नीतीश कुमार फिर साधेंगे ‘राजपूत समीकरण’
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के राजनीतिक रणक्षेत्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर अपने पुराने सामाजिक आधार—राजपूत समाज—पर भरोसा जताने की तैयारी में हैं। बिहार की राजनीति में राजपूत समुदाय का प्रभाव हर दौर में निर्णायक रहा है, विशेषकर सारण प्रमंडल के तीन प्रमुख जिलों—छपरा, सिवान और गोपालगंज—में।
इन इलाकों में राजपूत मतदाता हर चुनाव में सत्ता के पलड़े को झुकाने की क्षमता रखते हैं, और यही कारण है कि जदयू अब अपने पुराने वोटबैंक को फिर से साधने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है।
सारण प्रमंडल में जदयू की नई रणनीति
जदयू के शीर्ष रणनीतिकारों ने सारण प्रमंडल को इस बार पार्टी के लिए “टारगेट जोन” घोषित किया है।
पार्टी का मानना है कि यदि इन तीन जिलों में राजपूत मतदाताओं का समर्थन सुनिश्चित हो गया, तो न केवल सारण बल्कि संपूर्ण उत्तर बिहार की चुनावी तस्वीर बदल सकती है।
छपरा: माझी और बनियापुर पर निगाहें टिकीं
छपरा जिले की बनियापुर और माझी विधानसभा सीटों पर पार्टी का फोकस खास है।
माझी सीट पर चर्चा तेज है कि पूर्व मंत्री गौतम सिंह और पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह को मैदान में उतारा जा सकता है।
वहीं भाजपा से राणा प्रताप सिंह भी यहां एक मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं।
बनियापुर में भी जदयू एक प्रभावशाली राजपूत उम्मीदवार को उतारने की तैयारी में है ताकि पिछले चुनावों में खोया जनाधार दोबारा हासिल किया जा सके।
सिवान: रघुनाथपुर में दिलचस्प समीकरण
सिवान जिले की रघुनाथपुर सीट पर समीकरण बेहद दिलचस्प हो गए हैं।
यहां जदयू सांसद कविता सिंह और उनके पति अजय कुमार सिंह की जगह अब समाजसेवी विकास कुमार सिंह उर्फ जिशु सिंह का नाम चर्चा में है।
जदयू का मानना है कि क्षेत्र में एक नए और स्वच्छ छवि वाले राजपूत चेहरे के सहारे जनता का भरोसा दोबारा जीता जा सकता है।
रघुनाथपुर में राजपूत मतदाताओं की संख्या इतनी निर्णायक है कि उनके रुझान से पूरे जिले का चुनावी गणित प्रभावित हो सकता है।
गोपालगंज: बैकुंठपुर में प्रतिष्ठा की लड़ाई
गोपालगंज की बैकुंठपुर सीट इस बार जदयू और भाजपा के बीच प्रतिष्ठा की जंग बनने जा रही है।
यहां भाजपा के मिथिलेश तिवारी और जदयू के मनजीत सिंह दोनों ही टिकट के प्रबल दावेदार हैं।
बीते चुनाव में भाजपा ने इस सीट पर बढ़त बनाई थी, इसलिए इस बार जदयू अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।
नीतीश कुमार इस सीट को व्यक्तिगत रूप से मॉनिटर कर रहे हैं क्योंकि यह इलाका लंबे समय से जदयू के पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र के रूप में जाना जाता रहा है।
राजपूत समाज को लेकर नीतीश की सोच
नीतीश कुमार की राजनीति हमेशा सामाजिक संतुलन की कसौटी पर टिकी रही है।
उन्होंने हर दौर में दलितों, पिछड़ों और अगड़ों के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है।
लेकिन इस बार उनका फोकस विशेष रूप से राजपूत समाज पर दिख रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजपूत वोट बैंक पर नीतीश कुमार की यह रणनीति जदयू के लिए “रीबिल्ड फेज़” साबित हो सकती है, खासकर तब जब पार्टी अपने पुराने जनाधार को फिर से खड़ा करने की कोशिश में है।
राजनीतिक निहितार्थ और संभावनाएं
अगर जदयू बनियापुर, माझी, रघुनाथपुर और बैकुंठपुर जैसी सीटों पर राजपूत उम्मीदवार उतारती है, तो यह केवल टिकट वितरण नहीं बल्कि चुनावी रणनीति का केंद्रीय बिंदु होगा।
इससे यह संदेश जाएगा कि नीतीश कुमार अब भी जातीय संतुलन की बारीक समझ रखते हैं और सत्ता की राह जातीय समीकरणों से ही निकलती है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि यह “राजपूत कार्ड” न सिर्फ जदयू की चुनावी रणनीति को परिभाषित करेगा, बल्कि बिहार के सामाजिक समीकरण को भी नया आकार देगा।
निष्कर्ष
बिहार की राजनीति में हर चुनाव नया प्रयोग लाता है।
इस बार नीतीश कुमार का राजपूत समीकरण उसी कड़ी का हिस्सा है—जहाँ परंपरा, समाज और रणनीति तीनों का संगम दिखता है।
अगर यह दांव सफल होता है, तो जदयू एक बार फिर सारण प्रमंडल में अपनी पुरानी राजनीतिक जड़ें मजबूत कर सकती है।
और यही नीतीश कुमार की राजनीति की असली पहचान है — संतुलन, रणनीति और सामाजिक जोड़।