बिहार एग्जिट पोल 2025: प्रशांत किशोर की जन सुराज को झटका, एग्जिट पोल में शून्य से दो सीटों तक सीमित अनुमान
बिहार की सियासत में नई उम्मीद या असफल प्रयोग?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे और अंतिम चरण का मतदान पूरा होते ही एग्जिट पोल के नतीजे सामने आने लगे हैं। इन नतीजों ने जहां एक ओर एनडीए खेमे में उत्साह भर दिया है, वहीं प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के लिए यह बड़ा झटका साबित हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों की निगाहें इस बात पर टिकी थीं कि पीके (प्रशांत किशोर) का नया राजनीतिक प्रयोग बिहार की सियासत में क्या रंग लाएगा, लेकिन शुरुआती संकेत उम्मीद के अनुरूप नहीं हैं।
पीपल्स इंसाइट सर्वे में निराशाजनक आंकड़े
पीपल्स इंसाइट के एग्जिट पोल के अनुसार, जन सुराज पार्टी को इस चुनाव में महज शून्य से दो सीटें मिलने का अनुमान है। यह परिणाम उस समय बड़ा झटका माने जा रहे हैं, जब प्रशांत किशोर पूरे बिहार में ‘जन संवाद यात्रा’ और ‘सुशासन की नई परिभाषा’ जैसे अभियानों के ज़रिए जनता से सीधा संपर्क बना रहे थे।
उनका दावा था कि जनता पुराने राजनीतिक समीकरणों से ऊब चुकी है और इस बार जन सुराज को मौका देगी। लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़े इन दावों के बिल्कुल विपरीत तस्वीर पेश कर रहे हैं।
एनडीए की वापसी के संकेत
एग्जिट पोल में एनडीए गठबंधन को 133 से 148 सीटों तक का अनुमान दिया गया है। वहीं महागठबंधन 87 से 102 सीटों के बीच सिमटता दिख रहा है। यह परिणाम स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार बन सकती है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रशासनिक पकड़ और एनडीए के संगठित चुनावी अभियान ने विपक्ष को कमजोर किया है।
जन सुराज का जनाधार क्यों नहीं बन पाया?
प्रशांत किशोर, जिन्हें भारत के शीर्ष राजनीतिक रणनीतिकारों में गिना जाता है, ने पहली बार सक्रिय राजनीति में कदम रखा था। उन्होंने दावा किया था कि वे बिहार की राजनीति को जातीय समीकरणों से ऊपर उठाकर विकास के एजेंडे पर आधारित करेंगे।
लेकिन राजनीतिक जानकारों के अनुसार, जन सुराज के पास न तो कोई मज़बूत संगठनात्मक ढांचा था, न कोई प्रभावशाली स्थानीय नेतृत्व। ग्रामीण इलाकों में पार्टी का नेटवर्क बहुत सीमित रहा, और बड़े सामाजिक समूहों ने भी उन्हें खुला समर्थन नहीं दिया।
जन सुराज की रणनीति, जो डेटा और जनसंवाद पर आधारित थी, वोट में तब्दील नहीं हो सकी।
प्रशांत किशोर की राजनीतिक यात्रा पर सवाल
एग्जिट पोल के परिणामों के बाद अब राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या प्रशांत किशोर की सक्रिय राजनीति में एंट्री असफल मानी जाएगी।
पीके ने पहले कई राष्ट्रीय पार्टियों को रणनीतिक बढ़त दिलाई थी, जिनमें कांग्रेस, टीएमसी और जेडीयू शामिल हैं। लेकिन अपनी ही पार्टी के लिए रणनीति बनाना और उसे जनता तक पहुंचाना एक बिल्कुल अलग चुनौती साबित हुई।
भविष्य की राह और संभावनाएँ
विश्लेषकों का मानना है कि भले ही एग्जिट पोल के नतीजे जन सुराज के लिए निराशाजनक हों, लेकिन प्रशांत किशोर के पास लंबी राजनीतिक यात्रा का समय है। उन्होंने जो वैकल्पिक राजनीति का नैरेटिव शुरू किया है, वह आने वाले वर्षों में जनभावना को प्रभावित कर सकता है।
यदि पार्टी इन चुनावों से सबक लेकर संगठन को मज़बूत करती है और स्थानीय स्तर पर भरोसा बनाती है, तो 2030 तक जन सुराज एक असरदार विपक्ष बन सकती है।
बिहार एग्जिट पोल 2025 के प्रारंभिक परिणामों ने साफ़ कर दिया है कि राज्य की राजनीति अब भी पारंपरिक गठबंधनों के इर्द-गिर्द घूम रही है। प्रशांत किशोर का ‘जन सुराज’ प्रयोग जनता के दिल तक नहीं पहुंच सका। फिलहाल, बिहार की सत्ता की कमान फिर से एनडीए के हाथों में जाती दिख रही है।