रघुनाथपुर में विकास बनाम विरासत का संग्राम शुरू
सिवान जिले की रघुनाथपुर विधानसभा सीट इस बार बिहार की राजनीति का सबसे चर्चित रणक्षेत्र बन चुकी है। यह सिर्फ एक चुनावी मुकाबला नहीं, बल्कि दो पीढ़ियों की सोच, दो अलग विचारधाराओं और दो रास्तों की टक्कर है।
एक तरफ हैं जदयू के वरिष्ठ नेता विकास कुमार सिंह उर्फ जीशू सिंह, जो विकास, सुशासन और आधुनिकता के प्रतीक के रूप में उभरे हैं।
दूसरी तरफ हैं राजद प्रत्याशी ओसामा साहब, जो अपने पिता पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने मैदान में उतरे हैं।
विरासत की राजनीति बनाम विकास की सोच
राजनीति में “विरासत” शब्द का अर्थ केवल नाम या परिवार नहीं होता, बल्कि एक लंबे दौर की पहचान, प्रभाव और जनभावनाओं से जुड़ा होता है।
ओसामा साहब के लिए यह चुनाव भावनात्मक और चुनौतीपूर्ण दोनों है।
राजद ने उन्हें टिकट देकर एक स्पष्ट संदेश दिया है — पार्टी अब भी अपने परंपरागत वोट बैंक और पुराने जनाधार को सहेजना चाहती है।
ओसामा साहब के नाम पर पार्टी को सहानुभूति और भावनात्मक समर्थन की उम्मीद है, खासकर उन मतदाताओं से जो शहाबुद्दीन की सियासी यादों से अब भी जुड़ाव रखते हैं।

वहीं, जदयू के जीशू सिंह इस विरासत की राजनीति के जवाब में “विकास” का कार्ड खेल रहे हैं।
उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्र में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और जल निकासी जैसे मुद्दों पर ठोस कार्य किए हैं।
उनकी छवि एक युवा, ऊर्जावान और जनता के बीच रहने वाले नेता की बन चुकी है।
जनता के बीच उठता सवाल — “विकास के आगे विरासत या विरासत के आगे विकास?”
रघुनाथपुर में अब आम चर्चा यही है कि इस बार जनता क्या चुनेगी —
विकास की दिशा में आगे बढ़ता नया चेहरा या
पुरानी विरासत को दोबारा जीवन देने का प्रयास?
यह सवाल अब हर चौपाल, हर गली और हर चाय दुकान पर गूंज रहा है।
ग्रामीण मतदाताओं में दो वर्ग साफ दिखते हैं —
एक जो नई पीढ़ी और परिवर्तन को समर्थन दे रहा है,
और दूसरा जो भावनात्मक नाता और परंपरागत नेतृत्व को महत्व देता है।
राजनीतिक समीकरण और सामाजिक गणित
रघुनाथपुर सीट पर जातीय समीकरण और स्थानीय गठजोड़ हमेशा निर्णायक रहे हैं।
यहां मुस्लिम और यादव मतदाताओं की संख्या पर्याप्त है, जो पारंपरिक रूप से राजद के समर्थन में रहे हैं।
वहीं, उच्च जाति और पिछड़ा वर्ग के युवा मतदाता जदयू उम्मीदवार की ओर झुकाव दिखा रहे हैं, जो विकास के एजेंडे पर भरोसा कर रहे हैं।
इसके अलावा, भाजपा और जदयू के गठबंधन से एनडीए की स्थिति पहले से मजबूत दिख रही है।
लेकिन, ओसामा साहब के नाम पर भावनात्मक लहर को नकारा नहीं जा सकता।
यही कारण है कि इस सीट पर मुकाबला अब बेहद कांटे का और दिलचस्प बन गया है।
नेताओं की छवि और जनता की उम्मीदें
जीशू सिंह को जनता “काम करने वाले नेता” के रूप में जानती है।
उन्होंने बाढ़ राहत से लेकर शिक्षा सुधार तक, कई मुद्दों पर स्थानीय स्तर पर कार्य किया है।
दूसरी ओर, ओसामा साहब के सामने चुनौती है — अपने पिता की छवि को सकारात्मक विकास की दिशा में रूपांतरित करना।
युवा मतदाताओं की निगाह अब इस बात पर है कि क्या ओसामा अपने पिता की राजनीतिक विरासत को नई दिशा दे पाएंगे।
अबकी बार रघुनाथपुर का इम्तेहान — जनता देगी फैसला
आने वाले हफ्तों में जैसे-जैसे प्रचार तेज होगा, रघुनाथपुर की गलियों में यह मुकाबला और गर्माता जाएगा।
लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव खुद इस सीट को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुके हैं, वहीं जदयू भी इसे “विकास का प्रतीक चुनाव” बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रही।
अंततः फैसला जनता के हाथ में है —
क्या रघुनाथपुर नई राह पर चलेगा या अपनी पुरानी राह को ही चुनेगा?
एक बात तय है —
रघुनाथपुर की यह लड़ाई बिहार के राजनीतिक इतिहास में लंबे समय तक याद रखी जाएगी।
निष्कर्ष:
यह चुनाव केवल एक सीट का नहीं, बल्कि यह तय करेगा कि बिहार की राजनीति अब किस दिशा में बढ़ेगी —
विकास के रास्ते पर या विरासत की परछाई में।