वैसे तो राष्ट्रीय राजनीति में गठबन्धन और मोर्चों की चर्चा अक्सर सुनने को मिलती है, लेकिन इस बार बिहार में एक अपेक्षित बदलाव देखने को मिल सकता है। रविवार को होने वाले संभावित तीसरे मोर्चे की औपचारिक घोषणाओं से पहले ही AIMIM पार्टी ने राज्य की 32 विधानसभा सीटों पर अपना दावेदारी पेश कर दी है। बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने शनिवार को किशनगंज स्थित पार्टी कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत करते हुए यह अहम जानकारी दी।
तीसरे मोर्चे की ओर बढ़ता कदम
अख्तरुल ईमान ने स्पष्ट किया कि पार्टी ने पहले महागठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन उन्हें इस गठबन्धन में स्थान नहीं दिया गया। इस वजह से AIMIM ने अन्य दलों के साथ साझेदारी की संभावनाएँ तलाशनी शुरू कर दी हैं। उन्होंने बताया कि कई पार्टियों से बातचीत जारी है और रविवार तक तीसरे मोर्चे की रूपरेखा तय कर ली जाएगी।
उनका कहना था, “हमने महागठबंधन में शामिल होने की पेशकश की थी, लेकिन हमें स्थान नहीं मिला। इसलिए अन्य दलों से वार्ता हो रही है। आगामी दो दिनों में हम सभी औपचारिकताएँ पूरी कर लेंगे।” इस तरह यह माना जाना लाजिमी है कि AIMIM तीसरे मोर्चे के रूप में अलग युग्म या गुट बना सकती है, संभवतः अन्य क्षेत्रीय एवं सामाजिक दलों के साथ।
32 विधानसभा सीटों पर दावेदारी — कौन-कौन से क्षेत्र?
प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि AIMIM ने कुल 32 विधानसभा क्षेत्रों का चयन किया है। ये सीटें विभिन्न जिलों से हैं, ताकि पार्टी का राजनीतिक दायरा व्यापक हो। उन्होंने उन सीटों का पूरा नाम लेते हुए कहा:
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किशनगंज जिले से — बहादुरगंज, कोचाधामन, किशनगंज, ठाकुरगंज
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पूर्णिया जिले से — बायसी, अमौर, कसबा
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कटिहार जिले से — बलरामपुर, प्राणपुर, मनिहारी, बरारी, कदवा
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अररिया जिले से — जोकीहाट, अररिया
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गया जिले से — शेरघाटी, बेला
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मोतिहारी जिले से — ढाका, नरकटिया
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नवादा–जमुई जिले से — शिकंदरा
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भागलपुर जिले से — नाथनगर, भागलपुर सदर
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सिवान जिले से — (एक सीट)
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दरभंगा जिले से — जाले, दरभंगा ग्रामीण
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समस्तीपुर जिले से — कल्याणपुर
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सीतामढ़ी जिले से — बाजपट्टी
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मधुबनी जिले से — बिस्फी
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वैशाली जिले से — महुआ
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गोपालगंज जिले से — (एक सीट)
उन्होंने यह भी कहा कि उम्मीदवारों का चयन लगभग पूरा हो चुका है और एक-दो दिनों में नामों की घोषणा कर दी जाएगी।
राजनीतिक रणनीति और चुनौतियाँ
AIMIM की इस ओर बढ़ी हुई रणनीति इस बात का संकेत है कि पार्टी बिहार में अपना सामाजिक-राजनीतिक दायरा बढ़ाने की इच्छा रखती है। पिछले चुनावों में सीमित प्रभाव होने के बावजूद, इस तरह से 32 सीटों पर दावेदारी देना महत्वाकांक्षी कदम है। हालांकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं होंगी:
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संघर्ष और संसाधन — इतने व्यापक स्तर पर चुनाव लडऩे के लिए पार्टी को मजबूत संगठन, धन एवं प्रचार माध्यम जुटाने होंगे।
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स्थानीय मैदान में पहचान — बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ अन्य बड़े दलों की पकड़ मजबूत है। स्थानीय मतदाताओं से विश्वसनीय जुड़े बगैर सफलता कठिन होगी।
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गठबंधन की भूमिका — यदि तीसरा मोर्चा बनने में विफलता होती है या सहयोग नहीं मिलता, तो वोट विभाजन ही होगा।
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वोट बैंक राजनीति — AIMIM पर अक्सर मुस्लिम-समुदाय पर अधिक निर्भर रहने का आरोप लगता रहा है। यदि वे किसी अन्य सामाजिक समूहों से मत समर्थन नहीं जुटा पाए, तो व्यापक सफलता मुश्किल होगी।
निष्कर्ष
अख्तरुल ईमान की पत्रकार वार्ता ने बिहार की राजनीतिक पटल पर AIMIM पार्टी की दावेदारी को ठोस रूप दिया है। तीसरे मोर्चे की घोषणा और उम्मीदवार सूची का सार्वजनिक होना अगले दो दिनों की महत्वपूर्ण घटनाएँ होंगी। यदि सफल गठबंधन बन पाया तो यह बिहार की राजनीति के समीकरण को हिलाकर रख सकती है। वहीं, यदि यह प्रयास विफल या अधूरा रह गया तो AIMIM को संघर्ष करना पड़ेगा, संभवतः अपने प्रदर्शन को सीमित रखने के लिए।