माओवादी संगठन में केंद्रीय नेतृत्व और सबसे खतरनाक सैन्य कमांडरों में गिने जाने वाले मदवी हिड़मा की 18 नवंबर 2025 को आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के मरेडुमिल्ली जंगल में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मौत हो गई। यह घटना न केवल उस क्षेत्र के लिए बल्कि पूरे देश में माओवादी विद्रोह के संदर्भ में एक निर्णायक मोड़ मानी जा रही है।
हिड़मा कौन था और उसकी पहचान
मदवी हिड़मा, जिन्हें आदिवासी कमांडर के रूप में जाना जाता था, का जन्म पुवर्ती गांव (वर्तमान छत्तीसगढ़) में हुआ था। उन्होंने माओवादी संगठन में अपनी शारीरिक क्षमता, रणनीतिक कौशल और जंगल युद्ध की विशेष विशेषज्ञता के कारण तीव्र उन्नति पायी थी। वह सीपीआई (माओवादी) की सबसे खतरनाक इकाइयों में से एक, पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA)-1 के प्रमुख थे
उनकी ओर से कई घातक हमलों का आयोजन किया गया था, जैसे कि 2010 में दन्तेवाड़ा में सीआरपीएफ जवानों पर हमला, 2013 का झीरम घाटी हमला, और 2021 में सुकमा-बिजापुर अभियान। उनकी इन गतिविधियों के कारण उन पर करोड़ों रुपये का इनाम घोषित था।
इसके अतिरिक्त, हिड़मा सीपीआई (माओवादी) की दंडकारण्य विशेष जोनल समिति (Dandakaranya Special Zonal Committee) में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।
18 नवंबर की सुबह, आंध्र प्रदेश पुलिस की स्पेशल इकाइयों ने मरेडुमिल्ली जंगल क्षेत्र में एक बड़ी कार्रवाई की। यह जानकारी मिली थी कि हिड़मा एक माओवादी समूह के साथ उसी जंगल में मौजूद है।
सूचना-खुफिया एजेंसियों और पुलिस ने मिलकर यह ऑपरेशन अंजाम दिया, जिसमें Greyhounds – आंध्र प्रदेश की विशेष माओवादी विरोधी कॉमैंडो इकाई – शामिल थी। मुठभेड़ गहरे जंगल में हुई और इसमें हिड़मा के अलावा उनके पत्नी राजे (राजक्का) समेत अन्य माओवादी भी मार गिराए गए।
घटनास्थल से हथियार, गोला-बारूद और अन्य माओवादी सामग्री बरामद की गई। उच्च स्तरीय पुलिस अधिकारियों ने इसे एक “मोन्युमेंटल जीत” बताया, क्योंकि हिड़मा के नियंत्रणकक्ष और संरचनात्मक शक्ति को काटने की दिशा में यह बड़ा कदम माना जा रहा है।
हिड़मा का माओवादी संगठन में महत्व
हिड़मा सिर्फ एक कमांडर ही नहीं थे, बल्कि माओवादी संगठन के लिए एक रणनीतिक धुरी थे। उनका आदिवासी पृष्ठभूमि उन्हें वहां के स्थानीय युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाती थी, और वह नए भर्ती करने में सक्षम नेतृत्वकर्ता थे।
उनके नेतृत्व में PLGA-1 बटालियन को माओवादी की “हमलावर इकाई” माना जाता था। उनका सैन्य दृष्टिकोण उग्र था — उन्होंने खुले जंगल युद्ध, घात-कार्यवाही और उच्च रणनीति पर विशेष जोर दिया था। उनकी योजनाओं ने सुरक्षा बलों को वर्षों तक चुनौती दी।
विशेषज्ञों का मानना है कि हिड़मा की हत्या से माओवादी संगठन में एक महत्वपूर्ण शक्ति स्रोत और प्रेरणा स्रोत नष्ट हो गया है। यह न केवल उनकी व्यक्तिगत छवि को खत्म करता है, बल्कि संरचनात्मक क्षति भी पहुंचाता है।
नेतृत्व संकट और माओवादियों पर दबाव
हिड़मा की मृत्यु उस समय हुई है, जब माओवादी संगठन नेतृत्व संकट का सामना कर रहा था। उनकी टीम के कई वरिष्ठ नेता पहले ही मारे जा चुके हैं या गिरफ्तार हो चुके हैं।
विशेष रूप से, मई 2025 में नम्बला केशव राव (Basavaraju) की मौत ने संगठन को बड़ा झटका दिया था और उनके जाने की खाली जगह किसी नए नेता ने भर पाना कठिन था।
पुलिस और सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि हिड़मा की अनुपस्थिति से माओवादी रणनीतियों में खलल आने की संभावना है। कमांड स्ट्रक्चर कमजोर पड़ा है, और स्थानीय युनिटों में निराशा का भाव बढ़ सकता है।
माओवादी खतरे पर राष्ट्रीय सुरक्षा की प्रतिक्रिया
हिड़मा के एनकाउंटर को सिर्फ स्थानीय सुरक्षा बलों की जीत नहीं माना जा रहा है, बल्कि यह राष्ट्रीय स्तर पर माओवादी विद्रोह के लिए एक निर्णायक क्षण बताया जा रहा है।
केंद्रीय और राज्य सरकारों ने माओवादी समस्या को हल करने में कड़ी रणनीतियाँ अपनाई हैं — दूसरा हाथ-करणी दबाव, खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना, सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाना, और नक्सलवाद के मूल कारणों पर ध्यान देना। हिड़मा की हत्या को एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि यह कदम न केवल उनकी सैन्य क्षमताओं को ख़त्म करता है, बल्कि नए नक्सलियों के हौसले को तोड़ने में भी मदद कर सकता है।
भविष्य की चुनौतियाँ और आंखें आगे की ओर
हिड़मा के जाने के बाद, माओवादी संगठन को दो बड़े प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है:
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नेतृत्व रिक्तता: जैसे-जैसे वरिष्ठ कमांडरों की संख्या घटती जा रही है, संगठन को नए और प्रभावी नेताओं की कमी महसूस हो सकती है।
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घड़ी रणनीति का पुनर्गठन: उनकी योजनाएं और सैन्य संरचना अब उन्हें बिना हिड़मा के दोबारा मसल सकती हैं — इसके लिए उन्हें नया सैन्य और नेतृत्व मॉडल अपनाना होगा।
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सरकारी नीतियों का दबाव: केंद्र और राज्य सरकार न केवल सुरक्षा मोर्चे पर, बल्कि विकास, शिक्षा, और पुनर्स्थापन नीतियों के ज़रिए नक्सल प्रभावित इलाकों में सुधार की गति को बढ़ा सकते हैं।
मदवी हिड़मा की मृत्यु भारतीय माओवादी आंदोलन के लिए एक बड़ा धक्का है। उनकी अनुभवी और खतरनाक सैन्य रणनीतियाँ, स्थानीय जनसंवाद, और संगठनात्मक शक्ति ने उन्हें वर्षों तक सुरक्षा बलों के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण प्रतिद्वंदियों में से एक बना दिया था।
उनके समाप्त होने का मतलब है माओवादी आंदोलन में सैन्य नेतृत्व का क्षय, और यह संभव है कि यह कदम संगठन को कमजोर कर दे। लेकिन यह भी सच है कि माओवादी व्यवस्था सिर्फ एक व्यक्ति पर आधारित नहीं थी — यह एक लंबे संघर्ष, स्थानीय संदर्भ, और जन योगदान पर टिकी है। यदि केंद्र-राज्य मिलकर सुरक्षा और विकास को संतुलित दृष्टिकोण से आगे बढ़ाएँ, तो हिड़मा की मौत एक बदलाव का प्रारंभिक बिंदु हो सकती है, न कि अंत।