एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर फिर बढ़ी बेचैनी
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में सीट बंटवारे को लेकर एक बार फिर तनाव बढ़ गया है।
भाजपा और जदयू के बीच संतुलन साधने की कोशिश जारी है, लेकिन चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की बढ़ी हुई मांगों ने समीकरण बिगाड़ दिए हैं। हर दल अपनी राजनीतिक हैसियत के हिसाब से अधिक सीटें चाहता है, जिससे गठबंधन के भीतर खींचतान तेज हो गई है।
जदयू ने खुद को प्रक्रिया से किया अलग
सूत्रों के अनुसार, जदयू ने सीट बंटवारे की प्रारंभिक प्रक्रिया से खुद को अलग कर लिया है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा —
“भाजपा पहले अन्य सहयोगी दलों — लोजपा (रा), हम और रालोमो — के बीच सीटों का बंटवारा कर ले, उसके बाद बची सीटों पर भाजपा और जदयू आपस में निर्णय करेंगे।”
जदयू का यह रुख साफ संकेत देता है कि पार्टी इस बार बातचीत में संयमित भूमिका निभा रही है, जबकि भाजपा पर सभी दलों को साधने की जिम्मेदारी है।
चिराग और मांझी की मांगों से बढ़ी BJP की मुश्किल
लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने इस बार सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने साफ किया है कि पार्टी अब किसी समझौते के मूड में नहीं है।
वहीं, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतन राम मांझी ने 15 सीटों की मांग कर एनडीए की रणनीति को उलझा दिया है।
मांझी का कहना है कि —
“कम से कम 15 सीटें मिलें ताकि परिणाम चाहे जैसे हों, हमारे सात-आठ विधायक विधानसभा में पहुंच जाएं। इससे हमारी पार्टी को राज्य पार्टी का दर्जा मिल सके।”
उनके इस बयान ने भाजपा और जदयू दोनों को असहज कर दिया है, क्योंकि सीमित सीटों में सभी सहयोगियों को संतुष्ट करना अब कठिन होता जा रहा है।
‘अपमानजनक है कि हमें चुनाव आयोग की बैठक में नहीं बुलाया जाता’ — मांझी
मांझी ने अपनी नाराजगी को शब्दों में पिरोते हुए कहा कि चार विधायक, एक विधान पार्षद और एक सांसद होने के बावजूद उनकी पार्टी को चुनाव आयोग की बैठकों में नहीं बुलाया जाता।
उन्होंने इशारों में चिराग पासवान पर भी तंज कसते हुए कहा —
“जिनके विधानसभा में एक भी विधायक नहीं हैं, वे भी अधिक सीटों की मांग कर रहे हैं।”
उनका यह बयान एनडीए में अंदरूनी असंतोष की झलक देता है।
कुशवाहा ‘साइलेंट मोड’ में, भाजपा-जदयू रख रहे हैं सम्मान
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
सूत्रों का कहना है कि वे पूरी तरह भाजपा और जदयू के फैसले पर निर्भर हैं। दोनों दल उन्हें “सम्मानजनक भूमिका” देने के पक्ष में हैं ताकि गठबंधन में कोई और असंतुलन न पैदा हो।
वर्तमान फॉर्मूला: 40 सीटें तीन सहयोगियों के लिए
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा-जदयू के अलावा बाकी तीन सहयोगी दलों — लोजपा (रा), हम, और रालोमो — के लिए 40 सीटें निर्धारित की गई हैं।
इसमें —
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25 सीटें लोजपा (रा) के खाते में,
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8 सीटें हम के लिए,
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और 7 सीटें रालोमो के लिए तय की गई हैं।
हालांकि, अंदरूनी सूत्रों के अनुसार यह संख्या अंतिम नहीं है और आपसी सहमति के बाद इसमें वृद्धि की संभावना है।
गठबंधन संतुलन बनाना बड़ी चुनौती
भाजपा और जदयू के बीच आपसी तालमेल बना हुआ है, पर सहयोगी दलों की बढ़ी हुई मांगों ने सीट बंटवारे की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में यह एनडीए के भीतर शक्ति-संतुलन की परीक्षा साबित होगी।
यदि सहमति जल्द नहीं बनी, तो गठबंधन की एकजुटता पर असर पड़ सकता है।
निष्कर्ष: गठबंधन में सहमति से पहले उठने वाले सवाल
बिहार में सीट बंटवारे का गणित जितना राजनीतिक है, उतना ही भावनात्मक भी।
हर दल अपनी उपस्थिति को मजबूत करना चाहता है, लेकिन एनडीए के लिए यह “एकता बनाम आकांक्षा” की परीक्षा है।
चुनाव नजदीक हैं — और बिहार की राजनीति में समीकरण किसी भी वक्त करवट बदल सकते हैं।