Vande Mataram 150 Years: वंदे मातरम के 150 वर्षीय गौरव का स्मरण, पीएम मोदी ने राष्ट्र चेतना के मूल मंत्र को फिर जाग्रत किया

Vande Mataram 150 Years
Vande Mataram 150 Years: वंदे मातरम के 150 वर्षीय गौरव का स्मरण, पीएम मोदी ने राष्ट्र चेतना के मूल मंत्र को फिर जाग्रत किया
वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर पीएम मोदी ने इसे भारत की आत्मा और राष्ट्रीय चेतना का मूल मंत्र बताया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका, 1937 के विभाजन निर्णय की आलोचना, और युवाओं से राष्ट्र निर्माण के संकल्प को मजबूत करने का आह्वान किया।
नवम्बर 7, 2025

Vande Mataram 150 Years: भारत की आत्मा और राष्ट्र चेतना का जागरण मंत्र

नई दिल्ली। भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150वें वर्ष पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक वर्ष तक चलने वाले स्मरणोत्सव का शुभारंभ विशेष डाक टिकट और स्मारक सिक्के के विमोचन के साथ किया। इस समारोह में प्रधानमंत्री ने वंदे मातरम की ऐतिहासिक प्रेरणा, उसकी राष्ट्रीय भूमिका और स्वतंत्रता संग्राम में उसकी अद्वितीय उपस्थिति को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम कोई साधारण गीत नहीं, बल्कि यह भारत माता की उपासना का मंत्र है, जिसने भारतीय समाज को एकजुट किया और स्वतंत्रता के मार्ग पर अग्रसर किया।

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर उन कड़वे ऐतिहासिक प्रसंगों की भी चर्चा की, जब 1937 में वंदे मातरम को विभाजनकारी मानसिकता के तहत उसके प्रमुख अंशों से अलग कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि यह विभाजन केवल गीत का नहीं, बल्कि राष्ट्र की चेतना को आहत करने वाला निर्णय था, जिसने आगे चलकर देश के विभाजन का बीज भी बोया।


स्वतंत्रता आंदोलन में वंदे मातरम की भूमिका

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की शायद ही कोई ऐसी घटना हो, जिसमें वंदे मातरम की प्रतिध्वनि सुनाई न दी हो। 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा इसका गायन उस भावनात्मक जागरण का आरंभिक क्षण बना। 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन की साजिश रची, तब वंदे मातरम सड़कों पर, सभाओं में, आंदोलनों में और भारतवासियों के हृदय में एक निर्णयात्मक स्वर बनकर उभरा।

प्रधानमंत्री ने याद कराया कि बरिसाल आंदोलन के दौरान जब सत्याग्रहियों पर गोलियां चलाई गईं, तब भी उनके मुख पर अंतिम उच्चारण यही था – वंदे मातरम। विदेशों में रहकर स्वतंत्रता संघर्ष का संचालन कर रहे वीर सावरकर, श्री अरबिंदो, भीकाजी कामा जैसे क्रांतिकारियों के अभिवादन का शब्द भी यही था। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम केवल गीत नहीं, यह स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और राष्ट्र श्रद्धा का घोष था।


विभाजनकारी सोच और वर्तमान चुनौती

Vande Mataram 150 Years: पीएम मोदी ने कहा कि 1937 में वंदे मातरम के महत्वपूर्ण पदों को अलग करना राष्ट्र चेतना के उस सूत्र को तोड़ने का प्रयास था, जिसने भारत को एक रखा था। उन्होंने कहा कि वही विभाजनकारी मानसिकता आज भी देश के समक्ष चुनौती रूप में मौजूद है। उन्होंने युवाओं को सावधान करते हुए कहा कि राष्ट्र निर्माण के पथ पर भ्रम फैलाने वाले और आत्मविश्वास को कमजोर करने वाले तत्व हमेशा मिलेंगे। ऐसे समय में वंदे मातरम फिर ऊर्जा और संकल्प प्रदान करता है।


आज के भारत के संदर्भ में वंदे मातरम की प्रासंगिकता

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भारत माता की 140 करोड़ संतानें हैं, जिनमें 60 प्रतिशत युवा हैं। यह जन-बल, यह ऊर्जा, यह क्षमता भारत को इस शताब्दी का नेतृत्वकर्ता बना सकती है। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम एक साधना है, जो आत्मविश्वास जगाती है और हमें यह विश्वास दिलाती है कि ऐसा कोई लक्ष्य नहीं जो भारतवासी प्राप्त न कर सकें।

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