बिहार चुनाव 2025: नीतीश कुमार और मोदी रैली विवाद पर भाजपा की सफाई
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, राजनीतिक हलचलें तेज़ होती जा रही हैं। इस बार चर्चा का सबसे बड़ा विषय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में अनुपस्थिति है। विपक्ष ने इसे एनडीए में दरार का संकेत बताया है, जबकि भाजपा ने इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा बताया है।
धर्मेंद्र प्रधान ने दी सफाई, बताया यह है एनडीए की योजना
नई दिल्ली से भाजपा के वरिष्ठ नेता और बिहार समन्वयक धर्मेंद्र प्रधान ने विपक्ष के आरोपों पर जवाब दिया। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री मोदी के बीच कोई मतभेद नहीं है, बल्कि यह एक सोची-समझी रणनीति है।
प्रधान ने कहा, “चुनावों से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निमंत्रण पर कई सरकारी कार्यक्रमों में हिस्सा लिया था। समस्तीपुर में कर्पूरी ठाकुर के गांव से हमने संयुक्त रूप से प्रचार अभियान की शुरुआत की थी। उसके बाद हमने तय किया कि हर नेता अपनी-अपनी सीटों पर जाकर प्रचार करेगा।”
प्रधान के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि भाजपा और जदयू ने संयुक्त मंच से शुरुआत कर अब अलग-अलग जनसभाओं के माध्यम से अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति बनाई है।
विपक्ष ने लगाया तंज, कहा – भाजपा नहीं बनाएगी नीतीश को मुख्यमंत्री
कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने नीतीश कुमार की अनुपस्थिति को लेकर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, “यह साफ है कि भाजपा अब नीतीश को दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहती। उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है। एनडीए के घोषणापत्र जारी होने के दौरान भी उन्हें बोलने नहीं दिया गया था।”
विपक्ष का मानना है कि भाजपा, लोकसभा चुनाव के बाद से बिहार की राजनीति में अपनी स्थिति और मजबूत करना चाहती है। वहीं जदयू अपने परंपरागत वोट बैंक को बनाए रखने की कोशिश में है।
दूसरे चरण में कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर
बिहार चुनाव के दूसरे चरण में कुल 1,302 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें 136 महिलाएं शामिल हैं। इस चरण में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 12 मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। इनमें जदयू के विजेंद्र यादव (सुपौल), लेसी सिंह (धमदाहा), जयंत कुशवाहा (अमरपुर) और सुमित सिंह (चकाई) जैसे मंत्री शामिल हैं।
भाजपा की ओर से प्रेम कुमार (गया), रेनू देवी (बेतिया), विजय कुमार मंडल (सिकटी), नीरज बबलू (छातापुर) और कृष्णनंदन पासवान (हरसिद्धि) जैसे वरिष्ठ नेता मैदान में हैं।
उत्तर बिहार में एनडीए के लिए चुनौतीपूर्ण मुकाबला
इस चरण में उत्तर बिहार के जिलों — पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, शिवहर और सीतामढ़ी — में एनडीए को अपनी पकड़ बनाए रखने की बड़ी चुनौती होगी। इन क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से जदयू और भाजपा का प्रभाव रहा है, लेकिन महागठबंधन इन इलाकों में आक्रामक प्रचार कर रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार और मोदी की रैलियों में दिख रही दूरी का विपक्ष भुनाने की कोशिश करेगा, लेकिन एनडीए इसे “रणनीतिक प्रचार” बताकर नुकसान की भरपाई करना चाहेगा।
राजनीतिक समीकरणों में बढ़ी दिलचस्पी
नीतीश कुमार की राजनीतिक शैली हमेशा से सधी और योजनाबद्ध रही है। वे जानते हैं कि बिहार में जातीय समीकरण और क्षेत्रीय संतुलन चुनावी परिणामों में अहम भूमिका निभाते हैं। भाजपा के साथ उनकी साझेदारी भले ही राजनीतिक रूप से उतार-चढ़ाव भरी रही हो, लेकिन अभी दोनों दलों के शीर्ष नेता यह संदेश देना चाहते हैं कि गठबंधन में कोई दरार नहीं है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों से दूर रहकर अपने स्वतंत्र राजनीतिक कद को बनाए रखना चाहते हैं, ताकि जदयू का वोट बैंक भाजपा के साए में कमजोर न पड़े।
जनता का मूड और अंतिम संदेश
बिहार की जनता फिलहाल यह देख रही है कि दोनों दलों के बीच यह दूरी वास्तविक है या केवल रणनीतिक। एनडीए का दावा है कि सबकुछ योजनाबद्ध तरीके से चल रहा है, जबकि विपक्ष इसे मतदाताओं में भ्रम फैलाने का प्रयास बता रहा है।
जैसे-जैसे मतदान की तारीखें करीब आएंगी, यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार और मोदी एक साथ मंच साझा करते हैं या नहीं। यह तस्वीर बिहार के अगले राजनीतिक अध्याय का संकेत देगी।