लालू के गृह जिले में बदला समीकरण, पिता की हत्या के बाद बेटे को मिला मौका
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का माहौल अब धीरे-धीरे गर्माने लगा है। इस बार गोपालगंज सीट से चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प नजर आ रहा है। यह सीट हमेशा से राजनीतिक रूप से चर्चित रही है, क्योंकि यह आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का गृह जिला है।
लेकिन इस बार समीकरण कुछ अलग दिख रहे हैं। जहां एक ओर महागठबंधन ने इस क्षेत्र से किसी भी अल्पसंख्यक प्रत्याशी को मैदान में नहीं उतारा है, वहीं दूसरी ओर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) ने बड़ा दांव खेलते हुए अब्दुल सलाम उर्फ असलम मुखिया के बेटे अनस सलाम को प्रत्याशी बनाया है।
पिता की हत्या के बाद बेटे की एंट्री से बदला चुनावी समीकरण
अब्दुल सलाम उर्फ असलम मुखिया की पहचान गोपालगंज में एक मजबूत सामाजिक और स्थानीय नेता के रूप में थी। पिछले उपचुनाव के बाद उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जिससे पूरे जिले में सनसनी फैल गई थी।
असलम मुखिया की मौत के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब उनके बेटे अनस सलाम ने संभाली है। एआईएमआईएम ने इस युवा चेहरे पर भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट देकर मैदान में उतारा है।
पार्टी का मानना है कि अनस सलाम अपने पिता की लोकप्रियता और अपने युवाजनप्रिय छवि के दम पर गोपालगंज की राजनीति में नया अध्याय लिख सकते हैं।
एआईएमआईएम का मकसद – हाशिए पर खड़े समाज को प्रतिनिधित्व देना
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का कहना है कि गोपालगंज जैसे जिलों में अल्पसंख्यक समाज को राजनीतिक रूप से नज़रअंदाज़ किया गया है।
महागठबंधन और एनडीए दोनों ही गठबंधन ने इस बार किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है।
ऐसे में एआईएमआईएम इस रिक्त राजनीतिक स्पेस को भरने की कोशिश कर रही है।
अनस सलाम के नामांकन के बाद एआईएमआईएम का संदेश साफ है — पार्टी उन तबकों को आवाज देना चाहती है जिन्हें मुख्यधारा की राजनीति ने लंबे समय तक अनदेखा किया है।
गोपालगंज में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार गोपालगंज सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है।
एक ओर एनडीए के उम्मीदवार अपनी परंपरागत जातीय समीकरणों के भरोसे हैं, वहीं महागठबंधन सामाजिक गठजोड़ पर खेल रही है।
इसी बीच, एआईएमआईएम का प्रवेश दोनों के समीकरण बिगाड़ सकता है।
14 नवंबर को जब नतीजे आएंगे, तब यह तय होगा कि अनस सलाम की एंट्री किसके वोट बैंक को नुकसान पहुंचाती है।
फिलहाल, एआईएमआईएम की मौजूदगी ने गोपालगंज के चुनावी मैदान को काफी हद तक जीवंत बना दिया है।
लोगों में सहानुभूति और युवा चेहरे की उम्मीद
अब्दुल सलाम की हत्या ने इलाके में गहरी छाप छोड़ी थी।
लोगों में आज भी उनके प्रति सहानुभूति है, और यही भावना अब उनके बेटे अनस सलाम के पक्ष में काम कर सकती है।
एक युवा उम्मीदवार के रूप में वे युवाओं से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं, साथ ही अपने पिता की अधूरी राजनीतिक लड़ाई को पूरा करने का वादा कर रहे हैं।
उनका कहना है —
“मेरे पिता ने लोगों के अधिकारों और न्याय के लिए काम किया था। अब वही लड़ाई मैं जारी रखूंगा।”
गोपालगंज में सियासी संग्राम का नया चेहरा
गोपालगंज का यह चुनाव सिर्फ सीट जीतने की जंग नहीं, बल्कि एक परिवार की राजनीतिक विरासत, एक समुदाय की उम्मीद और एक पार्टी की रणनीतिक उपस्थिति का प्रतीक बन गया है।
अनस सलाम की उम्मीदवारी ने स्थानीय राजनीति में नई ऊर्जा भर दी है।
अब देखना होगा कि क्या यह युवा चेहरा अपने पिता की राजनीतिक विरासत को वोट में बदलने में सफल होता है या नहीं।