सिवान की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज़ हो गई है। एनडीए के वरिष्ठ और अनुभवी नेता ओमप्रकाश यादव ने हाल ही में अपने मतभेदों को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का नया विषय उत्पन्न कर दिया है। सियासी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि एनडीए समय रहते इस समीकरण को संभालने में असफल होता है, तो इसके परिणाम चुनावी मतगणना में गंभीर रूप से दिखाई दे सकते हैं।
ओमप्रकाश यादव का सियासी हाशिया
पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता ओमप्रकाश यादव, जो दशकों से सिवान की राजनीति में सक्रिय हैं, खुद को वर्तमान समय में हाशिये पर महसूस कर रहे हैं। उनके करीबी सूत्रों के अनुसार, यादव का यह कहना है कि या तो उन्हें या उनके पुत्र को दरौंधा या सिवान विधानसभा से टिकट दिया जाना चाहिए। अगर यह नहीं हुआ, तो वे मौन साध सकते हैं और इससे एनडीए के लिए मतदान पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
सियासी विश्लेषकों का मानना है कि सिवान और आसपास के क्षेत्रों में यादव मतदाताओं की निर्णायक भूमिका है। यदि कोई पुराने और प्रभावशाली नेता जैसे ओमप्रकाश यादव को नजरअंदाज करता है, तो यह “राजनीतिक भूल” एनडीए को भारी पड़ सकती है।
एनडीए के नए प्रयोग और संभावित खतरे
हालांकि एनडीए के रणनीतिकार इस बार “नए प्रयोगों” के मूड में हैं, लेकिन यह प्रयोग पुराने नेताओं तक भी अपनी आंच पहुंचा रहा है। नई उम्मीदवार सूची में बदलाव और युवा चेहरों को मौका देने की रणनीति ओमप्रकाश यादव जैसे पुराने नेताओं के गुस्से और नाराज़गी को जन्म दे सकती है।
राजनीतिक जानकार कहते हैं,
“सिवान की सियासत में यादव समीकरण को नजरअंदाज करना वैसा ही है जैसे चुनावी नाव को बिना पतवार के नदी में छोड़ देना।”
यादव समुदाय का मतदान सिवान जिले में हमेशा निर्णायक रहा है। अगर ओमप्रकाश यादव का ‘मौन’ या विरोध एनडीए के लिए नकारात्मक परिणाम लेकर आता है, तो यह पार्टी की स्थिति को कमजोर कर सकता है।
सियासत में संभावित उलझनें
ओमप्रकाश यादव का असंतोष केवल व्यक्तिगत नहीं है। यह सिवान जिले की राजनीति में यादव समाज के मतदाताओं के दृष्टिकोण का भी संकेत देता है। अगर उनका मनोबल टूटता है या वे विरोध की राह अपनाते हैं, तो एनडीए को मतदान में भारी नुकसान हो सकता है।
साथ ही, यह स्थिति विपक्षी दलों के लिए भी अवसर पैदा कर सकती है। वे इस स्थिति का फायदा उठाकर यादव समुदाय के मतों को अपने पक्ष में खींच सकते हैं। इसलिए, एनडीए के लिए यह समय बहुत संवेदनशील है।
चुनावी रणनीति और भविष्य की राह
एनडीए के लिए अब यह आवश्यक है कि वे ओमप्रकाश यादव जैसे वरिष्ठ नेताओं की भावनाओं को समझें और समीकरण को संतुलित करें। बिना उनके सहयोग के, पार्टी को मतदाता वर्ग में विभाजन का सामना करना पड़ सकता है।
सियासी पर्यवेक्षक मानते हैं कि सिवान की राजनीति में सब कुछ संभव है, लेकिन पुराने नेताओं की अनदेखी महंगी साबित हो सकती है। इस बार का चुनाव केवल उम्मीदवारों के नाम तक सीमित नहीं है, बल्कि यादव समुदाय के मतदाताओं की नाराज़गी और समर्थन भी निर्णायक भूमिका निभाएगी।