अल-फलाह विश्वविद्यालय पर छाया विवाद का साया
दिल्ली के लाल किले के पास हुए कार धमाके के बाद हरियाणा के फरीदाबाद जिले में स्थित अल-फलाह विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गई है। यह विश्वविद्यालय, जो स्वयं को ‘उत्कृष्ट शिक्षा का केंद्र’ कहता आया है, अब राष्ट्रीय जांच एजेंसियों की कठोर निगाहों में है। धमाके से जुड़े दो संदिग्धों — डॉ. मुजम्मिल शकील और डॉ. शाहीन सईद — का इस विश्वविद्यालय से प्रत्यक्ष संबंध होने के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने इसकी पृष्ठभूमि की गहराई से जांच प्रारंभ कर दी है।
अरबी शब्द ‘अल-फलाह’ का अर्थ और विवाद का विस्तार
अरबी भाषा में ‘अल-फलाह’ शब्द का अर्थ होता है — सफलता या समृद्धि। परंतु विश्वविद्यालय का नाम इस समय सफलता नहीं बल्कि संदेह और विवाद का पर्याय बन गया है। विश्वविद्यालय के फाउंडर और प्रबंध न्यासी जावेद अहमद सिद्दीकी पहले भी आर्थिक अनियमितताओं और धोखाधड़ी के मामलों में जेल जा चुके हैं। रिपोर्टों के अनुसार, उन पर लगभग साढ़े सात करोड़ रुपये के एक धोखाधड़ी प्रकरण में तीन वर्ष का कारावास हुआ था।
जांच एजेंसियों का मानना है कि विश्वविद्यालय की फंडिंग और उसके स्रोत संदिग्ध हो सकते हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी इस संबंध में प्रारंभिक जांच शुरू की है। सूत्रों के अनुसार, विश्वविद्यालय से जुड़ा एक व्यापक कॉर्पोरेट नेटवर्क है जिसमें जावेद अहमद की लगभग नौ कंपनियां सक्रिय हैं। ये कंपनियां शिक्षा, वित्तीय सेवाओं, सॉफ्टवेयर और ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत बताई जाती हैं।
मध्य प्रदेश से फरीदाबाद तक जावेद अहमद का सफर
जावेद अहमद का जन्म मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान का दावा भले ही किया जाता हो, परंतु उनके व्यावसायिक नेटवर्क और आर्थिक पारदर्शिता पर लगातार प्रश्न उठते रहे हैं। विश्वविद्यालय से जुड़े लोगों का कहना है कि जावेद अहमद समाजसेवा के उद्देश्य से शिक्षा संस्थानों का संचालन करते हैं, जबकि उनके आलोचक इसे एक आर्थिक और राजनीतिक नेटवर्क बताते हैं।
विश्वविद्यालय के विधिक सलाहकार मोहम्मद रज़ी ने सिद्दीकी के विरुद्ध लगे सभी आरोपों से इनकार किया है। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय की सभी गतिविधियाँ कानूनी ढांचे के भीतर हैं और किसी प्रकार की अवैध फंडिंग का प्रमाण नहीं है।
एनएएसी की चेतावनी और विश्वविद्यालय की मान्यता पर प्रश्न
अल-फलाह विश्वविद्यालय की मुश्किलें यहीं समाप्त नहीं होतीं। राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NAAC) ने विश्वविद्यालय को गलत मान्यता दावे करने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया है। एनएएसी के निदेशक प्रोफेसर गणेशन कन्नबिरन द्वारा जारी नोटिस में कहा गया है कि विश्वविद्यालय ने अपनी वेबसाइट पर यह दावा किया था कि उसके घटक कॉलेजों को ‘ए ग्रेड’ की मान्यता प्राप्त है, जबकि वह मान्यता वर्षों पहले समाप्त हो चुकी थी।
इस खुलासे ने विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की भ्रामक जानकारी छात्रों और अभिभावकों दोनों के लिए धोखाधड़ी के समान है।
जांच के घेरे में विश्वविद्यालय प्रशासन
दिल्ली धमाके की जांच कर रही एजेंसियाँ अब विश्वविद्यालय के कई कर्मचारियों और प्रोफेसरों से पूछताछ कर रही हैं। यह भी पता चला है कि लाल किले पर हुए विस्फोट में शामिल मुख्य आरोपी डॉ. उमर नबी भी अल-फलाह विश्वविद्यालय से ही जुड़ा था। इससे विश्वविद्यालय का नाम राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गया है।
स्थानीय प्रशासन ने कहा है कि यदि विश्वविद्यालय की गतिविधियों में किसी प्रकार की आपराधिक या गैर-कानूनी संलिप्तता पाई गई, तो उसकी मान्यता निलंबित की जा सकती है।
शिक्षा जगत में चिंता का माहौल
अल-फलाह विश्वविद्यालय के विवाद ने शिक्षा जगत में व्यापक चिंता उत्पन्न कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि निजी विश्वविद्यालयों की फंडिंग, मान्यता और पारदर्शिता पर सख्त निगरानी की आवश्यकता है। इस प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षा के नाम पर चल रहे कुछ संस्थान राजनीतिक और आर्थिक लाभ के साधन बन चुके हैं।