बिहार की राजनीतिक जमीन इन दिनों उबल रही है। 2025 के विधान सभा चुनावों से पहले एनडीए में सीटों का बंटवारा अंतिम रूप ले चुका है और उसके बाद तालमेल और नाराज़गी की लकीर स्पष्ट होने लगी है। इस बीच हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने सार्वजनिक रूप से एक तीखा बयान दिया है कि “6 सीटें दी गईं, जो सही नहीं है… इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है।”
यह बयान न केवल हम दल की नाराज़गी को दर्शाता है, बल्कि आगामी चुनावी रणनीति एवं गठबंधन के भीतर आगामी हलचल की दिशा को भी इंगित करता है।
राज्य स्तर की नाराज़गी या रणनीति?
मांझी की टिप्पणी इस ओर इशारा करती है कि छोटे सहयोगी दल अपनी राजनीतिक हिस्सेदारी को लेकर असंतुष्ट हैं। वे यह संकेत देना चाहते हैं कि यदि उनके साथ निष्पक्ष व्यवहार न हुआ, तो उनका गठबंधन पर असर हो सकता है। यह केवल विरोधाभाष नहीं, बल्कि एक तरह से राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति भी हो सकती है।
लेकिन ध्यान देना चाहिए कि यह विरोध तुरंत गठबंधन तोड़ने का संकेत नहीं है; ये बयान अधिकतर संकेतात्मक चेतावनी हैं, ताकि आगे की बैठकों में अधिक सीटें दिलाने का दायरा बढ़ सके।
सीट बंटवारे का विवरण
एनडीए ने बिहार में सीट बंटवारे का फलक तय किया है: भाजपा और जद (यू) को 101–101 सीटें दी गई हैं। लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें मिली हैं, जबकि राष्ट्रीय लोक समता मोर्चा और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) को 6–6 सीटें दी गई हैं।
मांझी ने पहले 15 सीटों की मांग की थी, परन्तु उन्हें अपेक्षित संख्या नहीं मिली। इससे उनका असंतोष स्वाभाविक है।
हस्तक्षेप के संकेत — ध्यानाकर्षक रणनीति
मांझी का बयान यह संकेत देता है कि यदि यह विभाजन यथावत रहा, तो “खामियाज़ा” गठबंधन को भुगतना पड़ेगा। यह बयान साधारण नाराज़गी से ऊपर, राजनीतिक दबाव का हथियार बनता है।
वह इस दबाव को और मजबूत कर रहे हैं कि जब अंतिम निर्णय लिया जाए, उनके दल की हिस्सेदारी कम न हो। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा है कि हम पार्टी की पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
भाजपा-जद (यू) के लिए चुनौतियाँ
यदि हम पार्टी गठबंधन से असमंजस्य दिखाए, तो भाजपा और जद (यू) को यह संदेश जाना चाहिए कि छोटे घटक दलों की भावनाओं को अनदेखा करना चुनावी रणनीति में भारी जोखिम हो सकता है। ऐसी स्थिति में चुनाव प्रचार के दौरान गठबंधन की छवि प्रभावित होगी।
इसका अतिरिक्त, विपक्ष इस फूट का फायदा उठाने में संकोच नहीं करेगा। वे इसे गठबंधन की कमजोर कड़ी के रूप में पेश करेंगे और यह प्रश्न उठाएंगे कि निर्बल घटक दल कितनी मजबूती से अपनी आवाज उठा सकते हैं।
भविष्य की दिशा — क्या होगा आगे?
गठबंधन को स्थिर बनाना है तो मध्य-निर्णय की बैठक और संवाद अत्यंत आवश्यक हैं। हमें यह देखना होगा कि मांझी आगे कितनी कड़ी रुख अपनाते हैं — केवल बयानबाजी या वास्तविक कदम। यदि वे गठबंधन के फैसलों के विरुद्ध जाने का निर्णय लें, तो वह एक बड़ी सियासी हलचल हो सकती है।
उधर, भाजपा और जद (यू) को भी सोचना होगा कि कैसे सभी घटक दलों की मांगों का संतुलन बनाए रखें। यदि किसी दल को कष्ट पहुँचे, तो वह स्वयं किसी अन्य विकल्प की ओर मुड़ सकता है, जिससे गठबंधन की रणनीति प्रभावित हो सकती है।