बिहार की राजनीति में पिछले दो दशकों से नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी की जोड़ी ने जो राजनीतिक समीकरण बनाया था, वह केवल सत्ता-साझेदारी तक सीमित नहीं था। यह एक ऐसा राजनीतिक तालमेल था जिसने प्रशासनिक स्थिरता, विकास की धारणा और गठबंधन धर्म को एक नई परिभाषा दी। लेकिन 13 मई 2024 को सुशील कुमार मोदी के निधन के साथ बिहार की राजनीति में एक बड़ा रिक्त स्थान बन गया। यह केवल एक वरिष्ठ नेता का जाना नहीं था, बल्कि भाजपा और जनता दल यूनाइटेड के बीच एक अनुभवी सेतु की अनुपस्थिति थी, जिसका असर 2025 के विधानसभा चुनावों की तैयारियों में स्पष्ट रूप से महसूस किया गया।
सिवान से मंगल पांडेय की जीत का महत्व
हालिया विधानसभा चुनावों में सिवान से भाजपा के मंगल पांडेय ने प्रभावशाली जीत दर्ज की। उन्होंने 92,379 मतों के साथ जीत हासिल की, जिसमें करीब 9,370 मतों का अंतर था। यह जीत केवल एक चुनावी सफलता नहीं थी, बल्कि स्थानीय राजनीति में भाजपा की मजबूत वापसी का संकेत थी। सिवान जैसे क्षेत्र में, जहां पारंपरिक रूप से क्षेत्रीय दलों का प्रभाव रहा है, भाजपा की यह जीत राजनीतिक विश्लेषकों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय बन गई है।

मंगल पांडेय की जीत ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या नई पीढ़ी के नेता सुशील कुमार मोदी जैसे अनुभवी राजनेता की खाली हुई जगह को भर पाएंगे। यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चुनावी जीत और राज्य स्तरीय राजनीतिक प्रभाव दो अलग-अलग बातें हैं।
पद और प्रभाव में अंतर
सुशील कुमार मोदी केवल एक चुनावी नेता नहीं थे। वे पार्टी निर्माण, वित्तीय नीति निर्धारण और केंद्र-राज्य संवाद में एक स्थापित चेहरा थे। उनकी राजनीतिक कूटनीति, पार्टी प्रबंधन की क्षमता और विभिन्न राजनीतिक गुटों के बीच संबंध बनाने का कौशल उन्हें विशिष्ट बनाता था। उनकी उपस्थिति मात्र से ही भाजपा और जेडीयू के बीच संतुलन बना रहता था।
अब सवाल यह है कि क्या मंगल पांडेय जैसे स्थानीय स्तर पर सफल नेता उसी तरह की राजनीतिक समझ, नेटवर्किंग और अनुभव प्रदान कर पाएंगे जो सुशील मोदी वर्षों तक देते रहे। चुनावी जीत निश्चित रूप से एक नेता की लोकप्रियता का प्रमाण है, लेकिन राज्य स्तर पर नीति निर्माण, गठबंधन प्रबंधन और दीर्घकालिक राजनीतिक रणनीति बनाना एक अलग कौशल है।
गठबंधन धर्म और नई चुनौतियां
2025 के चुनाव परिणामों में एनडीए की बड़ी सफलता के साथ भाजपा और जेडीयू दोनों की स्थिति मजबूत दिखती है। लेकिन इस सफलता के बीच यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि गठबंधन के भीतर निर्णायक भूमिका किसकी होगी। क्या यह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की होगी या नई पीढ़ी के स्थानीय प्रभावशाली नेताओं की?
सुशील कुमार मोदी की अनुपस्थिति में गठबंधन के भीतर संतुलन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। उनकी उपस्थिति नीतीश कुमार और भाजपा नेतृत्व के बीच एक सेतु का काम करती थी। अब यह जिम्मेदारी किसके कंधों पर आएगी, यह देखना बाकी है।
पुरानी व्यवस्था का पुनरागमन या नया मॉडल
राजनीतिक चर्चाओं में अक्सर यह बात सुनने को मिलती है कि पुरानी व्यवस्था में फिर से चार चांद लग सकते हैं। लेकिन इसका वास्तविक अर्थ क्या है? क्या यह केवल प्रशासनिक शैली की वापसी है, या सत्ता संरचना, नौकरशाही समन्वय और पार्टी राजनीति में पुराने तरीकों का पुनरागमन?
अगर उद्देश्य केवल चुनावी नीतियों और विकास योजनाओं की निरंतरता है, तो यह सकारात्मक संकेत हो सकता है। लेकिन अगर इसका मतलब केंद्रीकृत और सीमित शक्ति नेटवर्क की वापसी है, तो जनता और विपक्ष के सवाल उठना स्वाभाविक है।
जनता का भरोसा और नेतृत्व का संकट
सुशील कुमार मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी ने वर्षों में जो विश्वास और प्रशासनिक ब्रांड बनाया, उसे बदलना या उसे बनाए रखना आसान नहीं है। मंगल पांडेय जैसे स्थानीय नायकों के पास निश्चित रूप से जनाधार है, लेकिन क्या वे उसी ब्रांड वैल्यू को राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर फिर से स्थापित कर पाएंगे?
यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि राजनीतिक विश्वास केवल चुनावी वादों से नहीं बनता। यह दीर्घकालिक प्रदर्शन, पारदर्शिता और जवाबदेही से बनता है।
आगे का रास्ता
बिहार में वर्तमान राजनीतिक माहौल भाजपा-जेडीयू गठबंधन के पक्ष में दिखता है। मंगल पांडेय की जीत और एनडीए की मजबूती इसका प्रमाण है। लेकिन सुशील कुमार मोदी जैसे लंबी पारी खेलने वाले रणनीतिकारों की अनुपस्थिति में यह मानना कि पुरानी व्यवस्था बिना किसी बदलाव के अपने पुराने रूप में लौट आएगी, एक बड़ा अनुमान होगा।
अब मुख्य सवाल यह है कि क्या बिहार में नया-पुराना संतुलन केवल चेहरे बदलने तक सीमित रहेगा, या सत्ता प्रक्रिया, पार्टी प्रबंधन और जवाबदेही के स्तर पर वास्तव में कोई नई दिशा अपनाई जाएगी। इन प्रश्नों का उत्तर अगले कुछ महीनों में गठबंधन के भीतर नियुक्तियों, विभागीय जिम्मेदारियों और नीतिगत प्राथमिकताओं से स्पष्ट होगा। बिहार की जनता और राजनीतिक विश्लेषक दोनों ही इन संकेतों की प्रतीक्षा में हैं।