Bihar News: बिहार की राजनीति में अक्सर छोटे फैसले भी बड़े संकेत दे जाते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा हाल ही में गठित तीन नए विभागों का मंत्रिमंडल में बंटवारा भी ऐसा ही एक निर्णय है, जो केवल प्रशासनिक बदलाव नहीं बल्कि सत्ता संतुलन, गठबंधन राजनीति और भविष्य की रणनीति को भी उजागर करता है। नई सरकार के गठन के बाद यह पहला बड़ा विभागीय पुनर्गठन माना जा रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री ने कुछ जिम्मेदारियां खुद संभालते हुए बाकी विभाग सहयोगी मंत्रियों को सौंपे हैं।
नई सरकार, नए विभाग और नई प्राथमिकताएं
एनडीए की नई सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि प्रशासनिक ढांचे को नए सिरे से गढ़ा जाएगा। इसी क्रम में तीन नए विभागों का गठन किया गया। इन विभागों का उद्देश्य केवल कामकाज का बंटवारा करना नहीं, बल्कि राज्य की उभरती जरूरतों—रोजगार, उच्च शिक्षा और बुनियादी ढांचे—पर विशेष ध्यान देना है। अब इन विभागों को किस मंत्री के पास दिया गया, यह भी उतना ही अहम है जितना इनका गठन।
सीएम ने अपने पास रखा सिविल विमानन विभाग
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सिविल विमानन विभाग अपने पास रखा है। यह फैसला कई स्तरों पर अहम माना जा रहा है। बिहार में हवाई संपर्क को बेहतर बनाना लंबे समय से सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल रहा है। नए हवाई अड्डे, छोटे शहरों को उड़ान योजना से जोड़ना और निवेश को आकर्षित करना ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर सीधे मुख्यमंत्री की नजर रहने वाली है। राजनीतिक रूप से भी यह संदेश साफ है कि बुनियादी ढांचे और विकास से जुड़े बड़े फैसलों की कमान नीतीश कुमार अपने हाथ में ही रखना चाहते हैं।
शिक्षा में अनुभव को तरजीह
जेडीयू कोटे से मंत्री सुनील कुमार को उच्च शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी दी गई है। पहले से ही उनके पास शिक्षा और विज्ञान, प्रावैधिकी एवं तकनीकी शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग हैं। अब उच्च शिक्षा जुड़ने से उनके कंधों पर जिम्मेदारी और बढ़ गई है। यह निर्णय अनुभव आधारित माना जा रहा है, क्योंकि राज्य में विश्वविद्यालयों की स्थिति, कॉलेजों में शिक्षकों की कमी और पाठ्यक्रमों के आधुनिकीकरण जैसे मुद्दे लंबे समय से चर्चा में हैं। सरकार शायद यह चाहती है कि एक ही मंत्री के अधीन शिक्षा से जुड़े अहम फैसले लिए जाएं, ताकि नीति में निरंतरता बनी रहे।
रोजगार और कौशल पर फोकस
भाजपा कोटे से मंत्री संजय सिंह टाइगर को युवा, रोजगार एवं कौशल विकास विभाग सौंपा गया है। पहले से उनके पास श्रम संसाधन विभाग है, जिसका नाम बदलकर श्रम संसाधन एवं प्रवासी श्रमिक कल्याण विभाग किया गया है। बिहार जैसे राज्य में रोजगार सबसे बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा रहा है। युवाओं का पलायन, स्थानीय स्तर पर अवसरों की कमी और कौशल विकास की जरूरत—इन सभी सवालों का जवाब अब इसी विभाग से अपेक्षित होगा। यह जिम्मेदारी भाजपा के खाते में देकर गठबंधन के भीतर संतुलन बनाने की कोशिश भी साफ नजर आती है।
मुख्यमंत्री के पास कितने विभाग
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास पहले से सामान्य प्रशासन, मंत्रिमंडल सचिवालय, निगरानी और निर्वाचन जैसे अहम विभाग हैं। अब सिविल विमानन भी उनके पास आ गया है। इसके अलावा वे सभी विभाग, जो किसी अन्य मंत्री को आवंटित नहीं किए गए हैं, मुख्यमंत्री के अधीन ही रहते हैं। यह व्यवस्था बिहार में नई नहीं है, लेकिन इससे यह जरूर झलकता है कि नीतीश प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथ से ढीला नहीं करना चाहते।
गृह विभाग छोड़ने का राजनीतिक संदेश
पिछले महीने नीतीश कुमार ने एक बड़ा और चौंकाने वाला फैसला लिया था—गृह विभाग भाजपा को सौंप दिया। बीते दो दशकों से यह विभाग मुख्यमंत्री के पास ही रहा था। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को गृह मंत्री बनाकर नीतीश ने गठबंधन सहयोगी को मजबूत संकेत दिया कि सरकार सामूहिक नेतृत्व के साथ चलेगी। नए विभागों का बंटवारा उसी राजनीतिक संतुलन की अगली कड़ी माना जा रहा है।
आगे की राह
आने वाले महीनों में यह साफ होगा कि नए विभागों का गठन और उनका बंटवारा जमीन पर कितना असर दिखाता है। रोजगार के अवसर बढ़ते हैं या नहीं, उच्च शिक्षा में सुधार आता है या नहीं, और हवाई संपर्क से निवेश को कितनी गति मिलती है—इन सवालों के जवाब ही इस फैसले की असली परीक्षा होंगे।