भारत की राजनीति में नया विवाद और आरोपों की बौछार
कांग्रेस की प्रतिक्रिया और थरूर की प्रशंसा पर पार्टी में मतभेद
नई दिल्ली में शशि थरूर द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नीति-केन्द्रित भाषण की सराहना करने के बाद कांग्रेस में तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। थरूर ने PM मोदी के व्याख्यान को “आर्थिक दृष्टि और सांस्कृतिक आह्वान का संयोजन” बताते हुए भारतीय विकास की गति को चुनौतीपूर्ण और प्रेरणादायक कहा। हालांकि, कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने इस भाषण को महत्त्वहीन करार देते हुए कहा कि इसमें सराहना योग्य कुछ भी नहीं था।
यह मतभेद कांग्रेस नेतृत्व के भीतर वैचारिक असहमति को उजागर करता है, जहाँ व्यक्तिगत दृष्टिकोण पार्टी की आधिकारिक सोच से टकराता दिखाई दे रहा है।
BJP का तीखा हमला: ‘इंदिरा नाज़ी कांग्रेस’ की उपाधि
कांग्रेस के भीतर थरूर के विचारों पर प्रतिक्रिया को लेकर भाजपा प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला ने तीखा प्रहार किया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस किसी भी स्वतंत्र सोच को बर्दाश्त नहीं करती, और यह पार्टी अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नहीं बल्कि ‘इंदिरा नाज़ी कांग्रेस’ बन चुकी है।
पूनावाला ने कहा कि यदि कोई नेता सच बोले या पीएम मोदी की सामान्य प्रशंसा करे, तो पार्टी नेतृत्व की ओर से फतवा-नुमा दबाव बनाया जाता है। उनके अनुसार, कांग्रेस एक ऐसे संगठन की ओर बढ़ रही है जहाँ लोकतांत्रिक विरोध की जगह अधिनायकवादी सोच हावी हो रही है।
राहुल गांधी और संवैधानिक संस्थाओं को लेकर नया विवाद
इसी क्रम में पूनावाला ने राहुल गांधी पर भी हमला बोलते हुए कहा कि अब ‘LoP’ का अर्थ ‘लीडर ऑफ प्रोपेगेंडा’ हो गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि राहुल गांधी संविधान और सरकारी संस्थानों पर सवाल उठाकर लोकतांत्रिक ढांचे पर लगातार आघात कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी की लोकतंत्र में आस्था सत्ता पर निर्भर है। अगर चुनाव में जीत मिलती है, तो संस्थाएं सही; लेकिन हार होने पर वे उन्हीं संस्थानों पर आरोप लगाने लगते हैं।
272 प्रमुख नागरिकों का खुला पत्र और ECI पर हमले पर चिंता
इस विवाद के बीच 272 पूर्व न्यायाधीशों, नौकरशाहों, राजनयिकों और पूर्व सैनिकों ने एक खुला पत्र जारी किया। इसमें कांग्रेस और राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग सहित अन्य संवैधानिक संस्थाओं पर लगातार आरोप लगाने को लोकतंत्र-विरोधी बताया गया।
इस पत्र में कहा गया कि यदि कांग्रेस के नेताओं को चुनाव प्रक्रिया पर संदेह है, तो वे औपचारिक शिकायत दर्ज करें, न कि सार्वजनिक मंचों पर दुष्प्रचार। पत्र में राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ जैसे आरोपों को लोकतंत्र और संस्थागत सम्मान पर हमला करार दिया गया।
लोकतंत्र पर बहस: राजनीतिक संवाद या राजनीतिक रणनीति?
यह संपूर्ण विवाद एक सवाल खड़ा करता है—क्या लोकतांत्रिक संस्थाओं और नेताओं पर सवाल उठाना वैचारिक स्वतंत्रता है या राजनीतिक रणनीति? विपक्ष की भूमिका संविधान और पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण है, किंतु जब यह आलोचना केवल चुनावी परिणामों के आधार पर हो, तो यह लोकतांत्रिक संरचना के लिए भी चुनौती बन जाती है।
शशि थरूर का मामला इस बात का उदाहरण है कि क्या किसी भी विचार को पार्टी लाइन से अलग होना गुनाह माना जाना चाहिए। लोकतंत्र तभी मज़बूत होता है, जब असहमति को जगह मिले, न कि उसे अपराध माना जाए।
यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।