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गुजरात हाई कोर्ट का सख्त संदेश: एक नकारात्मक टिप्पणी भी न्यायाधीश की अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए पर्याप्त

गुजरात HC का सख्त संदेश – न्यायाधीश की अनिवार्य सेवानिवृत्ति में negative comment
गुजरात HC का सख्त संदेश – न्यायाधीश की अनिवार्य सेवानिवृत्ति में negative comment
अक्टूबर 2, 2025

नई दिल्ली: गुजरात हाई कोर्ट ने न्यायपालिका के नैतिक मानकों और अनुशासन पर जोर देते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी न्यायाधीश के खिलाफ केवल एक नकारात्मक टिप्पणी भी उनकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए पर्याप्त हो सकती है। यह निर्णय जे.के. आचार्य की याचिका को खारिज करने के बाद सामने आया, जिन्हें 2016 में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया गया था।

खंडपीठ, जिसमें जस्टिस ए.एस. सुपेहिया और एल.एस. पिरजादा शामिल थे, ने कहा कि न्यायाधीश का पद जनता के विश्वास का पद है और इसलिए न्यायाधीश को पूर्ण ईमानदार और उच्च नैतिक मूल्यों वाला होना आवश्यक है। कोर्ट ने कहा कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति कोई सजा नहीं है, बल्कि यह जनहित में लिया गया निर्णय है।

गुजरात हाई कोर्ट के अनुसार, न्यायाधीश के खिलाफ किसी भी प्रतिकूल टिप्पणी या उनकी ईमानदारी पर सवाल उठना यह साबित करता है कि वह पद के अनुरूप व्यवहार नहीं कर रहे हैं। इसलिए, ऐसे मामलों में शो-कॉज नोटिस जारी करना आवश्यक नहीं माना गया। यह निर्णय न्यायपालिका में पारदर्शिता और अनुशासन बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

जे.के. आचार्य ने 2016 में गुजरात हाई कोर्ट के पूर्ण कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें 18 अन्य सत्र न्यायाधीशों के साथ अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया गया था। आचार्य का तर्क था कि उनकी सेवा का मूल्यांकन सही तरीके से नहीं किया गया, लेकिन खंडपीठ ने इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि न्यायाधीश के पद की संवेदनशीलता और सार्वजनिक विश्वास को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला न्यायपालिका में अनुशासन और जवाबदेही के महत्व को दर्शाता है। यह स्पष्ट करता है कि न्यायाधीश पद पर बैठे व्यक्ति की नैतिकता और ईमानदारी पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के निर्णय से न्यायपालिका की छवि और जनता के विश्वास को मजबूती मिलती है।

सामाजिक और कानूनी पर्यवेक्षक इसे न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं। इस निर्णय से यह संदेश जाता है कि न्यायाधीशों को हमेशा उच्च नैतिक स्तर बनाए रखना होगा और उनके कार्यों पर नकारात्मक टिप्पणी का प्रभाव गंभीर रूप से लिया जाएगा।

गुजरात हाई कोर्ट का यह सख्त संदेश अन्य न्यायाधीशों के लिए भी चेतावनी स्वरूप है। यह संकेत देता है कि न्यायपालिका में सेवा के दौरान उच्च नैतिक मानक और ईमानदारी बनाए रखना न केवल अपेक्षित है, बल्कि अनिवार्य भी है।

इस निर्णय के बाद भविष्य में न्यायाधीशों की जवाबदेही, अनुशासन और जनता के विश्वास को बनाए रखने के उपायों को और मजबूत करने की संभावना है। न्यायपालिका के इस कदम को व्यापक रूप से सराहा जा रहा है और इसे भारतीय न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने वाला महत्वपूर्ण फैसला माना जा रहा है।


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Aakash Srivastava

Writer & Editor at RashtraBharat.com | Political Analyst | Exploring Sports & Business. Patna University Graduate.

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