बिहार चुनाव परिणामों ने बदली सत्ता की गणित: भाजपा बनी सबसे बड़ी शक्ति, नीतीश कुमार के लिए चुनौतीपूर्ण समीकरण

Bihar Election Result 2025
Bihar Election Results 2025: बिहार में सत्ता के नए समीकरण, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी (File Photo)
बिहार चुनाव के परिणामों ने राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह बदल दिया है। भाजपा 91 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि जेडीयू 79 पर रही। भाजपा छोटे दलों के सहयोग से बहुमत पा सकती है, वहीं नीतीश कुमार भी विपक्षी दलों के साथ सरकार बनाने की स्थिति में हैं। सत्ता का रास्ता अब खुला और जटिल दोनों है।
नवम्बर 14, 2025

बिहार चुनाव परिणामों ने क्यों बदली राज्य की राजनीतिक दिशा

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने पूरे राजनीतिक परिदृश्य को एक झटके में बदल दिया है। जिस प्रकार सभी एग्जिट पोल्स ने एनडीए को प्रचंड बहुमत देने का अनुमान लगाया था, वह काफी हद तक सच भी साबित हुआ। मगर इन नतीजों में सबसे महत्वपूर्ण पहलू भाजपा का असाधारण प्रदर्शन है, जिसने राज्य की सत्ता के समीकरण को पूरी तरह नया रंग दे दिया है।

भाजपा ने कुल 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 91 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। यह आकड़ा न केवल राजनीतिक प्रभाव का संकेत है, बल्कि यह भी दिखाता है कि बिहार की जनता ने इस बार किस राजनीतिक स्वर को प्राथमिकता दी है। दूसरी ओर, जेडीयू ने भी 79 सीटें हासिल कर मजबूत उपस्थिति दर्ज की, परंतु भाजपा ने उससे 12 सीट अधिक जीतकर नेतृत्व की नई परिभाषा गढ़ दी है।

भाजपा के लिए सत्ता के नए रास्ते

भाजपा के 91 विधायकों का आंकड़ा स्वयं ही काफी प्रभावशाली है, परंतु चुनावी गणित इसे सत्ता तक पहुंचाने वाले कई अन्य रास्ते भी सुझाता है। चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने 21 सीटें जीती हैं। यदि भाजपा और लोजपा-आर साथ आते हैं, तो कुल संख्या 112 तक पहुंच जाती है।

इसके बाद जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) की 5 सीटें और राष्ट्रीय लोकमोर्चा की 4 सीटें जोड़ दी जाएं, तो गठबंधन का आंकड़ा 121 तक पहुंच जाता है। बहुमत का आंकड़ा 122 है, और बसपा का एक प्रत्याशी भी जीत की कगार पर है। बसपा यदि समर्थन देती है तो बहुमत स्वतः पूरा हो जाता है।
इसके अतिरिक्त, सदन में अनुपस्थितियों के आधार पर भी बहुमत का रास्ता बन सकता है, जो सदैव एक राजनीतिक संभावना के रूप में मौजूद रहता है।

हालांकि यह विकल्प मौजूद अवश्य है, परंतु भाजपा शायद ही नीतीश कुमार को दरकिनार कर सत्ता में आने का निर्णय जल्द लेगी। नीतीश अब भी बिहार की राजनीति में एक ‘फैक्टर’ हैं, और उनके साथ रहते हुए सत्ता का समीकरण अधिक स्थिर और स्वीकार्य माना जाता है।

नीतीश कुमार के लिए संभावनाएं और चुनौतियां

नीतीश कुमार के पास भी अपनी एक गणित है, जो उन्हें सत्ता की दूसरी राह दिखाती है। यदि जेडीयू की 79 सीटों में आरजेडी की 28, कांग्रेस की 5, ओवैसी की एआईएमआईएम की 5 और अन्य 9 सीटों को जोड़ दिया जाए, तो वह भी बिना भाजपा के सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं। यह स्थिति बेहद रोचक, उलझी हुई और राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील भी है।

मगर इस समीकरण में एक बड़ी चुनौती है—विचारधारा का अंतर। कुछ सहयोगी अतिवादी माने जाते हैं, जैसे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी, जो नीतीश कुमार की उदार राजनीतिक शैली से मेल नहीं खाती। यही अंतर इस गठबंधन को अस्थिर बना सकता है।

नतीजे क्यों बने एक ‘गेम चेंजर’

इन चुनाव परिणामों ने बिहार की राजनीति में कई नए प्रश्न खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या भाजपा अपने दम पर या छोटे दलों के साथ मिलकर सत्ता संभालने की रणनीति बनाएगी, या वह पारंपरिक सहयोगी नीतीश कुमार के साथ ही बनी रहेगी?

नीतीश कुमार का भविष्य भी इसी समीकरण पर निर्भर करता है। यदि वह भाजपा से अलग होकर नई सरकार बनाते हैं, तो उन्हें कई वैचारिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। वहीं भाजपा के बिना जेडीयू की सरकार बनना भी एक अत्यंत कठिन, लेकिन असंभव नहीं होने वाला विकल्प है।

बिहार का यह चुनाव परिणाम राजनीतिक दृष्टि से जितना चकित करने वाला है, उतना ही अप्रत्याशित और खुला भी है। भाजपा का प्रदर्शन ऐतिहासिक रहा है और जेडीयू की मजबूती भी स्पष्ट है। अब गेंद राजनीतिक दलों के पाले में है कि वे किस राह पर आगे बढ़कर बिहार की सत्ता को नया चेहरा देते हैं।

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