नामांकन से पहले बिरयानी को लेकर हुआ घमासान
किशनगंज जिले के बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र में एआईएमआईएम के प्रत्याशी तौसीफ आलम द्वारा नामांकन से पहले आयोजित दुआ समारोह के दौरान बिरयानी पर कब्जे को लेकर समर्थकों में जमकर मराहट-मरोड़ (संघर्ष) हुआ। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में देखा जा सकता है कि किस तरह लोग धक्का-मुक्की करते हुए बर्तनों और प्लेटों की ओर भागते नजर आ रहे हैं।
आदर्श आचार संहिता के प्रावधानों के अनुसार चुनावी अवकाश के दौरान ऐसे खाद्य वितरण को प्रलोभन माना जाता है। जनता से जुड़ी ऐसी घटनाएँ न केवल निर्वाचन प्रक्रिया की गरिमा को ठेस पहुँचाती हैं, बल्कि आम जनमानस में निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिन्ह उभरते हैं।
दुआ कार्यक्रम और बिरयानी वितरण का क्रम
तौसीफ आलम ने नामांकन से पूर्व अपने क्षेत्र में एक दुआ (फातेहा) आयोजन किया। उन्होंने इस कार्यक्रम के बाद समर्थकों व उपस्थित जनों के लिए बिरयानी बनाने की घोषणा की थी। इस सूचना से भारी संख्या में समर्थक तथा क्षेत्रवासी दुआ कार्यक्रम स्थल पर जमा हो गए थे।
समय आने पर बिरयानी वितरण आरंभ हुआ — लेकिन वितरण व्यवस्था एवं पंजीकरण का कोई क्रम नहीं रखा गया। इस बीच भीड़ ने खाना पाने के लिए एक-दूसरे को धक्का देना शुरू कर दिया। वीडियो में कुछ लोग प्लेट और बर्तन लेकर आगे छलांग लगाते, तो कई एक-दूसरे से टकराते दिखे।
कई लोगों ने बताया कि खाना बाँटने वालों ने ‘पहले आओ पहले पाओ’ की अपील की थी, पर भीड़ इतनी अधिक थी कि श्रम, व्यवस्था, मर्यादा सब ध्वस्त हो गई। ऐसे दृश्य चुनाव आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ाने जैसा है।
आचार संहिता उल्लंघन का आरोप और प्रशासन की निष्क्रियता
निर्वाचन आचार संहिता में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों या समर्थकों द्वारा भोजन, लाड़-प्यार या अन्य सुविधाओं के नाम पर वोट की प्रभावित करने की कोशिश करना निषिद्ध है। इस घटना को भी प्रलोभन की श्रेणी में माना जाना चाहिए।
लेकिन, समस्या यह है कि नामांकन के दौरान कार्यालय परिसर में कई समर्थक, जिनमें तौसीफ आलम के परिवार के सदस्य भी शामिल थे, अनियंत्रित रूप से प्रवेश कर गए। उस समय मजिस्ट्रेट या पुलिसकर्मियों ने न इस पर रोक लगाई, न किसी को बाहर भेजने की कोशिश की।
कुछ स्थानीय निवासियों का कहना है कि प्रशासन ने जानबूझ कर आँखें मूंद रखी थीं। और जब शिकायत करने वालों ने कहा, “यह आचार संहिता का उल्लंघन है,” तो किसी ने सुनने की जहमत नहीं की।
नामांकन का formal दौर और संभावित विवाद
उसके बाद तौसीफ आलम जिला मुख्यालय अनुमंडल कार्यालय पहुँचे और वहाँ अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। इस दौरान नियमों का उल्लंघन स्पष्ट दिखा — उम्मीदवार के साथ केवल चार व्यक्ति प्रवेश कर सकते थे, फिर भी दर्जनों समर्थक अनधिकृत रूप से कार्यालय परिसर में घुस गए और अंदर बैठे रहे।
चूंकि उस समय कोई रोकने वाला अधिकारी नहीं था, इसलिए प्रवेश-प्रक्रिया पूरी तरह ढीली छोड़ दी गई। इस तरह के उदार दृष्टिकोण से निर्वाचन प्रक्रिया पर छाया पड़ सकती है और उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं।
अगर इस तरह की घटनाएँ अनियंत्रित रूप से बढ़ती रहीं, तो जनता का विश्वास चुनाव प्रणाली से उठ सकता है। एक लोकतांत्रिक समाज में नियमों की पालना निहायत आवश्यक है — विशेषकर जब चुनावी प्रक्रिया पर सवाल हो।
निष्कर्ष और मांग
यह मामला न केवल एक स्थानीय विवाद है, बल्कि इसे नेताओं एवं समर्थकों द्वारा नियमों की अवहेलना और न्यायिक निरीक्षण की कमी का प्रतीक माना जाना चाहिए। चुनाव आयोग, जिला प्रशासन और पुलिस को मिलकर इस घटना की गहन जांच करनी चाहिए और दोषियों पर उचित कार्रवाई करनी चाहिए।
साथ ही, आमजन को यह एहसास होना चाहिए कि किसी भी प्रत्याशी का समर्थन करना वैध है, लेकिन समर्थन नियमों एवं मर्यादा के दायरे में होना चाहिए। लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है कि चुनाव निष्पक्ष एवं पारदर्शी हों — और ऐसी घटनाएँ उस मूल मान्यता को ठेस पहुँचाती हैं।
अगर प्रशासन इस घटना की विस्तृत जाँच नहीं करता, तो आने वाले दिनों में ऐसे प्रसंग बढ़ सकते हैं। इसलिए इस पर तत्काल उच्च न्यायालय, चुनाव प्राधिकरण या मानवाधिकार निकाय से हस्तक्षेप की मांग उठती है।