नहीं, बल्कि सकारात्मक राष्ट्र निर्माण में विश्वास रखता है। हमें एक-दूसरे को समझने और जोड़ने की दिशा में कार्य करना चाहिए।” भागवत जी ने समाज के सभी वर्गों से अपील की कि वे परस्पर मतभेदों को छोड़कर देश के विकास के लिए एकजुट हों। उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा उसकी विविधता में बसती है, और यही विविधता राष्ट्र की शक्ति है। राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका डॉ. भागवत ने बताया कि संघ का उद्देश्य किसी राजनीतिक सत्ता का केंद्र बनना नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग में राष्ट्रीय चेतना का विकास करना है। उन्होंने कहा, “संघ का काम व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण करना है। जब व्यक्ति अपने कर्तव्य को समझेगा, तभी समाज और राष्ट्र सशक्त बनेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि आज भारत विश्व में एक नई भूमिका निभाने जा रहा है, और इस परिवर्तन के केंद्र में भारतीय संस्कृति की वही प्राचीन दृष्टि है — “वसुधैव कुटुंबकम्।” Short Summary (50 Words): बेंगलुरु में आयोजित व्याख्यानमाला में आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू होना केवल पहचान नहीं, बल्कि भारत के प्रति जिम्मेदारी का भाव है। उन्होंने संघ को समझने के लिए अफवाहों से नहीं, बल्कि तथ्यों से जुड़ने की अपील की और राष्ट्र निर्माण में एकता पर बल दिया।: “हिंदू होना भारत के प्रति उत्तरदायित्व का प्रतीक है” – डॉ. मोहन भागवत