पटना एयरपोर्ट पर दिखी लालू परिवार की सियासी दरार
बिहार की सियासत इन दिनों विधानसभा चुनाव की सरगर्मी में डूबी हुई है। एक ओर महागठबंधन अपनी सरकार बनाने का दावा कर रहा है, वहीं दूसरी ओर एनडीए भी सत्ता वापसी के लिए पूरा जोर लगा रहा है। इसी चुनावी माहौल में बुधवार को पटना एयरपोर्ट पर एक ऐसा नज़ारा देखने को मिला जिसने राजनीतिक हलचल और बढ़ा दी — लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे तेज प्रताप और तेजस्वी यादव आमने-सामने आए, लेकिन दोनों के बीच एक शब्द का भी आदान-प्रदान नहीं हुआ।
मौन मुलाकात ने बढ़ाई अटकलें
सुबह का वक्त था जब तेज प्रताप यादव अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल के प्रचार अभियान के लिए हेलीकॉप्टर से रवाना होने एयरपोर्ट पहुंचे। रवाना होने से पहले वे एयरपोर्ट के ड्यूटी-फ्री ज़ोन में एक दुकान पर काली बंडी तलाश रहे थे। इसी बीच, उनके छोटे भाई और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव भी वहां पहुंचे।
दोनों कुछ मीटर की दूरी पर थे, पर किसी ने न एक-दूसरे की तरफ देखा, न कोई शब्द बोला। तेजस्वी के साथ वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी मौजूद थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, तेजस्वी ने एक मीडिया कर्मी की ओर इशारा करते हुए कहा — “क्या भइया शॉपिंग करा रहे हैं?” — लेकिन तेज प्रताप मौन ही रहे। यह दृश्य वहां मौजूद हर व्यक्ति के लिए राजनीतिक दूरी का संकेत था।
पुरानी खटास ने लिया नया मोड़
तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच खींचतान नई नहीं है। महुआ विधानसभा सीट से तेज प्रताप के खिलाफ तेजस्वी के प्रचार अभियान में उतरने के बाद से दोनों भाइयों के रिश्तों में खटास आ गई थी। परिवार और पार्टी ने कई बार मेलजोल कराने की कोशिश की, लेकिन नतीजा न निकला।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह केवल संयोग नहीं, बल्कि “संगठित सियासी संदेश” था—कि लालू परिवार की राजनीति अब दो राहों पर बंट चुकी है।
राजद खेमे में चर्चा और सियासी विश्लेषण
राजद के अंदरूनी सूत्र भले ही इसे “सिर्फ संयोग” बता रहे हों, पर कई नेताओं ने माना कि परिवार के भीतर मतभेद अब सार्वजनिक हो गए हैं। महागठबंधन के समर्थक मानते हैं कि तेजस्वी का नेतृत्व मज़बूत हो चुका है, जबकि तेज प्रताप अपनी नई पार्टी के साथ एक अलग राह पर निकल चुके हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि इस “मौन मुलाकात” ने जनता को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या लालू परिवार की राजनीतिक एकता टूट चुकी है। खास बात यह भी है कि लालू यादव ने अब तक इस पूरे घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
चुनावी मौसम में अलग राहों पर भाई
जब तेजस्वी यादव राज्यभर में महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रमुख चेहरे के रूप में रैलियां कर रहे हैं, वहीं तेज प्रताप अपनी सीमित जनसभा और अलग एजेंडे के साथ जनशक्ति जनता दल को मजबूत करने में जुटे हैं।
तेजस्वी के करीबी नेताओं का कहना है कि “भाई की राजनीतिक यात्रा का सम्मान है, लेकिन जनता का झुकाव महागठबंधन की ओर है।” वहीं तेज प्रताप समर्थकों का कहना है कि “तेजस्वी अब परिवार की परंपरा से दूर जा चुके हैं, जबकि तेज प्रताप असली लालूवाद के प्रतिनिधि हैं।”
जनता की प्रतिक्रिया
पटना एयरपोर्ट की यह घटना सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बन गई। कई लोगों ने इसे “बिहार की राजनीति का प्रतीक दृश्य” बताया। ट्विटर और फेसबुक पर “भाई बनाम भाई” के टैग से ट्रेंड चला। लोग इस बात पर बहस कर रहे हैं कि क्या बिहार की राजनीति अब परिवारवाद की सीमाओं से बाहर निकल रही है या यह केवल एक और सियासी रणनीति है।
भविष्य की राह
लालू परिवार की यह खामोशी बहुत कुछ कहती है। चुनावी नतीजों से पहले ही परिवार के भीतर की यह दूरी बिहार की राजनीति में नए समीकरण बना सकती है। अगर महागठबंधन को सफलता मिलती है, तो तेजस्वी का कद और बढ़ेगा, जबकि तेज प्रताप की स्थिति सीमित रह सकती है।
परंतु अगर नतीजे उम्मीद से अलग आते हैं, तो तेज प्रताप की लाइन को “विकल्प” के रूप में देखा जा सकता है।
पटना एयरपोर्ट की यह घटना केवल एक संयोग नहीं थी, बल्कि बिहार की राजनीति के भीतर चल रही गहरी खामोशी का प्रतीक थी। लालू परिवार के दो वारिस आज अलग-अलग रास्तों पर हैं, और उनकी यह दूरी न सिर्फ परिवार बल्कि राज्य की सियासत के भविष्य को भी प्रभावित कर सकती है।