राजद की राजनीति और लालू यादव का पतन
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राजद की भारी हार के बाद राजनीतिक गलियारों में एक बहस उभर गई है। राजद के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने स्पष्ट कहा है कि यह हार तेजस्वी यादव की नहीं, बल्कि लालू यादव की राजनीति की हार है। उनका कहना है कि तेजस्वी यादव का व्यक्तित्व इतना प्रबल नहीं है कि वह इस हार के लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकें।
शिवानंद तिवारी ने कहा कि लालू यादव और उनके परिवार के लिए राजनीति केवल एक व्यापार बन चुकी है। उनका निजी अहंकार और परिवारवाद पार्टी की नीतियों और चुनाव परिणामों पर हावी रहा। 2025 के विधानसभा चुनाव में जनता ने स्पष्ट संदेश दिया कि लालू राजनीति का समापन हो चुका है।
शिवानंद तिवारी के अनुसार लालू का मुख्यमंत्री बनने का इतिहास
कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद लालू यादव नेता विपक्ष बने थे। 1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी। इस परिस्थिति में जनता दल, वामपंथी पार्टियों और भाजपा के सहयोग से गैर-कांग्रेसी सरकार बन सकती थी।
शिवानंद तिवारी ने बताया कि केंद्रीय नेतृत्व खासकर वी. पी. सिंह चाहते थे कि रामसुंदर दास मुख्यमंत्री बनें। इसके लिए दिल्ली से आए पर्यवेक्षकों ने प्रयास किया कि सर्वसम्मति से रामसुंदर दास का चयन हो, लेकिन नीतीश कुमार के सहयोग और विधायकों के बीच चुनाव प्रक्रिया के चलते लालू यादव मुख्यमंत्री बने।
लालू यादव ने अवसर का सही उपयोग नहीं किया
मंडल आयोग लागू होने के समय लालू यादव को राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। उस समय बिहार में आडवाणी की रामरथ यात्रा को रोकना और उन्हें गिरफ्तार करना लालू यादव को राष्ट्रीय हीरो बना गया।
लेकिन शिवानंद तिवारी के अनुसार लालू यादव ने उस प्रतिष्ठा और ताकत का सही उपयोग नहीं किया। उन्होंने सामाजिक न्याय के व्यापक कार्यक्रम नहीं चलाए और केवल परिवार और करीबी जातियों पर राजनीति केंद्रित की।
नीतीश कुमार का राजनीतिक दृष्टिकोण और लालू से भिन्नता
शिवानंद तिवारी ने कहा कि नीतीश कुमार ने जीवन में जोखिम लेने से नहीं हिचकिचाया और उन्होंने सामाजिक न्याय आंदोलन को छोटी और कमजोर जातियों तक पहुंचाया। उनके कार्यक्रमों ने बिहार समाज में वास्तविक बदलाव लाया।
इसके विपरीत, लालू यादव ने अपनी सत्ता और प्रभाव को परिवार तक सीमित रखा। दोनों नेताओं की नीतियों और विधान परिषद तथा राज्यसभा के सदस्यों के चयन में स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है।
भविष्य की राजनीति और राजद का रास्ता
शिवानंद तिवारी का मत है कि राजद को पुनर्जीवन के लिए अपनी रणनीति बदलनी होगी। केवल परिवारवाद पर आधारित राजनीति अब काम नहीं कर सकती। पार्टी को जनता की अपेक्षाओं और सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए नेतृत्व विकसित करना होगा।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2025 के चुनाव परिणाम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार की राजनीति में परिवर्तन अपरिहार्य है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व को मजबूत करने के लिए पार्टी को युवा और निष्ठावान नेताओं को अवसर देना होगा।
शिवानंद तिवारी की टिप्पणियों के अनुसार, लालू यादव का राजनीतिक पतन निश्चित है। यह हार केवल चुनाव का परिणाम नहीं, बल्कि बिहार में दशकों पुरानी राजनीति की समाप्ति का प्रतीक है। तेजस्वी यादव या किसी अन्य युवा नेता को पार्टी का नेतृत्व सम्भालने के लिए नई सोच और रणनीति अपनानी होगी।