बिहार की राजनीति इन दिनों गरमाहट की चपेट में है। विधान सभा चुनाव की तैयारी जोरशोर से चल रही है, और प्रतिद्वंद्वी गठबंधनों के भीतर उठते सुर अक्सर सुर्खियों में छाए रहते हैं। ऐसे समय में मुख्यधारा के राजनेता मुकेश सहनी ने एक चुटपुट लेकिन रणनीतिक बयान देकर माहौल को और दिलचस्प बना दिया है। उन्होंने कहा —
“महागठबंधन थोड़ा अस्वस्थ हुआ है, लेकिन चिंता की बात नहीं, सभी डॉक्टर दिल्ली में हैं, इलाज दिल्ली में ही हो जाएगा और महागठबंधन पूरी तरह स्वस्थ होकर लौटेगा।”
यह बयान न केवल एक व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति है, बल्कि राजनीतिक संदेश की तरह भी पढ़ा जा रहा है — यह संकेत कि गठबंधन की बीमारी अस्थायी है और उसका ‘इलाज’ दिल्ली स्तर पर होगा।
महागठबंधन की ‘रोगापन्न’ स्थिति
राजनीतिक जोखिमों और मतभेदों को स्वास्थ्य रूपक में व्यक्त करना अद्वितीय दृष्टिकोण है। मुकेश सहनी ने जिस तरह सुदृढ़ नेता रोगी नेता के रिश्ते ढूँढे हैं, उससे स्पष्ट है कि वे यह कहना चाहते हैं — “अस्थिरता भले दिख रही हो, लेकिन यह बड़ी समस्या नहीं।”
दरअसल, बिहार में महागठबंधन के अंदर विभिन्न दलों में टिकट बंटवारे, नेतृत्व चयन और रणनीति को लेकर अनबन की ख़बरें लगातार आ रही हैं। कुछ पदाधिकारी नाखुश हैं, कुछ खास नेताओं को अनदेखा किया जाना बताया जा रहा है। इस बीच, सहनी ने यह भरोसा जताया है कि दिल्ली में बैठे शीर्ष नेतृत्व के पास समाधान है, और वह ऐसा इलाज देंगे जिससे गठबंधन फिर से सुदृढ़ हो जाएगा।
दिल्ली-नियंत्रण व रणनीतिक संदेश
सहनी की यह टिप्पणी निस्संदेह एक संकेत है — “दूरदृष्टि, नियंत्रण और समन्वय दिल्ली से ही होगा।” उन्होंने यह इशारा किया कि प्रदेशीय उलझनों के समाधान में राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका अहम है।
राजनीतिक गलियारों में इसे इस रूप में देखा जा रहा है कि सहनी यह कहना चाहते हैं —
“आप राज्य स्तर पर जितना चाहें हलचल मचाइए, लेकिन निर्णय दिल्ली से आएगा; दिल्ली के डॉक्टर — यानी शीर्ष नेतृत्व — सब देख लेंगे।”
कीमत यह है कि राज्य स्तर के नेताओं को अस्थायी रूप से कुछ नियंत्रण छोड़ा जा सकता है। लेकिन आख़िरी दवाई, आख़िरी रणनीति दिल्ली तय करेगी।
एनडीए बनाम महागठबंधन — फायदा कौन देखेगा?
वहीं दूसरी ओर, एनडीए गठबंधन राज्यसभा स्तर और विधानसभा स्तर पर पहले से ही मैदान जमे हुए है। भाजपा व जदयू नेताओं का कहना है कि महागठबंधन अंदरूनी कलह से व्यथित है, विरोधाभासों से जूझ रहा है। इस बयान का लाभ उठाने की कोशिश में वे इसे महागठबंधन की कमजोरी के रूप में प्रचारित कर सकते हैं।
एनडीए के ये नारे हैं —
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“विभाजन और विभ्रम है विपक्ष में,”
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“हम एकजुट हैं, विपक्ष विचारहीन।”
इनका उद्देश्य है — जनता को यह संदेश देना कि विपक्ष अपना ध्यान बंटा रहा है, जबकि एनडीए स्पष्टता और दिशा के साथ आगे बढ़ रहा है।
छद्म हास्य या रणनीति?
इस बयान को केवल हास्य कह देना अधूरा होगा। मुकेश सहनी ने हास्य के स्वर में एक राजनीतिक तीर छोड़ा है — “महागठबंधन की हालत मरीज जैसी है, लेकिन इलाज केंद्र दिल्ली है।” यह जनता को हल्के लहजे में आश्वस्त करने, गठबंधन के भीतर विश्वास बनाए रखने और विरोधियों को जवाब देने की कोशिश है।
उन्होंने यह संकेत भी दिया कि अस्वस्थता स्थायी नहीं होगी — महागठबंधन सही समय पर ‘स्वस्थ’ हो जाएगा और चुनावी युद्धभूमि में वापसी करेगा। इस बयान में विद्यमान आशा यह है कि विभाजन और विवादों के बाद भी गठबंधन अपनी छवि को पुनर्स्थापित करेगा।
भविष्य की राह और चुनौतियाँ
लेकिन सच तो यह है कि “इलाज दिल्ली में होगा” — यह केवल एक तर्क है। असली परीक्षा गठबंधन को जनता के सामने कैसे प्रस्तुत किया जाएगा।
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समन्वय और निर्णय प्रक्रिया: गठबंधन के अनेक दलों के बीच तालमेल कैसे बैठाया जाएगा?
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नायक चयन: किसे आगे रखा जाएगा — मुख्यमंत्री पद की दावेदारी किसकी होगी?
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संदेश और अभियान: जनता के सामने एक सुसंगत विचारधारा और नारा कैसे पेश किया जाए?
यदि महागठबंधन ने समय रहते स्वस्थ हो जाना हो, तो उसे न केवल “दिल्ली के डॉक्टरों” की दवाइयां देना होगी, बल्कि राजनीतिक जीविका — जनता के भरोसे — को भी लौटाना होगा।